Lok Sabha Polls: लो वोटर टर्नआउट से क्‍या वाकई परेशान होना चाहिए, जानिए एक्‍सपर्ट्स की राय  

Lok Sabha Polls: लो वोटर टर्नआउट से क्‍या वाकई परेशान होना चाहिए, जानिए एक्‍सपर्ट्स की राय  

मौजूदा लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 67.3 प्रतिशत मतदान हुआ, जो साल 2019 के आम चुनावों में 69.6 प्रतिशत से कम था. इसके साथ ही तीन चरणों के दौरान मतदान में गिरावट का सिलसिला जारी रहा. हाल ही में मतदान के आंकड़ों ने कुछ हद तक शेयर इनेवस्‍टर्स को थोड़ा परेशान कर दिया. बाजार इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के लिए मजबूत जनादेश का अनुमान लगा रहा है.

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 Lok Sabha Polls: लो वोटर टर्नआउट से क्‍या वाकई परेशान होना चाहिए, जानिए एक्‍सपर्ट्स की राय  कम होते मतदान प्रतिशत से परेशान इनवेस्‍टर्स

मौजूदा लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 67.3 प्रतिशत मतदान हुआ, जो साल 2019 के आम चुनावों में 69.6 प्रतिशत से कम था. इसके साथ ही तीन चरणों के दौरान मतदान में गिरावट का सिलसिला जारी रहा. हाल ही में मतदान के आंकड़ों ने कुछ हद तक शेयर इनेवस्‍टर्स को थोड़ा परेशान कर दिया. बाजार इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के लिए मजबूत जनादेश का अनुमान लगा रहा है. हालांकि प्राइवेट वेल्‍थ मैनेजमेंट कंपनी बर्नस्‍टीन की राय इससे थोड़ी अलग है. 

क्‍या होंगे इस बार के आंकड़ें 

बर्नस्टीन ने कहा है कि पिछले चुनावों के आधार पर मतदान प्रतिशत और चुनाव परिणामों के बीच कोई साफ संबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि कम से कम अब तक तो मतदान प्रतिशत के आंकड़ों को लेकर बहुत अधिक नहीं सोचना चाहिए. बर्नस्टीन का मानना है कि कहा कि बीजेपी की सीटों की संख्या में गिरावट के लिए वोट प्रतिशत का कम होना जरूरी नहीं है.

बर्नस्टीन का कहना है कि वोटर्स की संख्‍या में दो से तीन फीसदी की गिरावट और सत्ता विरोधी भावना के कारण साल 2014 के आंकड़ों से थोड़ा कम आंकड़े सामने आ सकते हैं.  बर्नस्‍टीन के मुताबिक, 'बिना किसी खास सत्ता विरोधी भावना के बड़ी गिरावट (पांच फीसदी से अधिक) के कारण बीजेपी के लिए साल 2019 के आंकड़ों में या तो मामूली इजाफा होगा या फिर इसमें बहुत ही मामूली गिरावट आएगी.' 

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क्‍या होगा इसका असर 

बर्नस्टीन ने कहा कि उसी दिन मतदाता मतदान पर जारी किए गए डेटा में बैलट वोटिंग शामिल नहीं है. इसकी वजह से साल 2019 के साथ तुलना अलग है.  जब ईसीआई ने बैलट वोटों समेत पहले दो चरणों के लिए आखिरी डेटा जारी किया तो मतदान प्रतिशत में 5.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ. इससे अंतर काफी कम हो गया.  रिपोर्ट के अनुसार, इस बार बैलेट पेपर का असर पिछले सालों की तुलना में ज्‍यादा है. इसलिए प्रभाव जो नजर आ रहा है उससे कम होने की संभावना है. 

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बर्नस्टीन ने कहा कि कुल मिलाकर जब तक कि मतदान में भारी गिरावट और महत्वपूर्ण सत्ता-विरोधी भावना को नहीं होती है तब तक इसका चुनाव परिणामों पर ज्यादा असर नहीं होता है. ऐसे में सत्ताधारी पार्टी के आसानी से जीत हासिल करने की उम्मीद है. साथ ही साल 2019 को दोहराने या उससे थोड़ा ऊपर जाने की कुछ संभावना है. सात चरणों वाला चुनाव 19 अप्रैल को शुरू हुआ और 1 जून को खत्‍म होगा.  चुनाव के नतीजे चार जून को घोषित होंगे. 

तीन श्रेणी के वोटर्स 

बर्नस्टीन ने मतदाताओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है: पहला, एनडीए का अनुभवी समर्थक, दूसरा, एनडीए का अनुभवी गैर-समर्थक और तीसरा स्विंग वोटर- जो तुरन्त अपना रुख बदल लेते हैं और अंतिम क्षण में निर्णय लेते हैं कि किसे वोट देना है. बर्नस्टीन के मुताबिक स्विंग वोटर ने ही साल 2014 और 2019 में बीजेपी की निर्णायक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.  बर्नस्टीन ने माना कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों का कोर वोटर बेस करीब 18-20 फीसदी होगा क्योंकि यह दोनों पार्टियों का न्यूनतम वोट शेयर है.  

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क्‍यों होगा कांग्रेस को फायदा 

बर्नस्टीन ने कहा कि चुनाव के नतीजे मुख्य तौर पर स्विंग वोटर्स की तरफ से तय किए जाते हैं. इन्होंने साल 2014 और 2019 में बीजेपी को भारी वोट दिया था.  उन्होंने कहा कि ये स्विंग वोटर्स ही हैं जिनके वोटिंग न करने की वजह से ही मतदान प्रतिशत ऊपर या नीचे जाएगा. बर्नस्टीन ने कहा कि याद रखने वाली दूसरी जरूरी बात यह है कि मतदाताओं के मतदान से दूर रहने या सत्ता विरोधी लहर के कारण बीजेपी के वोटों में कमी आ सकती है. जबकि कांग्रेस को केवल सत्ता विरोधी लहर के कारण ही फायदा होगा.  

 

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