मटर की खेतीरबी सीजन की शुरुआत होते ही किसान खेती में जुट गए हैं. किसान सीजन की प्रमुख दलहनी फसल मटर की खेती की तैयारी कर रहे हैं, बता दें मटर एक महत्वपूर्ण सब्जी है. भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है साथ इसकी खपत भी काफी अधिक है. यही कारण है कि मटर की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा माना जाता है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा मिलता है. किसानों को मटर की उन्नत अगेती किस्मों की बुवाई के लिए अक्टूबर का महीना सबसे उपयुक्त होता है. इससे कम समय में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है. वहीं, मटर की इन किस्मों की सबसे खास बात यह है कि ये 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं मटर की पांच अगेती किस्मों के बारे में.
1. पंत मटर 155: ये किस्म हाइब्रिड मटर की एक अगेती प्रजाति है. इसे पंत मटर 13 और डी डी आर- 27 के संकरण से विकसित किया गया है. इसकी बुवाई से 30 से 35 दिनों के अंदर ही इसमें फूल आने लगते हैं, जबकि इसकी हरी फलियों के रूप में पहली तुड़ाई 50 से 55 दिनों में कर सकते हैं. इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है, जिसके कारण इसमें चूर्ण फफूंद और फली छेदक रोग का प्रकोप कम देखने को मिलता है.
2. अर्ली बैजर किस्म: मटर की ये एक विदेशी किस्म है, जिसके पौधों की फलियों में बनने वाले बीज झुर्रीदार पाए जाते हैं. इस किस्म का पौधा बौना दिखाई देता है. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इस किस्म के पौधों की प्रत्येक फलियों में औसतन 5 से 6 दाने पाए जाते हैं. इस किस्म पौधों से हरी हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 टन के आसपास पाया जाता है.
3. काशी नंदिनी: काशी नंदिनी मटर की एक अगेती किस्म है. अगेती किस्मों में इस किस्म का मुख्य स्थान है. बुवाई के लगभग 60-65 दिनों में इसकी फलियां तुड़ाई योग्य हो जाती हैं. इसकी एक फली में 7-9 दाने बनते हैं. इसकी सबसे बड़ी खास बात ये है कि इसके पौधे में लगे सभी फलियां एक साथ तैयार हो जाते हैं, जिससे बार-बार तुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
4. आर्केल किस्म: आर्केल एक मटर की यूरोपियन किस्म है. इसके दाने मीठे होते हैं. यह मटर की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में से एक है. इसकी फलियों को बुवाई के करीब 60 से 65 दिन बाद तोड़ना शुरू कर सकते हैं. इसकी फलियां आठ से 10 सेमी लंबी तलवार के आकार की होती हैं और इसमें पांच से छह दाने होते हैं.
5. पूसा श्री किस्म: पूसा श्री किस्म वर्ष 2013 में विकसित की गई एक अगेती किस्म है. यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त है. ये किस्म बुवाई के 50 से 55 दिनों बाद फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी प्रत्येक फली से 6 से 7 दाने निकलते हैं. वहीं, इससे प्रति एकड़ 20 से 21 क्विंटल उत्पादन प्राप्त होता है.
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