भारत की तकरीबन 55 से 60 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर है. इसके बावजूद कई खेती-किसानी को अब मुनाफा ना देने वाला सेक्टर मान रहे हैं. किसान अक्सर शिकायत करते हैं कि कृषि फसलों से उन्हें वैसा मुनाफा नहीं हासिल हो रहा है जैसी की उम्मीद थी. ऐसे में किसान अब पारंपरिक खेती ज्यादातर बागवानी की और रुख कर रहे हैं. ऐसे अगर किसान चंदन के बाग लगते हैं तो उन्हें अच्छा फायदा हो सकता हैं. इसकी लकड़ी विशेष रूप से हिन्दू धर्म में पूजा–पाठ और भारतीय संस्कृति की सभ्यता से जुड़ी है चंदन को सबसे ज्यादा मुनाफे देने वाला पेड़ माना जाता है. इस पेड़ की खेती से किसान आसानी से लाखों-करोड़ों कमा सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चंदन की अत्यधिक मांग है.
इसके पौधों को तैयार होने में 12 से 15 साल का लम्बा समय लग जाता है, जिसके पौधों की लम्बाई 20 मीटर तक पाई जा सकती है चन्दन पेड़ के सभी भागो को इस्तेमाल में लाया जाता है. ये पेड़ रेतीले और बर्फीले क्षेत्रों को छोड़कर किसी भी क्षेत्र में लगाए जा सकते हैं. चंदन का उपयोग फर्नीचर बनाने से लेकर इत्र और सौंदर्य प्रसाधन और यहां तक कि आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है. 15 साल के लिए फसल चक्र के लिए की लागत लगभग 30 लाख रुपये आती है. लेकिन इसके पौधों के पेड़ बनने के बाद किसान आसानी से 1.2 करोड़ रुपये से 1.5 करोड़ रुपये तक मुनाफा कमा सकते हैं. इस खरीफ सीजन में किसान चंदन पेड़ लगाकर कई साल तक मुनाफा पा सकते हैं
चंदन की खेती के लिए लाल बलुई चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है, तथा भूमि का P.H. मान 7 से 8.5 के मध्य होना चाहिए . चंदन की खेती जलोढ़ और नम मिट्टी में करने से तेल की मात्रा कम प्राप्त होती है.
चंदन का पौधा शुष्क जलवायु वाला होता है, इसलिए इसके पौधों को अधिक सर्द जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है.क्योकि सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए उचित नहीं होता है . इसके पौधों को अधिकतम 500 से 625 मिमी बारिश की आवश्यकता होती है . चंदन के पौधों को अधिक 35 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है . इसके पौधे अधिक धूप को आसानी से सहन कर सकते है.
लाल चन्दन- इस किस्म की चंदन को रक्त चंदन के नाम से भी जाना जाता है. लाल चंदन के पौधों में सफ़ेद चंदन की भांति खुशबु नहीं आती है. चंदन की यह किस्म मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों में पाई जाती है.
सफ़ेद चन्दन- इस किस्म की चंदन की लकड़ी का रंग सफ़ेद होता है, इसे मुख्य रूप से व्यापारिक इस्तेमाल के लिए उगाया जाता है. सफ़ेद चंदन की लकड़ी अधिक खुशबु वाली होती है, जिस वजह से सफ़ेद चंदन की कीमत लाल चंदन की अपेक्षा अधिक होती है.
चंदन के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही रूप में की जाती है. चंदन के पौधों की रोपाई के लिए पौध का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा होता है, क्योकि बीज के रूप में रोपाई करने से बीज अंकुरण में दो से तीन महीने का अधिक समय लग सकता है. चंदन के पौधों की रोपाई का सही समय बारिश का मौसम होता है, क्योकि इस दौरान इसके पौधों का विकास अच्छे से होता है. आप आप चाहे तो पोधे की रोपाई बारिश के मौसम से पहले भी कर सकते है.
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बारिश के शुरुआती मौसम में 2-3 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद, 2 किलो नीम की खली, 1 किलो सिंगल सुपर फास्फेट मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्ढा भर देना चाहिए. बरसात के मौसम के बाद थाला बनाकर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए
चंदन के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसलिए इसकी पौध रोपाई बारिश के मौसम में की जाती है | बारिश के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई जरूरत पड़ने पर ही की जाती है | गर्मियों के मौसम में पौधों में नमी बनाये रखने के लिए दो से तीन दिन में पोधो को पानी दे | इसके अलावा सर्दियों के मौसम में सप्ताह में एक बार पौधों की सिंचाई अवश्य करें.
चन्दन के पौधो को तैयार होने में 12 से 15 वर्ष का समय लग जाता है. इस दौरान चंदन के पौधों के मध्य दलहन या बागबानी फसल उगाकर अतिरिक्त कमाई की जा सकती है. जिससे किसान भाई को आर्थिक परिस्थितियों से नहीं गुजरना पड़ेगा .
लालचंदन का पौधा किसानों को सरकारी या प्राइवेट नर्सरी से 120 रुपए से 150 रुपए तक में मिल जाएगा इसके अलावा इसके साथ लगने वाले होस्ट के पौधे की कीमत करीब 100 से 150 रुपए होती है. पौधों को खरीदते समय यह जरूर ध्यान दे कि पौध बिलकुल स्वस्थ होने चाहिए.
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