Toor Dal Farming: अरहर दाल की मांग-आपूर्त‍ि में भारी अंतर, इसकी खेती से हो सकती है अच्छी कमाई 

Toor Dal Farming: अरहर दाल की मांग-आपूर्त‍ि में भारी अंतर, इसकी खेती से हो सकती है अच्छी कमाई 

अरहर एक ऐसी फ‍सल है जो वातावरण से नाइट्रोजन लेकर जमीन में फ‍िक्स करती है. इसल‍िए इसकी खेती न स‍िर्फ अच्छी इनकम देगी बल्क‍ि खेत की उर्वरता बढ़ाएगी. यह खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है. ज‍िसके सबसे बड़े उत्पादक कर्नाटक और महाराष्ट्र हैं. 

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Toor Dal Farming: अरहर दाल की मांग-आपूर्त‍ि में भारी अंतर, इसकी खेती से हो सकती है अच्छी कमाई जानिए अरहर की खेती के बारे में

अरहर इस साल बढ़ते दाम और कम होती खेती की वजह से चर्चा में है. देश में करीब 47 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती है, लेक‍िन इस साल अब तक स‍िर्फ 42.92 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हो पाई है. यह हाल तब है जब भारत में अरहर दाल की मांग और आपूर्त‍ि में करीब 11 लाख मीट्र‍िक टन का अंतर है. यानी हम आयात पर न‍िर्भर हैं. सालाना लगभग 45 लाख टन की खपत होती है, जबक‍ि उत्पादन 34 लाख टन ही रह गया है. ऐसे में इसकी खेती क‍िसानों को अच्छा मुनाफा दे सकती है. क्योंक‍ि शॉर्टेज है तो अच्छा दाम म‍िलेगा. यही नहीं यह ऐसी फ‍सल है जो वातावरण से नाइट्रोजन लेकर जमीन में फ‍िक्स करती है. यह खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है. कर्नाटक और महाराष्ट्र इसके प्रमुख उत्पादक हैं. फ‍िलहाल, आज हम इसकी खेती के बारे में बताएंगे. 

भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद के वैज्ञान‍िकों के अनुसार इसकी फसल के लिए ऐसी म‍िट्टी होनी चाहिए, जिसमें पानी निकासी की सही व्यवस्था हो. क्योंक‍ि खेत में पानी भरने पर फसल को भारी नुकसान हो सकता है. मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है. वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि प्रयोगों द्वारा यह साबित हो चुका है कि मेड़ों पर अरहर की बुआई करने पर न केवल पैदावार में बढ़ोतरी होती है, बल्कि इस तकनीक को अपनाने से जलभराव से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है. यही नहीं कवकजनित रोगों का हमला भी कम होता है. 

कैसी चाह‍िए जमीन  

ज‍िस खेत में अरहर की बुवाई कर रहे हैं उसकी म‍िट्टी का पीएच मान 5.5 से 8 के बीच हो. अरहर की खेती अगेती व पछेती फसल के रूप में करते हैं. सिंचित क्षेत्रों में अगेती अरहर की बुआई मध्य जून में पलेवा करके होती है. बुआई के समय पंक्तियों का अंतर 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेमी सही रहती है. खरीफ की बुआई के लिए 15 से 18 क‍िलोग्राम बीज एक हेक्टेयर के ल‍िए पर्याप्त रहता है. बीजों को 4-5 सेमी गहराई में बोना चाहिए. इसकी बुवाई 31 जुलाई तक भी हो सकती है. अगर आप इस साल चूक गए हैं तो अगले साल एक बार इसकी खेती जरूर कर‍िए. 

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रोगों से कैसे बचाएं 

मृदा एवं बीजजनित कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग हैं, जो अंकुरण होते समय तथा अंकुरण होने के बाद इसके बीजों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या के लिए बीजों को कवकनाशी से उपचारित करने की सलाह दी जाती है. इसके लिए प्रति क‍िलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करने के बाद इनका राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए. अच्छी पैदावार के लिए प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की निर्धारित संख्या आनिवार्य है. कम पौधों की स्थिति में खरपतवारों का जमाव व विकास अधिक होगा तथा उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. 

खाद का क‍ितना हो इस्तेमाल 

इसकी खेती में उर्वरकों का प्रयोग म‍िट्टी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए. अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए प्रत‍ि हेक्टेयर 10-15 क‍िलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 क‍िलोग्राम फॉस्फोरस तथा 20 क‍िलोग्राम सल्फर की आवश्यकता होती है. अरहर की अधिक से अधिक उपज के लिए फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फॉस्फेट 250 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर या 100 क‍िलोग्राम डीएपी एवं 20 क‍िलोग्राम सल्फर पंक्तियों में बुआई के समय देना चाह‍िए. उर्वरक का बीज के साथ संपर्क न हो. कुछ क्षेत्रों में जस्ता या जिंक की कमी की अवस्था में इसका 20 क‍िलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.

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