इस साल सरसों का उत्पादन घट सकता है, लेकिन पिछले साल की उत्पादकता से कम नहीं होगा. पिछले साल 1.44 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हुई थी. यह बात भरतपुर स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ रेपसीड-मस्टर्ड रिसर्च के डायरेक्टर पीके राय ने कही. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि आईसीएआर कम अवधि की सरसों की ऐसी किस्में विकसित कर रहा है जो जलवायु परिवर्तन के बदलावों से लड़ने में सक्षम होंगी और पैदावार भी नहीं घटेगी. यह किस्म दुनिया में सबसे कम अवधि में अच्छी उपज देने वाली वैरायटी होगी.
पीके राय ने कहा कि शुरू में मौसम को देखते हुए चिंता बढ़ गई थी. अधिक तापमान के चलते फसल की बुवाई में देरी से यह चिंता गंभीर हो गई थी. लेकिन अब स्थिति अच्छी हो गई है और उम्मीद है कि पिछले साल की पैदावार और 14.4 क्विंटल के लेवल से कम नहीं रहेगी. अभी तक किसी भी गंभीर बीमारी का खतरा सामने नहीं आया है. अगर इसी तरह का मौसम अगले 10-20 दिनों तक जारी रहता है, तो सरसों की पैदावार अच्छी मिलने की उम्मीद है.
इस बार सरसों की कम बुवाई की रिपोर्ट है जबकि सरकार ने किसानों को इसकी खेती में बढ़ावा देने के लिए नेशनल ऑयलसीड्स मिशन चलाया है. इसके बावजूद बुवाई कम हुई है तो इसके पीछे कुछ कारण हैं. देश में राजस्थान सरसों की खेती में अव्वल है जहां 46 फीसद सरसों का रकबा होता है. इसके अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. ऐसे में अगर कम बुवाई की बात करें तो इसके पीछे जलवायु से जुड़ी वजह खास है.
राजस्थान में सरसों बुवाई के समय तापमान अधिक था और यह 15 नवंबर तक चला जबकि अक्टूबर अंत तक सरसों बुवाई का सामान्य समय है. दूसरा कारण ये है कि राजस्थान में इस बार मॉनसून की अच्छी बारिश हुई. इसलिए कुछ इलाकों में किसानों ने अरहर तो कुछ इलाकों में गेहूं की खेती कर ली. कुछ इलाकों में सरसों की खेती इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि खेत में बारिश का पानी नहीं सूख पाया था. सही समय पर सही बीजों की उपलब्धता भी एक बड़ा कारण है. इस वजह से भी बुवाई में देरी हुई है.
इसे देखते हुए आईसीएआर कम दिनों वाली सरसों की किस्में विकसित कर रहा है. अभी 120 दिनों में पैदावार देने वाली किस्में हैं, लेकिन 100-110 दिनों में पकने वाली किस्मों पर काम हो रहा है. लेकिन बीजों की अवधि घटाने पर उनकी उपज प्रभावित होने का खतरा रहता है. इसलिए नई वैरायटी बनाने में इस बात पर अधिक ध्यान है कि पैदावार कम नहीं हो. अगर ऐसा होता है तो यह बड़ी उपलब्धि होगी. सरसों की जल्द पकने वाली किस्मों पर काम हो रहा है क्योंकि यह समय की मांग है. ऐसी किस्में देर से बोने के बावजूद समय पर कटती हैं, लेकिन पैदावार में कमी नहीं आती.
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