तमिलनाडु के कोयंबूटर जिले में नारियल की खेती करने वाले किसान इन दिनों बहुत दुखी हैं. उनका दावा है कि करीब पांच हजार एकड़ में फैले नारियल के पेड़ों को काट दिया गया है क्योंकि ये पेड़ केरल रूट विल्ट डिजीज रोग के शिकार हो गए हैं. इस बीमारी में पेड़ों की जड़ें पूरी तरह से सूख जाती हैं. किसानों का कहना है कि यह बीमारी काफी तेजी से फैल रही है और ऐसे में कई एकड़ नारियल के खेतों को तेजी से संक्रमित कर रही है. इससे पहले केरल और बेंगलुरु में भी नारियल के कई पेड़ों को काटा गया था.
किसानों का कहना है कि अगले दो सालों में अगर सरकार ने रोकथाम के कोई सही कदम नहीं उठाए तो फिर स्थिति गंभीर हो सकती है. बताया जा रहा है कि अगले दो सालों में नारियल के करीब दो लाख पेड़ काटे जा सकते हैं. किसानों को अभी सरकार की तरफ प्रति एकड़ 32 हजार रुपये बतौर मुआवजा दिया जा रहा है और उनका कहना है कि इतना मुआवजा काफी नहीं है. उनका कहना है कि इतनी रकम पर उनके लिए रोजाना का खर्च निकाल पाना भी मुश्किल है. उनकी मानें तो पेड़ों के काटे जाने की वजह से उनके सामने बड़ा आर्थिक संकट पैदा हो गया है. किसानों ने मांग की है कि सरकार को रूट डिजीज से प्रभावित किसानों को कम से कम तीन लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा दिया जाना चाहिए.
तमिलागा विवासायीगल पत्तुकप्पू संगम के फाउंडर इसन मुरुगासामी ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'कर्नाटक के बाद तमिलनाडु नारियल उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा राज्य है. यहां के 29 जिलों में करीब 12 लाख हेक्टेयर की भूमि पर इसकी खेती की जाती है जिसमें से 2.10 लाख एकड़ अकेले कोयंबटूर में है.' उनकी मानें तो मूंगफली के बाद नारियल राज्य में सबसे ज्यादा उगाया जाता है और यह तेल के उत्पादन में एक बड़ा रोल अदा करता है. वर्तमान समय में केरल विल्ट डिजीज के चलते तमिलनाडु को साल 2019 के बाद से सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा है. उनका कहना था कि रोकथाम के कोई उपाय न होने की वजह से ऐसा हुआ है. इसी कारण यह बीमारी अनियंत्रित हो गई है और ज्यादा एकड़ में अब तबाही मचा रही है.
उन्होंने बताया कि इस बीमारी को केरल में सफलतापूर्वक खत्म कर दिया गया है जबकि यह इसी राज्य से निकली थी. लेकिन तमिलनाडु हॉर्टीकल्चर विभाग की तरफ से अभी तक इस पर कोई भी एक्शन नहीं लिया गया है. उनकी मानें तो पिछले छह सालों से तमिलनाडु के एग्री रिसर्चर्स अपना समय सिर्फ सरकार से फंड लेने में ही गंवा रहे हैं जबकि रोकथाम के लिए कोई भी सही उपाय या उपचार वो अब तक तलाश नहीं पाए हैं. मुरुगासामी का दावा है कि इसकी वजह से इसके उत्पादन में 60 फीसदी तक की गिरावट आई है.
पोलाची के दक्षिण भारत नारियल उत्पादक संघ के संयुक्त सचिव टी रथिना सबापति ने कहा कि पोलाची के पास अलियार में सभी खेत विल्ट डिजीज से प्रभावित हैं. उनका कहना था कि एक बार एक अगर पेड़ में इनफेक्शन हो जाए तो पूरा खेत कुछ ही समय में तबाह हो जाएगा. एक एकड़ में प्रभावित पेड़ों को हटाने के लिए, किसानों को पेड़ों को काटने के लिए कम से कम 2 लाख रुपये और फिर से पौधे लगाने के लिए 3 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में वर्तमान मुआवजा काफी नहीं है.
पोलाची में किसानों से नारियल खरीदने वाले व्यापारी पी जीवननाथम ने कहा कि 2023 में कीमत 18-19 रुपये प्रति किलो थी. बीमारी के कारण पैदावार में भारी कमी आई है. आम तौर पर हम एक एकड़ में 2,000 नारियल इकट्ठा करते हैं. अब यह घटकर 800 नारियल रह गया है. इससे कीमत बढ़कर 55 रुपये प्रति किलो हो गई है. अगर पैदावार में गिरावट जारी रही तो यह और भी बढ़ सकती है. विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वो पेड़ों को मजबूत बनाने के लिए पोषक तत्व और जैविक दवाई दें ताकि इस बीमारी से उबर सकें.
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