पानी की कमी से यहां बढ़ा जल संकटकांगड़ा जिले के निचले इलाकों में पिछले दो महीनों से बारिश न होने से किसानों की चिंता बढ़ गई है. लगातार सूखे का असर गेहूं की फसल पर पड़ने लगा है, वहीं नदियों और झरनों में पानी का बहाव भी काफी कम हो गया है. इस सूखे का असर सिंचाई, पीने के पानी और छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के काम पर भी पड़ा है. कांगड़ा के कई इलाकों में औसत से कम बारिश हुई है, जिससे गेहूं की बुआई और ग्रोथ पर असर पड़ा है. किसानों को डर है कि अगर जल्द ही बारिश नहीं हुई, तो फसलों को नुकसान हो सकता है.
हालांकि, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के अधिकारियों का कहना है कि खड़ी फसलों को कोई खास खतरा नहीं है. एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि मौसम सुधरेगा और दिसंबर, जनवरी और फरवरी में अच्छी बारिश हो सकती है, जिससे फसलें बच जाएंगी.
IPH डिपार्टमेंट के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, कांगड़ा वैली में नदियों और झरनों में पानी का लेवल 40% तक गिर गया है. अगर और बारिश नहीं हुई, तो पीने के पानी का संकट और बढ़ सकता है.
कई सिंचाई नहरों में पानी का बहाव रुक गया है. कई इलाकों में, IPH डिपार्टमेंट दिन में सिर्फ़ दो बार पानी सप्लाई कर पा रहा है. पालमपुर के निचले इलाके सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, जहाँ पानी के लोकल सोर्स भी सूख गए हैं.
कांगड़ा घाटी में न्यूगल, बानेर, बिनवा और आवा खड्ड में चल रहे छोटे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पानी की कमी के कारण बंद हो गए हैं. धौलाधार रेंज में बर्फबारी की कमी से नदियों में पानी का प्राकृतिक सोर्स भी खत्म हो गया है.
हिमाचल प्रदेश में अभी मौसम की अजीब स्थिति है. सितंबर के पहले हफ्ते से बारिश नहीं हुई है. यह सूखा 2023 और 2007 जैसे सालों की याद दिलाता है, जब इसी समय के दौरान बारिश की कमी 99% तक पहुंच गई थी.
बर्फबारी आम तौर पर तब होती है जब नॉर्थ पोल से आने वाली ठंडी हवाएं मेडिटेरेनियन से आने वाली गर्म हवाओं से टकराती हैं. लेकिन इस साल, नॉर्थ पोल में हवा की स्पीड बहुत कम थी, जिससे लो-प्रेशर एरिया नहीं बन पाया, जिससे हिमाचल में बर्फबारी और बारिश का साइकिल बिगड़ गया. इस वजह से पूरे राज्य में ठंड बढ़ गई है, जबकि मैदानी इलाकों और निचले पहाड़ी इलाकों- जैसे कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर और सोलन में घना कोहरा छाया हुआ है.
किसान और स्थानीय लोग अब दिसंबर-जनवरी की बारिश पर निर्भर हैं. अगर आने वाले महीनों में मौसम सामान्य रहता है, तो फसलें, पीने के पानी के स्रोत और छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट सामान्य हो सकते हैं. लेकिन अगर सूखा जारी रहता है, तो पूरे क्षेत्र में आर्थिक और पानी का संकट गहरा सकता है.
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