Wheat Crop: सीएलसी तकनीक से गेहूं की फसल में करें यूरिया का प्रयोग, होगी भरपूर उपज और कम होगी लागत

Wheat Crop: सीएलसी तकनीक से गेहूं की फसल में करें यूरिया का प्रयोग, होगी भरपूर उपज और कम होगी लागत

किसान फसलों में खाद-उर्वरक डालते हैं ताकि पैदावार बेहतर हो, लेकिन अच्छी पैदावार के लालच में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग करने से लागत बढ़ने के साथ फसल पर कीट और बीमारी का प्रकोप ज्यादा होता है. इससे उपज में गिरावट होती है. लीफ कलर चार्ट (LCC) के माध्यम से किसान गेहूं की फसल में दी जाने वाली यूरिया की ज़रूरी मात्रा का सही अनुमान लगाकर जरूरत से अधिक यूरिया के इस्तेमाल से बच सकते है. और लागत खर्च कम करके गेहूं की फसल से अच्छी उपज ले सकते है. 

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Wheat Crop: सीएलसी तकनीक से गेहूं की फसल में करें यूरिया का प्रयोग, होगी भरपूर उपज और कम होगी लागतसीएलसी तकनीक से गेहूं की फसल में करें यूरिया का प्रयोग,

किसानों द्वारा फसलों में खाद डाली जाती है ताकि पैदावार अच्छी हो, लेकिन अच्छी पैदावार के लालच में बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से फसलें अच्छी होने की बजाय खराब होती हैं. दरअसल, पौधों की उर्वरक की अपनी मांग होती है. अगर फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरकों का प्रयोग किया जाए तो फसल बेहतर होती है. अगर बिना समझे-बूझे फसल में उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, गैर-जरूरी उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, तो फसल के नुकसान के साथ लागत भी बढ़ती है. लेकिन किसानों के सामने बड़ा सवाल यह है कि फसल को कितनी खाद की जरूरत होगी. उनके लिए कोई तकनीक नहीं है. लेकिन इस समस्या का समाधान लीफ कलर चार्ट (LCC) के माध्यम से किया जा सकता है. रबी सीजन में किसान गेहूं की फसल में दी जाने वाली यूरिया की जरूरी मात्रा का सही आकलन कर सकते हैं, ताकि किसान इसे उचित मात्रा में डालकरअपनी लागत कम कर सकें और गेहूं की फसल से अच्छी पैदावार ले सकें.

इस तकनीक से बचेगी यूरिया, मिलेगी बेहतर उपज

इस समय रबी सीजन में गेहूं की फसल शुरुआती दौर में खेतों में खड़ी है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा फसल विज्ञान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह का कहना है इनकी हरियाली को एक संकेतक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. गेहूं की पत्तियों का रंग कितना गहरा या कितना हल्का है, ये तय करता है कि फसल को नाइट्रोजन की उचित मात्रा ज़मीन से मिल पा रही है या नहीं. इस प्रश्न के लिए सबसे सस्ता और आसान हल है लीफ कलर चार्ट यानी रंग मापी पट्टी. ये एक प्लास्टिक की शीट होती है जिसमें हरे रंग के कुछ कॉलम बने होते हैं.

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चार्ट, गहरे हरे रंग से लेकर पीले- हरे रंग तक के 6 कॉलम में बंटा होता है. हर कॉलम की नंबरिंग होती है और पत्तियों से मिलान के बाद तय नंबरिंग के अनुसार नाइट्रोजन का डोज बताया गया है.  ऐसी चार्ट बाजारों में आसानी से उपलब्ध है जो मात्र 50-60 रुपये में किसानों को मिल जाती है. चार्ट के अनुसार फ़सल का रंग जितने गहरे हरे रंग का होगा, उसमें उतनी ज्यादा नाइट्रोजन की मात्रा होगी. ज़ाहिर है तब फसल में यूरिया की ज़रूरत कम होगी और अगर पौधों मे नाइट्रोजन की मात्रा कम होगी तो गेहूं की पत्तियों का रंग भी हल्का हरा या पीला होगा. 

