पंजाब इस समय विनाशकारी बाढ़ की चपेट में है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है. फसलों के साथ-साथ फल बागवानी को भी बहुत क्षति पहुंची है, जो राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है. पंजाब में लगभग 50 हजार हेक्टेयर में किन्नू की खेती होती है, और यह राज्य का सबसे प्रमुख फल है. इसके अलावा अमरूद, आम और नाशपाती जैसे फल भी हजारों किसानों की आय का मुख्य स्रोत हैं. चिंता की बात यह है कि कई बागों, विशेषकर किन्नू के बागों में हफ्तों से पानी भरा हुआ है, जिससे पेड़ों की जड़ें गलने और उनके सूखने का गंभीर खतरा पैदा हो गया है. इस संकट की घड़ी में, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU), लुधियाना के वैज्ञानिकों ने बागों को बचाने के लिए कुछ वैज्ञानिक सलाह दी है, जिन्हें अपनाकर किसान इस बड़े नुकसान को कम कर सकते हैं.
बागों को बचाने की दिशा में सबसे पहला काम है कि जैसे ही संभव हो, हर किसान को बिना देरी किए तीन काम करने चाहिए. पहला, बाग से पानी की निकासी करें. यह सबसे जरूरी है. इसके लिए नालियां खोदें या पंप लगाकर खेतों में जमा पानी को जल्द से जल्द बाहर निकालें, क्योंकि जड़ों के पास पानी जितनी देर खड़ा रहेगा, नुकसान उतना ही ज्यादा होगा. दूसरा, पेड़ों के तनों के आसपास सफाई करें. पानी उतरने के बाद पेड़ के चारों ओर जमा हुई गाद, मिट्टी, पत्ते और कचरे को हटा दें. यह सफाई फंगस और अन्य बीमारियों को पनपने से रोकती है. तीसरा, क्षतिग्रस्त टहनियों की सावधानी से छंटाई करें. बाढ़ और तेज पानी के कारण जो टहनियां टूट गई हैं या खराब हो गई हैं, केवल उन्हें ही काटें. इस समय स्वस्थ टहनियों को बिल्कुल न छेड़ें, क्योंकि ज्यादा छंटाई करने से कमजोर पेड़ पर और अधिक तनाव पड़ सकता है.
किन्नू के बाग में मिट्टी थोड़ी सूख जाए और चलने लायक हो, तो जड़ों को फंगस से बचाने के लिए उपाय करें. इसके लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़ के तने के चारों ओर मिट्टी में अच्छी तरह डालें और ड्रेंचिंग करें. जब खेत से पानी पूरी तरह निकल जाए, तो मिट्टी में हल्की गुड़ाई करें. इससे जड़ों तक हवा पहुंचेगी और उन्हें सांस लेने में मदद मिलेगी, जिससे पेड़ जल्दी स्वस्थ होगा. बाढ़ का पानी मिट्टी के जरूरी पोषक तत्वों को बहा ले जाता है. इसकी भरपाई के लिए सामान्य मात्रा से 10-15 फीसदी अधिक नाइट्रोजन और पोटाश डालें. कमजोर जड़ों के कारण हो सकता है कि पेड़ मिट्टी से पोषक तत्व न ले पाएं, इसलिए जिंक (zinc) जैसे पोषक तत्वों का पत्तियों पर छिड़काव करना भी फायदेमंद रहेगा.
सभी किस्म के फल बाग से पानी पूरी तरह निकल जाए और मिट्टी में चलने लायक स्थिति बन जाए, तो सारा ध्यान पेड़ों की जड़ों को बचाने पर केंद्रित करना चाहिए. लंबे समय तक पानी में डूबे रहने के कारण पेड़ों में जड़ सड़न (Root Rot) का खतरा सबसे अधिक होता है. इससे बचाव के लिए फफूंदनाशक का उपयोग अनिवार्य है. इसके लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़ के तने के चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह भिगो दें. यह जड़ों को गलने से बचाने में मदद करेगा. इसके बाद, जब मिट्टी थोड़ी सूख जाए और भुरभुरी होने लगे, तो पेड़ों के चारों ओर हल्की गुड़ाई करें. ऐसा करने से मिट्टी में हवा का संचार बेहतर होता है, जिससे जड़ों को सांस लेने में मदद मिलती है और पेड़ के ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है.
बाढ़ का पानी अपने साथ मिट्टी के कई जरूरी पोषक तत्वों को भी बहा ले जाता है, जिससे सभी फलों के पेड़ कमजोर हो जाते हैं. इन पोषक तत्वों की भरपाई के लिए, सामान्य मात्रा से 10 से 15 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन और पोटाश उर्वरक डालें. चूंकि बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुई जड़ें मिट्टी से पोषक तत्व ठीक से नहीं ले पातीं, इसलिए जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का पत्तियों पर छिड़काव यानी फोलियर स्प्रे करना बहुत फायदेमंद साबित होगा.
इसके अलावा, कमजोर पेड़ों पर कीटों और बीमारियों का हमला आसानी से हो सकता है, इसलिए बागों की निरंतर निगरानी करें. विशेष रूप से किन्नू में फल गिरने, अमरूद में एंथ्रेक्नोज यानी पत्तों पर काले धब्बे पड़ते हैं और नाशपाती में फल-मक्खी जैसी समस्याओं पर कड़ी नजर रखें. कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत विशेषज्ञों की सलाह लें और याद रखें कि इन पेड़ों को पूरी तरह से स्वस्थ होने में समय लगेगा, इसलिए धैर्य के साथ उनकी देखभाल करते रहें.
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