साल में दो फसल और 80 दिनों में तैयार, उत्तराखंड के लिए बेहद खास है यह मोटा अनाज

साल में दो फसल और 80 दिनों में तैयार, उत्तराखंड के लिए बेहद खास है यह मोटा अनाज

फॉक्‍सटेल मिलेट यानी बाजरा की एक खास प्रकार की किस्‍म. इसका उत्‍पादन उत्‍तराखंड में सबसे ज्‍यादा होता है. राज्‍य में इसे काऊणी के नाम से भी जानते हैं. हालांकि राज्‍य से दूसरे राज्‍यों में होने वाले पलायन की वजह से इसके उत्‍पादन में गिरावट आई है. फॉक्‍सटेल मिलेट, दुनिया का सबसे पुराना मिलेट है.

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  साल में दो फसल और 80 दिनों में तैयार, उत्तराखंड के लिए बेहद खास है यह मोटा अनाज उत्‍तराखंड में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है

फॉक्‍सटेल मिलेट यानी बाजरा की एक खास प्रकार की किस्‍म. इसका उत्‍पादन उत्‍तराखंड में सबसे ज्‍यादा होता है. राज्‍य में इसे काऊणी के नाम से भी जानते हैं. हालांकि राज्‍य से दूसरे राज्‍यों में होने वाले पलायन की वजह से इसके उत्‍पादन में गिरावट आई है. फॉक्‍सटेल मिलेट, दुनिया का सबसे पुराना मिलेट है.  एशिया में काऊणी की खेती बड़े पैमाने पर होती है और इसे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए काफी महत्‍वपूर्ण भी माना जाता है. इसका एक और नाम भी है और दूसरे नाम में इसे इटैलियन मिलेट के तौर पर जानते हैं. फॉक्‍सटेल मिलेट का रंग पीला और स्‍वाद हल्‍का मीठा-कड़वा होता है. कई लोग इसको गेहूं और चावल में मिलाकर भी खाते हैं.

क्‍यों कहते हैं फॉक्‍सटेल 

काऊणी या फॉक्‍सटेल मिलेट देखने में बिल्‍कुल लोमड़ी की पूंछ सा लगता है. इसलिए इसे फॉक्‍सटेल बाजरा के तौर पर जानते हैं. काऊणी की फसल को मक्‍की और कोदरे की सहफसल के तौर पर लगाया जा सकता है. इस वजह से इसकी फसल चिड़‍िया का भोजन बनने से बच जाती है. इस फसल को साल में दो बार लगाया जा सकता है. मई के अंत में अगर इस फसल को लगाया जाए तो अगस्‍त के अंत में इसकी कटाई की जा सकती है. इसकी फसल 80 दिनों में तैयार हो जाती है. इस वजह से एक साल में इसकी दो फसलें भी पूरी की जा सकती हैं.

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पाए जाते हैं कई पोषक तत्‍व 

यह न सिर्फ पचने में आसान होता है बल्कि इसमें कई बिल्‍कुल पोषक तत्‍व भी पाए जाते हैं. काऊणी में विटामिन बी वन भरपूर मात्रा में होता है. इसकी वजह से यह हार्ट की हेल्‍थ के साथ-साथ याददाश्‍त बढ़ाने में भी कारगर होता है. इसके अलावा इसमें ऐसे तत्‍व होते हैं जो एंटी-एजिंग का काम करते हैं. उनकी वजह से शरीर पर उम्र का असर भी कम नजर आता है. काऊणी में फाइबर भी काफी होता है. इसलिए इसका भात अगर खाया जाए तो शरीर से सारे विषैल तत्‍व बाहर निकल जाते हैं. इसमें पाया जाने वाला प्रोटीन बालों को मजबूत बनाता है और त्‍वचा को चमकदार रखता है.

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बनाए जाते हैं पारंपरिक व्‍यंजन 

भात बनाने के अलावा इसका प्रयोग डोसे, चीले, ब्रेड, खीर और केक बनाने के लिए भी किया जा सकता है. उत्तराखंड में काऊणी से कई पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं. कई इलाकों में काऊणी को चीनी बाजरा भी कहते हैं. चीन में इसका उत्पादन ईसापूर्व 600 वर्ष से हो रहा है और आज इससे  रोटियां, खीर, भात, इडली, दलिया, मिठाई बिस्किट आदि बनाए जाते हैं. 

 

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