जीआई टैगिंग अर्थात Geographical Indication Tagging से कृषि उपज को जोड़ कर उसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान को प्रमाणित किया जाता है. यूपी में योगी सरकार ने किसी स्थान विशेष पर उगाई जाने वाली मशहूर फसलों को जीआई टैग से लैस करके इनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान सुनिश्चित करने की पहल तेज कर दी है. इससे जीआई टैग धारक कृषि उपज का बेहतर दाम मिलने का लाभ किसानों को भी मिलेगा. इस कड़ी में सिद्धार्थनगर की काला नमक धान, कौशांबी के अमरूद और मलिहाबाद के आम के बाद अब बरुआसागर के अदरक को भी शामिल कर लिया गया है. यूपी सरकार के उद्यान विभाग की ओर से बताया गया कि झांसी जिले में स्थित बरुआसागर की लाल मिट्टी में उपजाई जाने वाली हल्दी और अदरक की देश विदेश में लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए यहां के अदरक को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इसके लिए नाबार्ड की ओर से एक प्रस्ताव शासन को भेजा गया है.
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में झांसी मंडल के उपनिदेशक विनय कुमार यादव ने बताया कि पूरे झांसी मंडल में मिट्टी की विविधता के मद्देनजर फसलों की विविधता भी खूब देखने को मिलती है. इनमें बांदा जिले की मिट्टी में देसी अरहर, महोबा में पान और झांसी जिले में खट्टे फलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इसी प्रकार झांसी जिले के बरुआसागर कस्बे की कंकरीली लाल मिट्टी अदरक, हल्दी और अरबी सहित अन्य सब्जियों की खेती के लिए मुफीद है.
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उन्होंने कहा कि इस कस्बे से मंडी के मार्फत न केवल यहां का अदरक तमाम राज्यों में भेजा जाता है, बल्कि यहां के बहुत से किसान अदरक सहित अपनी अन्य ताजी सब्जियां हर दिन ट्रेनों पर सवार होकर दिल्ली तक बेचने जाते हैं. उन्होंने बताया कि बरुआसागर का अदरक आकार में छोटा और कम मात्रा में ज्यादा अच्छा स्वाद देने के लिए मशहूर है. इसे सुखाकर सौंठ भी बनाई जाती है और इसका भी बेजोड़ स्वाद होता है.
यादव ने कहा कि बरुआसागर के अदरक और इससे बनी सौंठ देश के तमाम राज्यों में भेजी जाती है, लेकिन इसे उगाने वाले किसानों को इसका वाजिब लाभ नहीं मिल पाता है. इस खास उपज का किसानों को भी लाभ मिले, इसके लिए ही विभाग ने यहां के अदरक को जीआई टैग दिलाने की कवायद तेज कर दी है. उन्होंने बताया कि अभी इस कस्बे में अदरक की पैकेजिंग एवं प्रोसेसिंग की सुविधा नहीं मिलने के कारण किसान इसे कम दामों पर ही बेचने को मजबूर हैं. जीआई टैग मिलने से अदरक के अलावा इस कस्बे की मशहूर हल्दी और अरबी की पैकेजिंग एवं प्रोसेसिंग की सुविधाओं का इस इलाके में विस्तार होगा.
यादव ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी इस कस्बे के लगभग 10 हजार किसान हर साल औसतन 75 हजार कुंतल अदरक की पैदावार करते हैं. यहां के अदरक को जीआई टैग मिलने से इन किसानों को मूलभूत ढांचागत सुविधाएं मिलने से इसका बेहतर बाजार भी मिल सकेगा. साथ ही अन्य किसान भी इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे अदरक रकबा भी बढ़ेगा. उन्होंने बताया कि बरुआसागर के अदरक को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए नाबार्ड द्वारा कंसल्टेंट की तैनाती कर दी गई है. जिससे इस प्रक्रिया को यथाशीघ्र पूरा किया जा सके.
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योगी सरकार ने 2018 में यूपी के लगभग हर जिले से जुड़े किसी न किसी ऐसे उत्पाद की पहचान करवाई थी, जो अपनी खूबियों के कारण लंबे समय से स्थानीय स्तर पर तो भरपूर लोकप्रिय हुए मगर, बाजार का पर्याप्त सहयोग न मिल पाने के कारण ये देश विदेश में अपनी खूबियों का परचम नहीं लहरा पाए. इस कमी को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने "One District One Product" यानी ODOP योजना शुरू की. इसमें हर जिले के किसी एक खास उत्पाद को विश्व फलक पर पहचान दिलाने के बाद सरकार ने पूरे प्रदेश में स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय हुए 100 उत्पादों की सूची बनाई. शासन ने बरुआसागर के अदरक सहित इन सभी उत्पादों को अब जीआई टैग दिलाने की कवायद को तेज कर दी है.
सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक मऊ के बैगन, बुंदेलखंड की देसी अरहर दाल और बलिया के बोरो धान के अलावा मऊ जिले के गोठा कस्बे का गुड़, सफेद कद्दू से बना आगरा का पेठा, मथुरा का पेड़ा, कालपी की गुजिया, संडीला का लड्डू, सहारनपुर की वुड क्राफ्ट, मुरादाबाद के बर्तन, अलीगढ़ के ताले और खुर्जा का खुरचन जैसे खास उत्पाद इस फेहरिस्त में शामिल हैं. जिन उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है उनमें बाराबंकी एवं रामपुर का मेंथा, फर्रुखाबाद का फुलवा आलू, सोनभद्र की चिरौंजी, कानपुर का लाल ज्वार, मीरजापुर का ज्वार एवं देशी बाजरा गोरखपुर का पनियाला, मेरठ की गजक, हाथरस का गुलाबजल और गुलकंद, एटा का चिकोरी एवं फतेहपुर का मालवा पेड़ा शामिल हैं. इन्हें जल्द ही जीआई टैग मिलने का इंतजार है.
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