चना भारत की प्रमुख फसल के रूप में जाना जाता है. अगर हम बात करें चने की खेती की तो हमारे देश में किसान इसे बड़े पैमाने पर करते है. चना ऐसी फसल है जिसकी हर एक चीज इस्तेमाल में ली जाती है. चाहे उसका बीज यानी दाल हो या फिर पत्तियां और पौधा. चना सब्जी बनाने के काम भी आता है जबकि पौधे का बाकी बचा हिस्सा पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है. बाजार में चने की मांग हमेशा बनी रहती है. ऐसे में किसान अगर इसकी सही तरीके से खेती करते हैं तो अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं.
असिंचित अवस्था में चने की बुआई अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है. इस खरीफ सीजन में किसान इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. चने की खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में की जाती है. ये राज्य चना के मुख्य उत्पादक राज्य हैं.
चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती के लिए ऐसी भूमि का चयन करें जहां जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था हो. पौधों के अच्छे विकास के लिए 5.5 से 7 पी एच वाली मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है.
जी. एन. जी. 2171 (मीरा)
इसकी फली में 2 या 2 से अधिक दाने पाए जाते हैं. ये किस्म लगभग 150 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी जाती है.
जी.एन. जी. 1958 (मरुधर)
इसके बीज का रंग हल्का भूरा होता है. इसकी फसल 145 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है
जी.एन. जी. 1581 (गणगौर)
इसके बीज का रंग हल्का पीला होता है. इसकी औसत उपज 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है. इस चने की मांग सब्जियों के रूप में अधिक देखी गई है.
चने की फसल के लिए ज्यादा समतल बेडों की जरूरत नहीं होती. यदि इसे मिक्स फसल के तौर पर उगाया जाए तो खेत की अच्छी तरह से जोताई होनी चाहिए. यदि इस फसल को खरीफ की फसल के तौर पर बीजना हो, तो खेत की मॉनसून आने पर गहरी जोताई करें, जो बारिश के पानी को संभालने में मदद करेगा.
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सिंचित चने की बुवाई 20 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करें. हालांकि, इसके लिए सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक का माना जाता है. प्रति हेक्टेयर तकरीबन 60 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. वहीं, जी.एन. जी. 469 (सम्राट) जैसी किस्मों की बुवाई करने पर 75 से 85 किलो बीजों की आवश्यकता पड़ती है. इसके अलावा काबुली चने की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा 100 किलो रखनी चाहिए.
पौधों को कीटों से बचाने के लिए चने की खेती के दौरान समय-समय पर सिंचाई अवश्य करें. पहली सिंचाई के 55 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करें और तीसरी सिंचाई 100 दिनों में करनी चाहिए.
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