रबीनामा: अगर किसी फसल का बीज स्वस्थ और बीमारी रहित हो, तो उस फसल में कोई बीमारी नहीं होती और किसान को अधिक लाभ होता है. फसलों में दो प्रकार के रोग और बीमारी फैलतें हैं. एक मृदा जनित और दूसरा बीज जनित. अगर हम बीज को बोने से पहले ही उपचारित कर दें, तो उससे बैक्टीरिया, वाइरस या फंगस जनित रोग नहीं लगते हैं. उपचारित होने के बाद बीज उन रोगों के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्राप्त कर लेता है. बीज उपचारित करने के बाद कुछ मृदा जनित रोग जैसे उकठा रोग, फ्यूजेरियम कवक आदि अपना प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं.
यह प्रसिद्ध कहावत है कि 'जो बोता है वही काटता है. अगर हम हेल्दी बीज की बुवाई करेंगे तो फसल भी स्वस्थ होगी और बेहतर उपज मिलेगी. अभी रबी फसलों की बुवाई का काम तेजी से चल रहा है. कई फसलों के रोग बीज जनित होते हैं. ये रोगज़नक़ बीज बोने के बाद अनुकूल परिस्थितियों में अपनी रोगजनक उग्रता बढ़ा देते हैं ओर फसलों में बीमारी उत्पन्न कर देते हैं. इससे बोई गई फसल को काफी नुकसान होता है. आज के रबीनामा सीरीज में जानेंगे कि रबी फसलों में फंगस रोग रोकने के क्या करें उपाय?
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ और केबीके हेड, नरकटियागंज के डॉ आर.पी सिंह ने बताया कि फंगस बीमारी फैलाने वाले अक्सर रोगजनक समुदाय में रहते हैं जो अनुकूल वातावरण मिलने के बाद रबी फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. रबी फसलों में गेहूं और जौ में झुलसा, कंडुआ रोग और चना में उकठा, बीज सड़न, तना सड़न, जड़ सड़न, मटर में झुलसा, पत्ती झुलसा, पत्ती धब्बा रोग प्रमुख हैं. आलू का अगेती और पछेती झुलसा, टमाटर का झुलसा, पौधा गलन रोग, मिर्च में झुलसा पौध गलन रोग, लहसुन और प्याज में झुलसा रोग, पौध गलन रोग पत्तागोभी में पत्ती धब्बा रोग, बैंगन में अंकुर झुलसा रोग और गन्ने में लाल रोग, ये सब फंगस से फैलेने वाले रोग हैं. इससे फसलों को भारी नुकसान होता है.
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पौध सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार सबसे पहले स्वस्थ बीज से अवस्थ बीज को निकालने का काम करना जरूरी है. अगर घर का बीज बो रहे हैं तो बीज बोने के पहले उसे नमक के घोल में डुबो कर रख दें. इससे हल्के और रोग ग्रसित बीज ऊपर आ जाते हैं. उन्हे छलनी से छान लिया जाता है. जो मोटे और स्वस्थ बीज होते हैं वो नीचे बैठे रह जाते हैं जिन्हे बुवाई के उपयोग में लाया जाता है.
साथ ही साथ नमक के घोल की वजह से कई तरह के विषाणु या फफूंद भी मर जाते हैं. इसके अलावा बीज जनित फंफूद रोग से बचने के लिए जैविक नियंत्रण के लिए 10 ग्राम ट्राइकोड्रर्मा पाउडर को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए और रासायनिक दवाओं से उपचारित करना चाहि. कार्बोक्सिसन 37.5% + थाइरोम 37.5% 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर या कार्बोक्सिसन 17.5% + थाइरोम 17.5% 2 मि.ली.10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर बीजों का उपचार जरूर करें. अगर जैविक और रासायिक दोनों से उपचार करना हो तो 01 दिन पहले रासायनिक उपचार करें. इसके बाद बीजों को जैविक दवाओं से उपचारित करें. लेकिन ध्यान रखें कि जैविक दवाओं की मात्रा दोगुनी होनी चाहिए.
डॉ सिंह के अनुसार फंगस रोग से रबी फसलों को बचाने के लिए मृदा उपचार भी करना जरूरी होता है. इसके लिए 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर को 200 किलो सड़ी गोबर में मिलाकर जूट की बोरी से 10 से 12 दिनों तक ढंक दें. उस पर थोड़ा नमी बनाए रखें. इससे ट्राइकोडर्मा जीवाणु की संख्या बढ़ जाती है. फिर जिस खेत में रबी फसलों की बुवाई करनी है, उस खेत में छिड़काव कर मिट्टी में मिला दें. इससे जमीन में छिपे फसलों में रोग फैलाने वाले फंगस रोगों के रोगजनक खत्म हो जाते हैं.
बीज को उपचारित करते समय धुम्रपान न करें. अगर किसी व्यक्ति को चोट या अन्य आंतरिक चोट लगी हो तो उसे बीजों को उपचारित नहीं करना चाहिए. उपचारित बीजों को किसी भी गीली जगह पर न रखें. बीजों को उपचारित करते समय हाथों पर दस्ताने और चेहरे पर मास्क का प्रयोग करें और उपचारित बीज जल्दी से बो देना चाहिए. दवा के खाली पैलेटों और डिब्बों का निपटान करें. जब बीज उपचारित हो जाए तो अपने हाथ, पैर और मुंह को साबुन से अच्छी तरह धो लें. इस तरह रबी फसलों की बुवाई के पहले बीज उपचारित और मृदा उपचारित करके रोग मुक्त रख सकते हैं और अपनी लागत को बचा सकते हैं.
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