अब हरियाणा के किसानों कोआलू के उत्तर किस्म के बीज मिलेंगे. इसके लिए करनाल जिले के शामगढ़ में एरोपोनिक तकनीक से आलू के बीज तैयार करने के लिए आलू प्रोद्योगिकी केंद्र की शुरुआत की गई है. एरोपोनिक तकनीक में मिट्टी की जगह हवा में खेती की जाती है. इस तकनीक से आलू की ज्यादा पैदावार होती है और आलू की क्वालिटी भी मिट्टी में उगने वाले आलू से अच्छी होती है. इससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है. हरियाणा में बनाए गए इस केंद्र की मदद से अब हवा में आलू उगेंगे और पैदावार भी 10 गुना ज्यादा होगी.
इस नई तकनीक में जमीन या खेत की मदद लिए बिना हवा में फसल उगाई जा सकती है. इसके तहत बड़े-बड़े बॉक्स में आलू के पौधों को लटका दिया जाता है. इस तकनीक से पैदा हुए बीज में किसी तरह की बीमारी नहीं होती, इसलिए पौधे भी पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं. बॉक्स में लटके हुए आलू की जड़ों पर ही सभी तरह के पोषक तत्व दिए जाते हैं.
इस तरह की खेती में पौधे से अधिक आलू उगाए जाते हैं. इस तकनीक में टिश्यू कल्चर और बायोटेक्नोलॉजी की मदद से पौधे तैयार होते हैं. इसके एक पौधे में 40 आलू तक मिल जाते हैं. इसमें सबसे पहले टिश्यू कल्चर से तैयार पौध को लेते हैं जिसे कोकोपिट में 20 दिन रखा जाता है. फिर कोकोपिट से पौधे निकालने के बाद एरोपोनिक में लगाते हैं. इन पौधों को अलग-अलग पोषक तत्व दिए जाते हैं. इनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा भी शामिल होती है. इसमें हर दिन पौधों का पीएच चेक किया जाता है ताकि आलू की क्वालिटी और साइज ठीक मिले.
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इस केंद्र के बनने के बाद हरियाणा सरकार ने सभी किसानों से अपील की है कि वे एरोपोनिक तकनीक अपना कर आलू की खेती करें और मुनाफा कमाएं. इससे जुड़े किसी भी सवाल के लिए हरियाणा सरकार ने एक नंबर जारी किया है. इसके लिए किसान हरियाणा सरकार के बागवानी विभाग के टोल फ्री नंबर 1800 180 2021 पर फोन कर जानकारी पा सकते हैं. किसान इस नंबर पर संपर्क कर खेती की जानकारी या अन्य किसी भी समस्या का समाधान पा सकते हैं.
इस तकनीक में टिश्यू कल्चर विधि के द्वारा नर्सरी में आलू की पौध तैयार की जाती है. उन पौधों की जड़ों को फफूंदनाशक बाविस्टिन में डुबोते हैं. इसका फायदा ये होता है कि पौधों में फंगस का अटैक नहीं होता. इसके बाद पौधों को कोकोपिट में लगा दिया जाता है. फिर इन पौधों को वहां से हटाकर एरोपोनिक बॉक्स में लगाया जाता है. फिर ये फसल उसी बॉक्स में तैयार होती है जिसमें एक पौधे में 30-40 आलू उगते हैं. इस तकनीक से हर 3 महीने पर आलू की पैदावार ली जा सकती है. इसमें आलू का पौधा पूरी तरह से स्वस्थ रहता है क्योंकि उसका मिट्टी से संपर्क नहीं रहता. इस पर कीटों या बीमारियों का भी अटैक नहीं होता.
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