किस पौधे से मिलता है रामदाना, साग-सब्जी और चारे में कैसे होता है इस्तेमाल?

किस पौधे से मिलता है रामदाना, साग-सब्जी और चारे में कैसे होता है इस्तेमाल?

चौलाई या राजगीरा की खेती बीज, हरे और सूखे चारे, सब्जी और सजावट के लिए करते हैं. इसकी खेती मुख्य तौर पर उत्तर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में होती रही है, लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों में भी उगाई जाने लगी है. चौलाई या राजगीरा का दाना बहुत पौष्टिक होता है. इसमें 12-17 परसेंट प्रोटीन और प्रोटीन में 5.5 परसेंट लाइसिन होता है. राजगीरा और गेहूं के आटे को मिलाकर बनाई गई रोटी को एक पूर्ण आहार माना जाता है.

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किस पौधे से मिलता है रामदाना, साग-सब्जी और चारे में कैसे होता है इस्तेमाल?रामदाना के लिए करें चौलाई की खेती

व्रत और त्योहारों में आपने रामदाना खाया होगा या खाते होंगे. फिर आपने कभी सोचा है कि यह दानेदार उपज किस फसल से मिलती है? कभी आपने सोचा है कि रामदाना की खेती कैसे होती है? आज हम इसी के बारे में आपको बताएंगे. दरअसल, रामदाना को राजगीरा भी कहते हैं और इसका दाना चौलाई से मिलता है. पौष्टिकता से भरे चौलाई का उत्पादन पत्तों के लिए और अनाज चौलाई की खेती राजगीरा दाना पाने के लिए की जाती है.

चौलाई या राजगीरा की खेती बीज, हरे और सूखे चारे, सब्जी और सजावट के लिए करते हैं. इसकी खेती मुख्य तौर पर उत्तर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में होती रही है, लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों में भी उगाई जाने लगी है. चौलाई या राजगीरा का दाना बहुत पौष्टिक होता है. इसमें 12-17 परसेंट प्रोटीन और प्रोटीन में 5.5 परसेंट लाइसिन होता है. राजगीरा और गेहूं के आटे को मिलाकर बनाई गई रोटी को एक पूर्ण आहार माना जाता है.

रामदाना या राजगीरा के फायदे

रामदाना या राजगीरा के दानों को फुलाकर कई तरह के खाद्य पदार्थ, खासकर लड्डू बनाना अधिक प्रचलित है. इसके अलावा कई प्रकार के बेकरी खाद्य पदार्थ जैसे बिस्किट, केक पेस्ट्री, केक आदि भी बनाए जाते हैं. राजगीरा से बनाए गए बच्चों के आहार को सबसे अच्छा माना जाता है. इतना ही नहीं, इसकी पत्तियों में ऑक्जलेट और नाइट्रेट की मात्रा कम होती है जो पशुओं के चारे के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसका हरा चारा पौष्टिक होने के साथ ही सुपाच्य भी होता है. राजगीरा का तेल ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी में अच्छा काम करता है.

इसकी खेती की बात करें तो खरीफ और रबी के मौसम में जल निकास की उचित सुविधा के साथ 5.5 से 7.5 पीएच मान वाली दोमट मिट्टी राजगीरा के उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है. खरीफ में अरहर के साथ और रबी में राजमा, रागी और मूंगफली के साथ इसे उगा सकते हैं. मिट्टी में नमी को बरकरार रखने के लिए बुवाई से पहले सिंचाई और 1.5 से 2.0 किलो प्रति हेक्टेयर बीज की बुवाई उपयुक्त मानी जाती है.

राजगीरा की खेती कैसे करें?

चौलाई या राजगीरा का बीज बहुत हल्का होता है. इसलिए बीज में बारीक मिट्टी मिलाकर बुवाई करने से बीज की मात्रा नियंत्रण में रहेगी. कतार से कतार 30-45 सेमी की दूरी रखें और बीजों को 1.5-2.0 सेमी गहरा बोएं. पहली निराई गुड़ाई के समय पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेमी कर दें जिससे पौधों की ग्रोथ अच्छी होगी. राजगीरा को 4-5 सिंचाई की जरूरत होती है. बुवाई के बाद पहली सिंचाई 5-7 दिन बाद में 15 से 20 दिन के अंतराल पर फसल की जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें. 

कटाई के बाद चौलाई को सुखाकर इसके दाने को अलग करके प्रोसेसिंग में उपयोग किया जा सकता है. फसल 120 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है. पकने पर फसल पीली पड़ जाती है. समय पर कटाई नहीं करने पर दानों के झड़ने का अंदेशा रहता है. फसल को काटते और सुखाते समय ध्यान रखें कि दानों के साथ मिट्टी नहीं मिले.

 

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