26 अप्रैल को लोकसभा चुनावों के दूसरे चरण के तहत केरल वायनाड में भी वोट डाले गए. वायनाड से एक बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी बतौर उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने जा रहे हैं. राहुल, साल 2019 में अमेठी में हार गए थे और वायनाड ने उनकी साख उन्हें जीत के तौर पर लौटाई थी. लेकिन इस बार अगर विश्लेषकों की बातों पर यकीन करें तो राहुल के लिए रास्ता थोड़ा मुश्किल हो सकता है. अमेठी 2019 के बाद राहुल किसी भी तरह से वायनाड में सिरदर्द नहीं चाहते हैं. यहां पर उनके राहुल के समर्थक और प्रशंसक भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं वह अक्सर दिखाई नजर नहीं आते हैं. यह वह आरोप है जो उन पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और सीपीआई की तरफ से भी लगाया जा रहा है.
वायनाड जो पहाड़ों के बीच स्थित है और दूर-दूर तक फैले कॉफी और चाय के बागानों ने इस जगह को और खूबसूरत बना दिया है. हरी-भरी घाटियों के बीच धनी जमींदारों के घर यहां पर हैं. वायनाड की आबादी मुख्य रूप से मुस्लिम और ईसाई है. राहुल के खिलाफ वायनाड से बीजेपी के ताकतवर प्रदेश अध्यक्ष के सुरेंद्रन मैदान में हैं. उनका कहना है कि राहुल इस बार यहां पर हारेंगे. उनकी मानें तो पिछली बार उनकी जीत के लिए कांग्रेस का वोट बैंक जिम्मेदार नहीं है. यह मुस्लिम लीग का गढ़ है और कांग्रेस के बिना मुस्लिम लीग को कोई अस्तित्व नहीं है. यहां से तीसरी उम्मीदवार अनुभवी कम्युनिस्ट डी राजा की पत्नी एनी राजा हैं.
यह भी पढ़ें- लद्दाख में बीजेपी सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल उतरे बगावत पर! क्यों
वायनाड में बीजेपी ने दक्षिण के स्टार कैंपेनर अन्नामलाई को भी रोड शो के लिए भेजा था. तमिलनाडु बीजेपी सुरेंद्रन ने राहुल को प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआई का सहयोगी बताकर स्थानीय कार्ड खेला है. लेकिन अन्नामलाई केरल में चुनाव लड़ रहे सभी दलों द्वारा अपनाई गई राष्ट्रीय रणनीति पर कायम हैं. केरल-तमिलनाडु सीमा पर कोयंबटूर से चुनाव लड़ रहे अन्नामलाई ने घोषणा की, 'हम यहां राहुल गांधी को हराने के लिए नहीं, बल्कि इस निर्वाचन क्षेत्र को बचाने और सेवा करने के लिए आए हैं.'
स्मृति ईरानी ने अप्रैल की शुरुआत में वायनाड का दौरा किया था. उनकी मानें तो राहुल ने जिस भी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है, वहां के लोगों के प्रति उनकी निष्ठा संदेह में है. स्मृति ने साल 2019 तक गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली अमेठी में उन्हें करीब 55000 वोटों से हराया था. जबकि राहुल ने वायनाड में 4.3 लाख वोटों से जीत हासिल की थी. 23 अप्रैल को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने रोड शो किया था. वहीं खड़गे ने यह कहकर राहुल का बचाव किया कि उन्होंने क्या नहीं किया? वायनाड के लोग इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति से हर समय यहां आने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? वायनाड में राहुल के ऐसे करीबी हैं जो वही करते हैं जिसके निर्देश उन्हें दिए जाते हैं.
यह भी पढ़ें- 'हर पहलू पर संदेह नहीं, विश्वास की संस्कृति जरूरी'... SC ने खारिज की EVM वेरिफिकेशन की याचिका
वायनाड जैसे पहाड़ी इलाकों में, पेयजल कनेक्टिविटी एक गंभीर संकट है. सुरेंद्रन ने कुछ आदिवासी इलाकों में अपनी लागत पर बोरवेल खुदवाकर और पंप लगवाकर अंक हासिल किए हैं. सुरेंद्रन का कहना है कि यहां पर ऐसा लग रहा है कि राहुल ने गैरहाजिर रहकर वायनाड की उपेक्षा की है. हालांकि वायनाड के अल्पसंख्यक वोट को सुरेंद्रन मानने से इनकार कर देते हैं. उनका कहना है कि यहा पर अल्पसंख्यक कोई एक गुट नहीं है. मुसलमान जो कुछ भी सोचते या कहते हैं, ईसाई उसका विरोध करते हैं. जबकि मुस्लिम महिलाओं को कम करके मत आंकिए उनके इरादे आखिर तक पता नहीं लग पाते हैं.
यह भी पढ़ें- किसान संगठन ने कांग्रेस के घोषणा पत्र पर उठाए सवाल, रामपाल जाट ने खरगे को लिखा पत्र
बीजेपी को अहसास है कि कांग्रेस में तमाम कमजोरियों के बावजूद, गांधी परिवार अभी भी एक नाम है. विशेषज्ञों की मानें तो बीजेपी की बार-बार की जाने वाली बयानबाजी कि राहुल ने वायनाड के लिए बहुत कम काम किया है, पूरी तरह सच नहीं हो सकती है. लेकिन पार्टी को निश्चित रूप से उम्मीद है कि दोहराव उसके पक्ष में काम करेगा. माना जा रहा है कि राहुल दूसरा कार्यकाल आसानी से जीत लेंगे मगर इस बार वोटों का अंतर काफी कम होगा.
Copyright©2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today