केंद्र सरकार मक्का का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है. ताकि इथेनॉल उत्पादन और पोल्ट्री उद्योग की जरूरतों को पूरा किया जा सके. लेकिन दूसरी ओर अभी जितना उत्पादन हो रहा है उस पर भी किसानों को उचित भाव नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान क्योंं उत्पादन बढ़ाने के लिए आगे आएंगे. भारत से मक्का एक्सपोर्ट होने के बावजूद स्थानीय बाजारों में दाम एमएसपी से कम है. इस वक्त मक्का की एमएसपी 1962 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि किसानों को ओपन मार्केट में इसका दाम 1400 से 1700 की रेंज में ही मिल रहा है. ऐसे में जब तक किसानों को अच्छी दाम की उम्मीद नहीं दिखाई देगी तब तक वो मक्का उत्पादन नहीं बढ़ाएंगे. कई राज्यों में एमएसपी पर मक्का की खरीद नहीं होती, जिसका फायदा व्यापारियों को मिलता है.
देश की कई मंडियों में दाम एमएसपी से कम ही है. राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम पोर्टल पर भी किसानों को इसका भाव एमएसपी से कम ही मिल रहा है.पिछले कुछ हफ्तों में कीमतों में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट के साथ, व्यापारी बाजार के स्थिर होने का इंतजार कर रहे हैं. कर्नाटक के एक प्रमुख बाजार, दावणगेरे में मक्का का मॉडल मूल्य वर्तमान में लगभग 1,850 रुपये तक गिर गया है. नतीजतन, निर्यातकों ने वर्तमान में अपने प्रस्ताव को 25 डॉलर प्रति टन घटाकर 280 डॉलर फ्री-ऑन-बोर्ड (एफओबी) कर दिया है.
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हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि मकई के निर्यात को फ़ीड, स्टार्च और इथेनॉल की घरेलू मांग की वजह से चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में अगले कुछ हफ्तों में कर्नाटक में मक्के की कीमतें बढ़ सकती हैं. मकई की कीमतों में मुख्य रूप से रबी की कटाई की गति पर गिरावट आई और उत्पादन केंद्र के 34.61 मिलियन टन (mt) के रिकॉर्ड अनुमान से अधिक होने की उम्मीद है. हालांकि वर्तमान पेशकश की कीमतें अन्य गंतव्यों की तुलना में कम हैं, विशेष रूप से पाकिस्तान जो हाल ही में एशियाई क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बन गया है, ऐसे में निर्यात मांग अभी तक नहीं उठी है. एग्री कमोडिटी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एम मदन प्रकाश ने कहा, "कुछ शिपमेंट वियतनामी बंदरगाहों पर रोके गए हैं क्योंकि वे खरीदारों के साथ बातचीत कर रहे हैं."
मुंबई स्थित मुबाला एग्रो कमोडिटीज के निदेशक मुकेश सिंह ने कहा, 'कुछ हफ्तों के भीतर, मकई की कीमतों में 30 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. बाजार में स्थिरता आने तक व्यापारी खुद को प्रतिबद्ध नहीं करना चाहेंगे. इसलिए, निर्यात मांग धीमी है. मुझे उम्मीद है कि आने वाले महीनों में मांग में कमी आएगी, क्योंकि ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे पारंपरिक निर्यातकों ने फसल का मौसम शुरू कर दिया है. नतीजतन, मक्का के लिए भारत की निर्यात खिड़की अपेक्षाकृत कम होने की उम्मीद है. व्यापार विश्लेषक एस चंद्रशेखरन ने कहा “निर्यात हो रहा है लेकिन धीमी गति से. भारतीय मक्का की मांग है. लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि इसकी कीमत कैसी है. माल ढुलाई दरों में गिरावट के साथ, ब्राजील और अमेरिका जैसे देश वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बन गए हैं."
कारोबारियों के एक वर्ग का मानना है कि मकई की खेप से मांग को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन चंद्रशेखरन ने कहा कि गेहूं के कम उत्पादन और टूटे चावल की कम उपलब्धता के कारण मोटे अनाज का उठाव सीमित होने से घरेलू कीमतें बढ़ सकती हैं. उन्होंने कहा कि चारे के रूप में मक्का की मांग बढ़ेगी क्योंकि इस साल गेहूं का उत्पादन कृषि मंत्रालय के अनुमान से कम रहने की संभावना है. दूसरी ओर, टूटे चावल की उपलब्धता कम है क्योंकि देश के पूर्वी भागों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की कमी के कारण खरीफ धान का उत्पादन प्रभावित हुआ था.
"घरेलू मक्का की मांग इस वर्ष 2.3 प्रतिशत बढ़कर 28.8 मिलियन टन होने की उम्मीद है, जो फ़ीड मांग में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 17 मिलियन टन हो गई है. खाद्य और औद्योगिक मांग 2 प्रतिशत बढ़कर 11.7 मिलियन टन हो जाएगी. इसलिए मक्का मजबूत विकास उन्नति के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक प्रसाद ने कहा कि मांग में कमी के साथ-साथ वैकल्पिक चारा अनाज के लिए मजबूत कीमतें मक्का की कीमतों में तेजी बनाए रखेंगी.
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