बुवाई में कमी की वजह से बढ़ा जीरे का भाव, पिछले 3 सालों का तोड़ा रिकॉर्ड

बुवाई में कमी की वजह से बढ़ा जीरे का भाव, पिछले 3 सालों का तोड़ा रिकॉर्ड

जीरे की कीमतें ने बाजारों में महंगाई का तड़का एक बार फिर लगा दिया है. जिस वजह से पिछला सारा रिकॉर्ड टूट चुका है. पिछले दो महीनों में जीरे की कीमतों में 12-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं एक साल पहले की कीमत पर नजर डालें तो यह लगभग ₹ 16,300 पर स्थिर थी.

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बुवाई में कमी की वजह से बढ़ा जीरे का भाव, पिछले 3 सालों का तोड़ा रिकॉर्डजीरे की बढ़ी कीमत, तोड़ा रिकॉर्ड

महंगाई पर एक बार फिर जीरा का तड़का लग चुका है. लोअर कैरीओवर स्टॉक (lower carryover stock) के मुताबिक, गुजरात के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में जीरे की बुवाई प्रभावित हुई है. बुवाई प्रभावित होने की आशंका के कारण बाजारों में जीरे की कीमतें ने पिछला सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया है. बाजार में, जीरा दिसंबर अनुबंध (contract) के लिए 26,700 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है. वहीं नवंबर 2017 की बात करें तो इस महीने की आखिरी में जीरे का भाव  22,000 रुपये था. पिछले दो महीनों में जीरे की कीमतों में 12-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं एक साल पहले की कीमत पर नजर डालें तो यह लगभग 16,300 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर थी.

गुजरात के मेहसाणा जिले में जीरे का केंद्र ऊंझा कृषि उत्पाद विपणन समिति (यार्ड) में कीमतें 1 नवंबर से 21,575 रुपये प्रति क्विंटल से 10 प्रतिशत बढ़कर 23,625 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. वहीं पूरे भारत के जीरा उत्पादन आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो भारत में लगभग 4.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में जीरा की खेती की जाती है, जिससे 1.5 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता है. ऐसे में इस बार 47 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.

प्रमुख क्षेत्र में 47 फीसदी की गिरावट

आई गिरावट को देखते हुए कारोबारियों ने गुजरात में कम रकबे के साथ-साथ कैरीओवर स्टॉक (lower carryover stock) द्वारा बताए गए कम अनुमानों को बढ़ने का श्रेय दिया, जिस कारण आपूर्ति में गिरावट आ सकती है. गुजरात के कृषि निदेशक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि जीरे की बुआई इस साल 2.24 लाख हेक्टेयर में पूरी हो चुकी है, जो तीन साल के औसत 4.21 लाख हेक्टेयर से 47 फीसदी कम है.

गुजरात में 10-15 फीसदी कम हुई बुवाई

गुजरात में 10-15 फीसदी कम बुवाई दर्ज की गई है, जबकि राजस्थान में जीरे की बुवाई की क्षेत्रफल में वृद्धि देखी गई है. इसके अलावा गर्म मौसम को लेकर भी चिंताएं जताई गयी है. कोलकाता के मसाला कारोबारी प्रेमचंद मोट्टा ने कहा ऐसे में मंडी पर नजर बनाए रखने की जरूरत है. हालांकि इसको लेकर वैश्विक उत्पादकों द्वारा अगले साल जून में अपनी फसल संख्या के साथ बाहर आने तक बाजार की चाल पर कड़ी नजर रखने की सलाह भी दी है.   

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