चावल खपत पूर्ति के लिए सिंगापुर भारत से कई किस्म के चावल आयात करता है. इसके लिए सिंगापुर ने एग्रीगेटर नामित कर रखा है, जो भारतीय कंपनी नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (एनसीईएल) से चावल खरीद सौदा फाइनल करता है. सिंगापुर का एग्रीग्रेटर 8 फीसदी तक मार्जिन चाहता है. वहीं, कस्टम नियमों के कड़े किए जाने से सिंगापुर जाने वाली चावल शिपमेंट में गिरावट दर्ज की गई है. इसके लिए एग्रीगेटर ने भारतीय कंपनी पर ठीकरा फोड़ने की कोशिश की है, जिससे विवाद की स्थिति बन गई है.
सिंगापुर अपनी चावल जरूरत को पूरा करने के लिए भारत से खरीद करता है. रिपोर्ट के अनुसार नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (एनसीईएल) और सिंगापुर के एग्रीगेटर के बीच मतभेद के कारण सिंगापुर को जून तक चावल की कमी का सामना करना पड़ सकता है. यह संकट इसलिए भी और गहराता नजर आ रहा है क्योंकि चेन्नई और थूथुकुडी वीओसी चिदंबरनार बंदरगाहों में सीमा शुल्क अधिकारियों ने प्रक्रियाओं को कड़ा कर दिया है. सख्ती को देखते हुए 1 मार्च से अब तक देश से केवल 250 टन चावल सिंगापुर भेजा गया है.
व्यापार सूत्रों के अनुसार सिंगापुर की समस्याएं तब सामने आईं जब भारत सरकार ने सितंबर में 50,000 टन के निर्यात की अनुमति दी और छह महीने बाद सिंगापुर के एग्रीगेटर ने 13,750 टन चावल खरीदने के लिए टेंडर जारी किए. इसमें इडली चावल, सोना मसूरी, पोन्नी और एडीटी 36 वैराइटी शामिल हैं. सिंगापुर को अपनी तीन महीने की खपत पूरी करने के लिए 50,000 टन चावल का स्टॉक चाहिए. जबकि, एग्रीगेटर और भारतीय कंपनी के बीच मतभेदों और कस्टम नियमों में सख्ती के चलते मार्च में केवल 250 टन चावल ही सिंगापुर को भेजा जा सका है. इससे सिंगापुर के लिए संकट गहरा गया है.
रिपोर्ट में कहा गया कि सिंगापुर की स्थिति गंभीर लग रही है. सिंगापुर के एग्रीगेटर ने घरेलू बाजार में मौजूद नहीं रहने वाली कंपनियों लुई ड्रेफस या ओलम शामिल किया है, जिससे मार्जिन को लेकर भारतीय कंपनी एनसीईएल के साथ मार्जिन को लेकर मतभेद हुआ है. बता दें कि एग्रीगेटर को अपने मार्जिन के साथ चावल बेचने की अनुमति है और वह लगभग 8 प्रतिशत के ऊंचे मार्जिन पर बिक्री की प्लानिंग कर रहा था. जबकि, सामान्य मार्जिन 2 प्रतिशत से कम है. अब जो मार्जिन मांगा गया है वह बहुत बड़ा है, जिसको लेकर एनसीईएल और एग्रीगेटर्स के बीच मतभेद है.
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