महाराष्ट्र में सिर्फ प्याज की खेती करने वाले किसान ही परेशान नहीं हो रहे हैं बल्कि अब सोयाबीन उत्पादक किसानों के सामने भी समस्या आ खड़ी हुई है. राज्य की अधिकांश मंडियों में किसानों को सोयाबीन का सही दाम नहीं मिल रहा है. जबकि सोयाबीन की गिनती दलहन-तिलहन दोनों फसलों में होती है. वर्धा जिले की हिंगणघाट मंडी में 7 फरवरी को किसानों को मात्र 28 रुपये प्रति किलो के न्यूनतम दाम पर सोयाबीन बेचने पर मजबूर होना पड़ा. जबकि इसकी एमएसपी 46 रुपये किलो है. मतलब प्रति किलो किसानों को 18 रुपये का नुकसान हुआ. जबकि लासलगांव मंडी में किसानों को न्यूनतम दाम सिर्फ 30 रुपये किलो मिला.
ऐसा भी नहीं है कि महाराष्ट्र में आवक बहुत ज्यादा हो. आवक सामान्य होने के बावजूद दाम बहुत कम मिल रहा है. किसान इसकी वजह से बहुत परेशान हैं. महाराष्ट्र देश का प्रमुख सोयाबीन उत्पादक है इसलिए यहां के लाखों किसानों की आजीविका इसकी खेती पर निर्भर है. फिलहाल हिंगणघाट मंडी में 7 फरवरी को न्यूनतम दाम 2800, अधिकतम 4565 और औसत दाम 3800 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि लासलगांव विंचुर में न्यूनतम दाम 3000, अधिकतम 4549 और औसत दाम 4450 रुपये क्विंटल रहा. मतलब दोनों मंडियों में दाम 4600 रुपये क्विंटल की एमएसपी से कम चल रहा है.
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महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के पूर्व चेयरमैन पाशा पटेल दावा करते हैं कि महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन की लागत प्रति क्विंटल 6234 रुपये आती है. जबकि केंद्र सरकार ने सोयाबीन की लागत प्रति क्विंटल 3029 रुपये ही बताई है. उधर, केंद्र सरकार ने सोयाबीन की एमएसपी में 300 रुपये का इजाफा करके 2023-24 के लिए इसे 4600 रुपये प्रति क्विंटल किया है. किसानों का कहना है कि अगर मंडियों में इतना दाम भी मिल रहा है तो उसे संतोषजनक माना जाएगा. लेकिन ज्यादातर मंडियों में इससे कम दाम ही चल रहा है. हालांकि किसानों को उम्मीद है कि इस साल भाव आगे चलकर बढ़ेगा.
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