सीएलसी से जानें गेहूं में यूरिया की जरूरी मात्रा

डॉ राजीव ने बताया कि समय से बोई गई गेहूं की फसल में बुवाई के समय प्रति एकड़ 40 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग करना चाहिए. 15 दिसंबर के बाद यानी देर से बोई गई गेहूं की फसल के लिए प्रति एकड़ 25 किलोग्राम यूरिया डालनी चाहिए, इसके बाद गेहूं की फसल में दूसरी सिंचाई के समय सीएलसीसी तकनीक के आधार पर फसल में यूरिया का उपयोग करना बहुत फायदेमंद होता है. राजीव के अनुसार, सबसे पहले एक ही गेहूं के खेत के अलग-अलग स्थानों से 10 स्वस्थ प्रतिनिधि पौधों का चयन करें. अगर इन चयनित छह या अधिक प्रतिनिधि पौधों की पत्तियों का रंग एलएससी के कॉलम 5 या 6 से मेल खाता है, तो 15 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ उपयोग किया जाता है और प्रतिनिधि पौधों की पत्तियां एलएससी कॉलम के रंग से पांच से साढ़े चार तक मेल खाती हैं प्रति एकड़ 30 किलोग्राम यूरिया का उपयोग करना चाहिए.

कृषि वैज्ञानिक डॉ राजीव के अनुसार, अगर प्रतिनिधि पौधे की पत्तियों का रंग चार्ट के कॉलम 4 से 4.5 के अनुरूप है, तो प्रति एकड़ 40 किलोग्राम यूरिया देना है. और यदि पत्तियों का रंग कॉलम चार से कम है, तो किसानों को गेहूं के खेत में 55 किग्रा यूरिया देनी चाहिए. किसान को इस प्रक्रिया को गेहूं के खेत में 10 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए और जब गेहूं के पौधे को नाइट्रोजन की जरूरत हो तभी यूरिया डालें.

पत्तियों के रंग से लीफकलर चार्ट की मिलान
गेहूं की पत्तियों के रंग से लीफकलर चार्ट का मिलान

कैसे करें पत्तियों के रंग से लीफकलर चार्ट का मिलान?

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि 21 दिन की गेहूं की फसल से लेकर गेहूं में बालियां निकलने की शुरुआती अवस्था तक लीफ कलर चार्ट का इस्तेमाल करें. इसके लिए खेत के 10 प्रतिनिधि पौधों का चुनाव करें. सुबह 8-10 बजे या शाम में 2 से 4 बजे के बीच चयन किए गए इन पौधों की शीर्ष पत्तियों के रंगों का चार्ट से मिलान करें. अगर 10 पत्तियों में से 6 पत्तियों का रंग ऊपर के गहरा हरा, हरा या धानी वाले कॉलम 6,5, और 4 के रंगों के अनुसार है तो खेतों में नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं करना होता है. अगर गेहूं की पत्तियों का रंग लीफ कलर चार्ट में कॉलम 3 से लेकर कॉलम 1 के रंग से मिलता है, तो गेहूं की फसल में नाइट्रोजन का प्रयोग करना जरूरी है. 

पत्तियों के मिलान के समय सावधान

लीफ कलर चार्ट के उपयोग के समय कुछ सावधानियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. जैसे, फसल में लीफ कलर चार्ट से मिलान करने वाली पत्तियां पूरी तरह से रोगमुक्त होनी चाहिए. पत्ती के रंग का मिलान करते समय लीफ कलर चार्ट को शरीर के छाया में रखना चाहिए और पत्ती के मध्य भाग को चार्ट के ऊपर रख कर मिलान करना चाहिए. पत्ती का चार्ट से मिलान करते समय सूर्य की रोशनी चार्ट पर नहीं पड़नी चाहिए. जब गेहूं की खेत में पानी ठहराव हो, तो यूरिया का प्रयोग ना करें और गेहूं के फूल की अवस्था के बाद यूरिया का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

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लीफ कलर चार्ट के प्रयोग से लाभ

इस चार्ट के इस्तेमाल से आप गेहूं की फसल को गैर जरूरी यूरिया देने से बच जाएंगे. इससे यूरिया की बचत होगी. यानी आपकी लागत कम होगी. इससे 10 से 30 किग्रा/एकड़ नाइट्रोजन बचाया जा सकता है. आपके खेतों की उर्वरता बनी रहेगी. ज्यादा यूरिया के बोझ से फसल खराब नहीं होगी. साथ ही भूमिगत जल की गुणवत्ता भी खराब होने से बचेगी. आप इस रंगमापी पट्टी का प्रयोग कर आसानी से अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं. 


 

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