प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी और मसाला फसल है. प्याज की मांग हमेशा रहती है. भारत में प्याज़ की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसका सबसे बड़ा रकबा महाराष्ट्र में होता है. देश के अधिकांश भागों में इसकी खेती रबी और खरीफ सीजन के दौरान होती है, लेकिन महाराष्ट्र में साल भर में तीन बार इसकी खेती होती है. रबी सीजन खत्म हो गया है. खरीफ सीजन आने वाला है. किसान अगर बुवाई के समय ही सही किस्मों का चयन करते हैं तो उन्हें अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों मिल सकता है. कृषि वैज्ञानिकों ने प्याज की ऐसी किस्मों और उसकी खेती के बारे में जानकारी दी है, जो किसानों को बंपर मुनाफा दे सकती हैं.
प्याज़ में प्रोटीन और बिटामिन भी कम मात्रा में होते हैं. प्याज में औषधीय गुण पाए जाते हैं. प्याज का सूप, अचार और सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है. भारत के प्याज उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं. महाराष्ट्र के बाद मध्य प्रदेश भारत का दूसरा सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है. भारत से प्याज का निर्यात मलेशिया, यूएई. कनाड़ा, जापान, लेबनान, कुवैत और बांग्लादेश सहित 70 से अधिक देशों में किया जाता है. आईए जानते हैं कि प्याज की प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं.
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भारत के सभी क्षेत्रों में इस किस्म को उगाया जा सकता है. इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन है. औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ में उगाया जाना उचित है.
यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है. यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 किवंटल तक उपज देती है.
यह किस्म भारत में सभी क्षैत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है. इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म खरीफ सीजन के लिए है.
प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है. प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा वलूई दोमट भूमि की जरूरत होती है. जिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो वह सर्वोत्तम होती है. प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए.
प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व हैं. खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए. इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाएं. जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए. भूमि को सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है. खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए.
प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. प्याज की फसल में उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए. गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन प्रति हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए.इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की जाती है. इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं.
पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें. इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए. पौधशाला का आकार 3 मीटर गुणे 0.75 मीटर रखा जाता है. दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती है, जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके. पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है. बुवाई से पूर्व खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं.
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