भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया में कपास का बाजार काफी बड़ा है. दुनियाभर में कॉटन फैब्रिक की भारी डिमांड रहती है. ऐसे में भारत में कपास का उत्पादन बढ़ाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. इसी क्रम में महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित आईसीएआर के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान ने कपास की चार हाइब्रिड किस्में विकसित की हैं, जिन्हें पीएम नरेंद्र मोदी ने इसी साल अगस्त में जारी किया था. किसानों को इन कपास किस्मों की खेती से अच्छा लाभ हो सकता है. ये नई किस्में अलग-अलग इस्तेमाल और जलवायु के हिसाब से विकसित की गई हैं, जो कई प्रकार के रोगों से लड़ने में सक्षम है. जानिए इनके बारे में...
शालिनी CNH-17395 कपास किस्म वर्षा आधारित खरीफ फसल है, जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में खेती के लिए उपयुक्त है. इसका रंग भूरा होता है, जो हथकरघा बुनाई के लिए विकसित की गई है. इससे प्रति हेक्टेयर 14.41 क्विंटल उपज हासिल की जा सकती है. इसकी फसल 160 से 165 दिनों में तैयार हो जाती है. यह रस चूसक कीटों, बॉलवर्म के प्रति सहनशील है और वर्षा आधारित परिस्थितियों में मध्य क्षेत्र में अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, बैक्टीरियल ब्लाइट, कोरीनेस्पोरा लीफ स्पॉट जैसे रोग नहीं लगेंगे.
सीआईसीआर-एच बीटी कॉटन 65 वर्षा आधारित खेती के लिए बेस्ट है. इससे 15.47 क्विंटल/हेक्टेयर पैदावार हासिल की जा सकती है. इसकी फसल परिपक्वता की अवधि 140-150 दिन की है. यह ज्यादातर रोगों जीवाणुजनित अंगमारी, ग्रे फफूंद, अल्टरनेरिया, कोरिनोस्पोरा पत्ती धब्बा, मायरोथसीयम के प्रति प्रतिरोधी है. वहीं यह जैसिड्स, एफिड्स, थ्रिप्स, लीफ हॉपर जैसे कीटों के प्रति सहनशील है. यह सेंट्रल ज़ोन के राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है.
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सीआईसीआर- एच बीटी कॉटन 40 बारिश आधारित खेती के अनुकूल है. इससे 17.30 क्विंटल/हेक्टेयर उपज हासिल की जा सकती है. इसकी फसल को पकने में 140 से 150 दिन का समय लगता है. यह जैसिड, थ्रिप्स, व्हाइटफ्लाई, एफिड्स कीटों के प्रति प्रतिराेधी है. इसके अलावा यह जीवाणु पत्ती झुलसा, अल्टरनेरिया पत्ती झुलसा, ग्रे फफूंद से लड़ने में सक्षम है. यह साउथ ज़ोन के राज्यों तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में खेती के लिए बेस्ट है.
सीएनएच- 18529 कपास मध्य क्षेत्र की वर्षा आधारित और सिंचित खेती के लिए विकसित किया गया है. इससे 10.11 क्विंटल/हेक्टेयर उपज हासिल की जा सकती है. इसकी फसल को तैयार होने में 160-165 दिन का समय लगता है. कपास की यह किस्म एफिड्स, जैसिड्स, व्हाइटफ्लाई, थ्रिप्स, हेलियोथिस आर्मीजेरा, गुलाबी बॉलवर्म के प्रति सहनशील है, जबकि अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, ग्रे फफूंद, बैक्टीरियल ब्लाइट, कोरीनेस्पोरा लीफस्पॉट, रस्ट जैसे रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. यह छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में खेती के लिए बेस्ट है.
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