कृषि मंत्रालय देश के सभी जिलों में फसल क्षेत्र आकलन प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल करके एक नई क्रांति देश में लाने की तैयारी कर चुका है. मंत्रालय की इस पहल में पहली बार सैटेलाइट से मिले डेटा का फायदा मिलता हुआ नजर आएगा. बताया जा रहा है कि सैटेलाइट क्रॉप सर्वे पारंपरिक सर्वे की तुलना में करीब 95 फीसदी तक सटीक है. एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि सितंबर में शुरू हो रहे खरीफ सत्र के दौरान पहले नतीजे जनता के सामने होंगे.
एक मीडिया रिपोर्ट ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस साल खरीफ की फसलों के लिए पहला अग्रिम अनुमान जिसके सितंबर में जारी होने की संभावना है, सैटेलाइट डेटा पर आधारित होगा. इससे फसल क्षेत्र की गणना के लिए पारंपरिक मैनुअल 'गिरदावरी' प्रणाली खत्म हो जाएगी. कृषि मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि पायलट स्टडीज में परिणामों ने 93-95 प्रतिशत तक सटीकता नजर आई है जो मैनुअल तरीके से कहीं ज्यादा है. सूत्रों ने जानकारी दी कि सितंबर से मंत्रालय खरीफ फसलों के लिए पूरी तरह से डिजिटल एकड़ डेटा जारी करेगा.
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय सैटेलाइट बेस्ड डेटा के प्रयोग से सभी जिलों में प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजीटाइज करके फसल क्षेत्र अनुमान को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा है. बताया जा रहा है कि इन अनुमानों में स्थापित और नई फसलों (स्ट्रॉबेरी, एवोकाडो आदि) दोनों के उत्पादन के आंकड़े शामिल होंगे. यह देश के लिए कृषि डेटा कलेक्शन और विश्लेषण में एक बड़ी और महत्वपूर्ण छलांग है.
गिरदावरी सिस्टम हालांकि अभी गांवों में जारी है. इस सिस्टम के तहत गांव में जमीन का एक रिकॉर्ड मेनटेन किया जाता हे और इसे फसलों के प्रकार, एरिया और दूसरी जानकारी के साथ अपडेट किया जाता है. मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि राज्यों की तरफ से उसे बराबर सहयोग मिल रहा है. साथ ही वह कृषि आंकड़ों को बेहतर करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं. तेजी से और बड़े स्तर पर आकलन में बदलाव अस्थिरता पैदा करते हैं और मंत्रालय इससे बचना चाहता है.
इसके अलावा सैटेलाइट डेटा का प्रयोग नई और उभरती हुईं फसलों जैसे स्ट्रॉबेरी, ड्रैगन फ्रूट, बेरीज और एवाकाडो के क्षेत्र के आकलन में काफी मददगार साबित होगा. सूत्रों का कहना ह कि अभी जो सिस्टम अपनाया जा रहा है वह इन नई फसलों का आकलन मुहैया कराने में असफल है. इसके अलावा किसानों ने कुछ विविध फसलों को उगाना भी शुरू कर दिया है, जिसका आकलन भी पुराने सिस्टम से मिलना मुश्किल है. मंत्रालय का कहना है कि वर्तमान सिस्टम सिर्फ 25 से 26 बड़ी खरीफ फसलों जैसे चावल, मक्का और ज्वार की ही जानकारी देने में सक्षम है.
कृषि मंत्रालय ने पिछले साल से फसल क्षेत्र के लिए सैटेलाइट आधारित डेटा कलेक्शन का काम शुरू किया था. डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन के तहत मंत्रालय ने डिजिटल क्रॉप सर्वे (डीसीएस) का काम भी पूरा किया है. इसमें उसे राज्य सरकारों का पूरा सहयोग मिल रहा है. मंत्रालय के अनुसार डीसीएस आधारित फसल सर्वे में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और ओडिशा का सहयोग मिला है. खरीफ 2024 के तहत इन राज्यों के 100 फीसदी यानी सभी जिलों को कवर किया गया है.
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