पिछले दिनों एक खबर आई जिसने हर किसी को हैरान कर दिया. इस खबर के अनुसार खालिस्तानी नेता और इस समय असम की एक जेल में बंद अमृतपाल सिंह लोकसभा चुनाव लड़ना चाहता है. अमृतपाल सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि वह खडूर साहिब सीट से निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के लिए तैयार है. अमृतपाल खालिस्तानी संगठन वारिस पंजाब दे का मुखिया है. अप्रैल 2023 से अमृतपाल सिंह जेल में बंद है. एक जून को खंडूर साहिब में चुनाव होना है. उसके माता-पिता ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनका बेटा चुनाव लड़ेगा. लेकिन क्या वाकई ऐसा कोई नियम है कि अमृतपाल सिंह जेल में रहते हुए चुनाव लड़ सकता है.
रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 के तहत उन लोगों को संसद और राज्य विधानमंडलों की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर देता है जिन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो और दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा दी गई हो. एक्ट की धारा 8 (3) के तहत, 'किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया व्यक्ति और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई. ऐसी सजा की तारीख से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और रिहाई के बाद अगले छह साल तक के लिए अयोग्य बना रहेगा.'
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लेकिन यह एक्ट विचाराधीन कैदियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है. ऐसे में सिंह को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है. इसलिए, वह बाकी लोगों की तरह लोकसभा चुनाव लड़ सकता है. अब सवाल उठता है कि क्या अमृतपाल सिंह को जेल में रहते हुए नामांकन दायर करने के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहना जरूरी है? तो इसका जवाब है नहीं. नामांकन दाखिल करने के लिए, उम्मीदवार या प्रस्तावक, जो उस निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक है, को पूर्ण नामांकन फॉर्म के साथ रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) के सामने व्यक्तिगत तौर पर मौजूद रहना होगा. इसका मतलब यह है कि सिंह को अपना नामांकन दाखिल करने के लिए उपस्थित होना अनिवार्य नहीं है.
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एक निर्दलीय उम्मीदवार के लिए, अधिनियम के अनुसार हर नामांकन के लिए 10 प्रस्तावकों की जरूरत होती है. मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों के उम्मीदवारों को एक प्रस्तावक की जरूरत होती है. हर उम्मीदवार को दो साल या उससे ज्यादा के कारावास से दंडनीय अपराधों से जुड़े अपने नाम के खिलाफ पेंडिंग केसेज की जानकारी देनी होगी. खंडूर साहिब का सिखों के लिए गहरा प्रतीकात्मक महत्व है. यह वह जगह है जहां पर आठ सिख गुरुओं ने दौरा किया था.
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