देश में आम चुनावों पर होने वाला प्रति व्यक्ति खर्च आजादी से अबतक 5 हजार गुना से ज्यादा बढ़ चुका है. 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति खर्च 67 पैसे था, जो साल 2019 के चुनाव में बढ़कर करीब 32 रुपये पहुंच गया. भारत के चुनावों को दुनिया के सबसे खर्चीले चुनावों में से एक माना जाता है. इस मामले में पिछले चुनावों के आधार पर केवल अमेरिका ही भारत से आगे है.
इस साल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 70 देशों में चुनाव हो रहा है. इन चुनावों के जरिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखा जाता है. लेकिन लोकतंत्र के इस उत्सव को मनाने के लिए हर देश को भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है. हर चुनाव के साथ इस रकम में लगातार इजाफा होता जा रहा है. अगर बात करें भारत की तो देश में पहले लोकसभा चुनाव में प्रति व्यक्ति खर्च 0.67 पैसा था, जो 2019 तक बढ़कर 31.52 रुपए पर पहुंच गया है. यानी चुनाव में खर्च की रकम करीब 5 हजार गुना बढ़ गई है.
वैसे तो 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद कुछ चुनावों तक खर्च की सीमा घटती बढ़ती रही. लेकिन, 2009 में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 तक बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. इन तीन चुनावों में चुनावी खर्च अचानक से सैकड़ों गुना बढ़ गया है. अगर बात करें 1952 से 2004 तक की तो खर्च लागत में पहले के वर्षों में गिरावट देखी गई, लेकिन 2004 के बाद खर्च में बेतहाशा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
एक तरह से देखा जाए तो भारत में चुनाव खर्च दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में से एक है. आंकड़ों के मुताबिक 2019 में भारत में आम चुनावों में 8 अरब डॉलर से थोड़ा ज्यादा रकम खर्च हुई थी. जबकि अमेरिका में 2020 में हुए पिछले चुनावों में 16 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च हुए थे, जिसके बाद ये दुनिया का सबसे महंगा चुनाव बन गया. ब्राजील में 2022 में हुए चुनावों में 2.4 अरब डॉलर की रकम खर्च हुई. ब्रिटेन में 2019 में हुए चुनावों में 6.8 करोड़ डॉलर खर्च होने का अनुमान है जो बाकी देशों के मुकाबले मामूली रकम है. फ्रांस में 2022 में चुनावों पर 8.8 करोड़ डॉलर की रकम खर्च की गई थी क्योंकि वहां पर भी चुनाव खर्च पर कड़ा नियंत्रण है.
यानी बीते चुनावों के आधार पर देखा जाए तो भारत अमेरिका के बाद चुनावों पर खर्च करने वाला दूसरे नंबर का देश है. दिलचस्प बात है कि इस साल के मध्य में भारत में आम चुनाव होने के बाद साल के आखिर में अमेरिका में भी चुनाव होने हैं. ऐसे में इस साल दोनों देशों के चुनावी खर्च के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है. (आदित्य के राणा)
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