पंजाब के किसानों ने की धान के एक्स्ट्रा बीज की बुवाई, बाढ़ से निपटने के लिए पहले से तैयारी पूरी

पंजाब के किसानों ने की धान के एक्स्ट्रा बीज की बुवाई, बाढ़ से निपटने के लिए पहले से तैयारी पूरी

किसान परगट सिंह ने कहा कि ज़्यादातर किसान कम अवधि वाली धान की किस्म (पीआर-126) का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि फसल सामान्य कटाई के समय पर पक जाए और बाद में गेहूं की खेती की शुरुआत पर असर न पड़े. किसानों ने बात करते हुए कहा कि इस किस्म को पकने में सिर्फ़ 120 दिन लगते हैं और जुलाई तक बुवाई के लिए पर्याप्त समय मिलेगा. 

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पंजाब के किसानों ने की धान के एक्स्ट्रा बीज की बुवाई, बाढ़ से निपटने के लिए पहले से तैयारी पूरीपंजाब के पटियाला में बाढ़ से पहले किसानों की तैयारी. (सांकेतिक फोटो)

पंजाब के पटियाला जिले के किसानों ने बाढ़ से धान की फसल को होने वाले नुकसान को कम करने लिए पहले से ही अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है. किसानों ने पिछले साल की तरह बाढ़ की आशंका को देखते हुए दूसरी बार धान की रोपाई करने के लिए एक्स्ट्रा बीजों की बुवाई शुरू कर दी है. ताकि इस साल भी अगर बाढ़ से फसल बर्बाद हो जाती है, तो दोबारा धान की रोपाई शुरू करने पर पौधों की किल्लत का सामना नहीं करना पड़े. खास बात यह है कि जिले में किसान ऊंचे खेतों में धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं. हालांकि, ऐसे जिले में धान की रोपाई लगभग पूरी हो गई है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल पटियाला जिले में बाढ़ के कारण खेतों में जलभराव हो गया था. इससे धान की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी. ऐसे में किसानों को फिर से धान की रोपाई करनी पड़ी थी. लेकिन इस दौरान किसानों को बिजाई के लिए धान के पौधों की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल काम हो गया था. यही वजह है कि इस साल किसानों ने पिछले साल की परेशानियों से सीख लेते हुए धान की नर्सरी तैयार करनी शुरू कर दी है.

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एक महीने में तैयार हो जाती है नर्सरी

गौरतलब है कि धान के बीजों को पहले खेत में बोया जाता है. फिर करीब एक महीने बाद पौधों को उखाड़ कर पहले से तैयार खेत में रोपा जाता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, अधिक उपज के लिए धान की रोपाई जुलाई के मध्य तक पूरी हो जानी चाहिए. वहीं, बलबेरा गांव के किसान गुरप्रीत सिंह ने कहा कि मैंने अपने खेतों में धान की रोपाई पहले ही कर दी है, लेकिन बाढ़ के खतरे को देखते हुए मैंने फिर से धान के पौधों के लिए बीज बोए हैं. पिछले साल हमें दूसरे जिलों से धान के पौधे लाने पड़े थे.

क्या कहते हैं किसान

सस्सी बामना गांव के एक अन्य किसान ईश्वर सिंह ने भी बाढ़ की आशंका को देखते हुए इस साल अतिरिक्त धान के बीज बोए हैं. उन्होंने कहा कि पिछले साल बाढ़ ने मेरी फसल को तबाह कर दिया था, इसलिए हमें दूर-दराज के इलाकों से धान के पौधे लाने के लिए लगभग 2,000 रुपये अतिरिक्त मजदूरी खर्च करनी पड़ी थी. हमें डर है कि इस बार भी बाढ़ हमारे धान के खेतों को तबाह कर सकती है, इसलिए हम महत्वपूर्ण समय और पैसे बचाने के लिए अधिक सावधानी बरत रहे हैं. 

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धान की पैदावार में नहीं आएगी कमी

बलबेरा गांव के एक अन्य प्रगतिशील किसान परगट सिंह, जिन्होंने अपने ऊंचे खेतों में धान के बीज बोने के लिए किसानों को अपनी जमीन उधार दी है. उनका कहना है कि मेरे पास कुछ एकड़ जमीन थी जो पड़ोसी खेतों के स्तर से 3-4 फीट ऊपर थी. कुछ किसानों ने धान के बीज बोने के लिए मुझसे संपर्क किया. इससे उनका नुकसान कम हो सकता है, क्योंकि बाढ़ के तुरंत बाद धान की रोपाई की जा सकती है और इससे उनका समय बचेगा. साथ ही धान की पैदावार में भी कमी नहीं आएगी.
 

 

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