दालें प्रोटीन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं. देश में दलहनी फसलों का रकबा लगातार सिकुड़ने के कारण खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार को Import of Pules पर निर्भर रहना पड़ता है. दालों की आयात पर निर्भरता को खत्म कर दलहन उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने पर सरकार जोर दे रही है. हालांकि देश में दलहनी फसलों के उत्पादन की भरपूर क्षमता होने के बावजूद इसका रकबा कम होने की बड़ी वजह किसानों को उपज का सही दाम न मिल पाना है. ऐसे में यूपी सरकार ने दलहनी फसलों की खेती की संभावना वाले बुंदेलखंड इलाके को फिर से इस दिशा में आगे लाने का उपक्रम तेज कर दिया है. यूपी की योगी सरकार ने किसानों को दलहन उत्पादन के एवज में उपज का उचित दाम मिल सके, इसके लिए किसानों को प्रसंस्करण सुविधाओं से लैस कर उन्हें उपयुक्त बाजार मुहैया कराने की कार्ययोजना लागू कर दी है.
गेहूं और धान की फसल खेती में हावी होने से पहले बुंदेलखंड दलहन के उत्पादन का केंद्र रहा है. मगर, यहां के किसानों को दलहनी फसलों का सही दाम न मिल पाने के कारण किसानों ने अब इसे बड़े पैमाने पर उपजाना बंद कर दिया है. हालांकि इस इलाके के किसान अभी भी अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए सीमित मात्रा में दालों की खेती करते हैं.
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कृषि विभाग के उपनिदेशक एमपी सिंह ने बताया कि दलहन के उत्पादन से लेकर Processing and Marketing तक, हर काम में, सरकार किसानों की हर संभव मदद करेगी. इससे किसानों की आय में इजाफा भी होगा और दलहन उत्पादन के मामले में देश काे आत्मनिर्भर बनाने के मोदी सरकार के लक्ष्य को हासिल करने में भी यूपी के किसान मददगार बन सकेगे.
सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड इलाके की मिट्टी और मौसम, दालों की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त मानी गई है. यहां की जमीन में जलभराव नहीं होने के कारण बुंदेलखंड में उड़द और मूंग की उपज अन्य इलाकों की तुलना में ज्यादा होती है.
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सिंह ने बताया कि दालों की खेती के लिए उपयुक्त जमीन वाले जिस 3.80 लाख हेक्टेयर इलाके को चिन्हित किया गया है, वह जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों में मौजूद है. पिछले साल इस इलाके में दलहन का कुल रकबा 2.42 लाख हेक्टेयर था. इसमें झांसी जिले में किसानों ने 65,075 हेक्टेयर में दालों की खेती की थी. उन्होंने दावा किया कि इसके एवज में किसानों को उपज का बेहतर दाम मिलने के कारण उपयुक्त मुनाफा भी हुआ था. झांसी जिले में अब इसके क्षेत्र को बढ़ाकर 85 हजार हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य है.
सिंह ने बताया कि बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट जिलों में अरहर की दाल के लिए उपयुक्त हालात हैं. इस इलाके में पहले से अरहर की अच्छी खेती होती आई है. बुंदेलखंड एग्रो प्रोजेक्ट के तहत इन जिलों में अरहर का रकबा अब और ज्यादा बढ़ाने का लक्ष्य है. उन्होंने बताया कि मौसम की वर्तमान गति को देखते हुए इस साल बुंदेलखंड में भी Pre Monsoon की स्थिति रहने का पूर्वानुमान है. ऐसे में दलहनी फसलों के लिए यह स्थिति बेहतर होगी. किसानों को इन हालात के मद्देनजर दलहनी फसलों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है.
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