गैर बासमती चावल की कीमत में मार्च 2024 में 10 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है. बाजार में सस्ती कीमत में भारत ब्रांड चावल उपलब्ध होने और व्यापारियों को हर हफ्ते अपने चावल स्टॉक की घोषणा करने के चलते कीमतें नीचे आई है. इसके अलावा चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगे होने की वजह से घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ गई है. इस बीच निर्यातकों को उम्मीद है कि सरकार चुनाव से पहले निर्यात पर लगा बैन हटा सकती है.
केंद्र सरकार ने भारत ब्रांड चावल बिक्री शुरू करने से और सप्ताह के हर शुक्रवार को चावल मिलों और ट्रेडर्स से चावल और धान के स्टॉक की घोषणा करने जैसे दोहरे कदम उठाने के बाद गैर बासमती चावल की कीमत में 10 फीसदी की गिरावट आई है. केंद्र सरकार सहकारी समितियों भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ लिमिटेड (NACMFI), भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ (NCCF) और रिटेल चेन केंद्रीय भंडार गृह के जरिए भारत ब्रांड चावल 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के पैक में 29 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बेच रही है.
बाजार में सुगंधित गोबिंदभोग चावल की कीमत जो 65 रुपये प्रति किलोग्राम थी वह थोक स्तर पर गिरकर 55 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. रिपोर्ट में कहा गया कि चावल का आपूर्ति पक्ष मजबूत है, जबकि निर्यात प्रतिबंध के साथ ही विदेशी बाजारों से मांग में भी कमी आई है. इंडस्ट्री से जुड़े सूत्र ने कहा कि साल के इस समय चावल की कीमतें आमतौर पर बढ़ जाती हैं. लेकिन इस साल कीमतों में गिरावट देखी जा रही है. निर्यात मांग कम होने से चावल की आपूर्ति अधिक बनी हुई है. इससे कीमतों में गिरावट आई है.
सरकार ने जुलाई 2023 में बढ़ी खाद्य कीमतों के कारण मुद्रास्फीति के दबाव को रोकने के लिए गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. उबले हुए चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया था और न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित किया था. बाद में सरकार ने बासमती चावल पर एमईपी घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया. इन वजहों से अप्रैल 2023 से जनवरी 2024 के बीच भारत का गैर बासमती चावल निर्यात 28.7 फीसदी गिर गया.
रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक महीने में भारतीय बासमती चावल की कीमतों में 100-200 डॉलर प्रति टन की गिरावट आई है. अभी मांग कम है. पाकिस्तान ने भारत के निर्यात बाजारों पर उस समय अपनी बढ़त बना ली जब भारत के चावल का न्यूनतम निर्यात मूल्य 1200 डॉलर प्रति टन निर्धारित किया गया था. इससे विदेशी खरीदारों से चावल की मांग में भी कमी आई है. इन सब वजहों के चलते घरेलू बाजार में चावल की अधिक उपलब्धता बन गई, जो कीमतों को नीचे लाने में मददगार साबित हुई है.
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