FPO को बढ़ावा देने से बिजनेस में बदल जाएगा कृषि सेक्टर, किसानों को भी होगा फायदा

FPO को बढ़ावा देने से बिजनेस में बदल जाएगा कृषि सेक्टर, किसानों को भी होगा फायदा

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने कहा कि एफपीओ अपने सदस्यों के लाभ के लिए काम करता है. कमाई का एक हिस्सा सदस्यों के बीच बांटा जा सकता है और बाकी को व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार के लिए 'वापस लगाया' जा सकता है. एफपीओ का स्वामित्व इसके सदस्यों द्वारा साझा किया जाता है.

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FPO को बढ़ावा देने से बिजनेस में बदल जाएगा कृषि सेक्टर, किसानों को भी होगा फायदाएफपीओ से किसानों की बदलेगी किस्मत. (सांकेतिक फोटो)

केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते दिनों संसद भवन में आम बजट 2024-25 पेश करते हुए किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को बढ़ावा देने की घोषणा की. हालांकि, अब कृषि विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इससे कृषि को कृषि व्यवसाय में बदलने में मदद मिलेगी. साथ ही आधुनिक समय की कृषि के सामने आने वाली समस्याओं का प्रभावी समाधान मिलेगा. ऐसे भी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय एफपीओ अवधारणा को बढ़ावा दे रहा है. विश्वविद्यालय और इसके कृषि विज्ञान केंद्रों से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कई एफपीओ सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने कहा कि एफपीओ अपने सदस्यों के लाभ के लिए काम करता है. कमाई का एक हिस्सा सदस्यों के बीच बांटा जा सकता है और बाकी को व्यावसायिक गतिविधियों के विस्तार के लिए 'वापस लगाया' जा सकता है. एफपीओ का स्वामित्व इसके सदस्यों द्वारा साझा किया जाता है. उन्होंने कहा कि उत्पादक संगठन (पीओ) एक कानूनी इकाई है, जिसका गठन प्राथमिक उत्पादकों जैसे किसानों, दूध उत्पादकों, मछुआरों, बुनकरों और ग्रामीण कारीगरों द्वारा किया जाता है. इसे उत्पादक कंपनी और सहकारी समिति सहित कई तरीकों से बनाया जा सकता है.

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क्या कहते हैं कुलपति

इस अवधारणा के बारे में विस्तार से बताते हुए पीएयू के अतिरिक्त संचार निदेशक डॉ. तेजिंदर सिंह रियार ने कहा कि अपनी आय बढ़ाने के लिए किसानों को पारंपरिक कृषि पद्धतियों से परे सोचने की जरूरत है. कृषि व्यवसाय में कृषि इनपुट की खरीद, उत्पादन, प्रसंस्करण और तैयार उत्पादों के साथ ग्राहकों तक पहुंचने जैसी विविध गतिविधियां शामिल हैं. डॉ. रियार ने कहा कि आजकल, एक कृषि उद्यमी को न केवल अपने साथी उत्पादकों के साथ बल्कि बड़ी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है. आमतौर पर, एक किसान दिए गए परिदृश्य में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करने के लिए संसाधनों और क्षमताओं से रहित होता है.

भंडारण को मजबूत करेंगे

बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लोकसभा में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के महत्व पर जोर दिया था. उन्होंने घोषणा की कि कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पहलों के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाएगा. खास कर दालों और तिलहनों के उत्पादन, भंडारण और मार्केटिंग पर तेज गति से काम किया जाएगा. उन्होंने कहा कि हम उनके उत्पादन, भंडारण और विपणन को मजबूत करेंगे. उनकी माने तो इस पहल का उद्देश्य सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के उत्पादन में देश को आत्मनिर्भरता हासिल करना है.

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आत्मनिर्भरता हासिल करने में मिलेगी मदद

वित्त मंत्री ने कहा कि अंतरिम बजट में की गई घोषणा के अनुसार, सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के लिए आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक रणनीति बनाई गई है. वहीं, सब्जियों की सप्लाई चेन को बढ़ाने के लिए बजट में मेजर कंजप्शन सेंटर्स के नजदीक सब्जी उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर क्लस्टर विकसित करने का प्रस्ताव है. उन्होंने कहा कि हम कलेक्शन, भंडारण और मार्केटिंग सहित सब्जियों की सप्लाई चेन के लिए किसान उत्पादक संगठनों, सहकारी समितियों और स्टार्टअप को बढ़ावा देंगे.

 

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