Paddy Procurement: हरियाणा में धान की खरीद शुरू, सरकार और मिल मालिकों का टकराव जारी 

Paddy Procurement: हरियाणा में धान की खरीद शुरू, सरकार और मिल मालिकों का टकराव जारी 

सीएमआर के तहत, खरीद एजेंसियां ​​धान खरीदती हैं और फिर उसे मिल मालिकों को देती हैं या आवंटित करती हैं. इन मिल माल‍िकों को 67 फीसदी चावल 1 फीसदी फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (एफआरके) के साथ वापस करना होता है. एक रिपोर्ट के अनुसार करनाल में पहले दिन एक भी रजिस्‍ट्रेशन नहीं हुआ है. मिल मालिकों ने कस्टम-मिल्ड राइस (सीएमआर) नीति के तहत रजिस्‍ट्रेशन कराने से साफ इनकार कर दिया है.

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Paddy Procurement: हरियाणा में धान की खरीद शुरू, सरकार और मिल मालिकों का टकराव जारी हरियाणा में धान की खरीद के साथ ही विवाद शुरू

हरियाणा सरकार की तरफ से 22 सितंबर यानी सोमवार से धान की खरीद शुरू हो गई है लेकिन अभी तक चावल मिल मालिकों के साथ एक बड़े मसले पर टकराव जारी है. मिल मालिकों ने कस्टम-मिल्ड राइस (सीएमआर) नीति के तहत रजिस्‍ट्रेशन कराने से साफ इनकार कर दिया है. उनके इनकार के बाद माना जा रहा है कि सरकार की आसान खरीद योजना पर पानी फिर सकता है. आपको बता दें कि पिछले साल भी इसी तरह का टकराव पैदा हुआ था.  

इंतजाम के बाद भी रजिस्‍ट्रेशन जीरो 

सीएमआर के तहत, खरीद एजेंसियां ​​धान खरीदती हैं और फिर उसे मिल मालिकों को देती हैं या आवंटित करती हैं. इन मिल माल‍िकों को 67 फीसदी चावल 1 फीसदी फोर्टिफाइड राइस कर्नेल (एफआरके) के साथ वापस करना होता है. अखबार ट्रिब्‍यून की एक रिपोर्ट के अनुसार करनाल में पहले दिन एक भी रजिस्‍ट्रेशन नहीं हुआ है. जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक (डीएफएससी) अनिल कुमार के हवाले से अखबार ने लिखा, 'करनाल में अभी तक किसी भी चावल मिल मालिक ने सीएमआर के लिए रजिस्‍ट्रेशन नहीं कराया है. हमने 17 खरीद केंद्रों और अनाज मंडियों में खरीद के सभी इंतजाम कर लिए हैं.' 

मालिकों को क्‍या है आपत्ति

करनाल राइस मिलर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सौरभ गुप्ता का कहना है कि इंडस्‍ट्री को इस नई नीति से कुछ समस्याएं हैं. उन्होंने बताया, ' सरकार ने इस नीति में एक बड़ा बदलाव किया है और जो सबसे बड़ा बदलाव है उसके तहत टूटे हुए चावल की मंजूर मात्रा को 25 फीसदी से घटाकर 10 प्रतिशत करना है.' उनका कहना था कि यह अवास्तविक है क्योंकि टूटना स्वाभाविक है. उन्‍होंने बताया कि सरकार सिर्फ 2.23-3.33 रुपये प्रति क्विंटल की क्षतिपूर्ति करती है, जबकि वास्तविक लागत करीब 25 रुपये प्रति क्विंटल है. 

ट्रांसपोर्टेशन की खराब  सुविधाएं 

साथ ही गुप्ता ने खराब ट्रांसपोर्टेशन सुविधाओं की तरफ भी ध्यान दिलाया. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कई ट्रांसपोर्टर पर्याप्त वाहनों के बिना ही टेंडर हासिल कर लेते हैं, यहां तक कि फर्जी नंबर भी दे देते हैं. इससे पीक सीजन में धान की आवाजाही में देरी होती है. अगला कदम अब क्‍या होगा, इस पर  मंगलवार को मिल मालिकों और डीलरों की एक राज्य स्तरीय मीटिंग होगी. हरियाणा प्रदेश राइस मिलर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरजीत छाबड़ा ने कहा, 'कुछ मिल मालिकों ने रजिस्‍ट्रेशन कराया है लेकिन हम टूटे चावल और बोरियों की लागत पर सफाई चाहते हैं.' उन्‍होंने कहा कि एफसीआई 50 ​​किलो के दो बोरों के लिए 6 रुपये दे रहा है, जबकि बाजार में इसकी कीमत 30 रुपये है. 

पंजाब से कर रहे तुलना 

छाबड़ा ने दावा किया कि पड़ोसी राज्‍य पंजाब से अलग हरियाणा में अनलोडिंग, स्टैकिंग, कस्टडी और रखरखाव के लिए कोई पेमेंट नहीं होता है. उन्होंने बताया कि पंजाब के मिल मालिकों को इन कामों को 4.96 रुपये मिलते हैं, जबकि यहां कुछ भी नहीं दिया जाता है. वहीं उन्‍होंने राज्‍य में गोदामों की कमी का भी जिक्र किया. उनका कहना था कि मिल मालिकों को दूर के गोदामों के बजाय पास के गोदाम मिलने चाहिए.  मंगलवार को पेहोवा में होने वाली बैठक के बाद आखिरी फैसले का ऐलान किया जाएगा. 

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