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Tea Farming: चाय की खेती पर क्लाइमेट चेंज की मार, रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी बिगाड़े हालात

Tea Farming: चाय की खेती पर क्लाइमेट चेंज की मार, रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी बिगाड़े हालात

चाय के साथ एक बड़ी समस्या इसकी लागत बढ़ने की भी है. क्लाइमेट चेंज ने जहां एक और इसके उत्पादन को प्रभावित किया है, तो दूसरी ओर पहले से इसकी खेती की लागत भी बढ़ गई है. एक साल का हिसाब देखें तो चाय की खेती का खर्च 30 फीसद तक बढ़ गया है.

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चाय के उत्पादन पर क्लाइमेट चेंज का असर देखा जा रहा है चाय के उत्पादन पर क्लाइमेट चेंज का असर देखा जा रहा है

बाकी चीजों की तरह चाय की खेती भी क्लाइमेट चेंज की मार से अछूती नहीं है. जिंदगी के हर पड़ाव पर जलवायु परिवर्तन का असर दिख रहा है. सो, चाय की खेती भी इससे प्रभावित है. हम यहां खास तौर पर दार्जीलिंग चाय की बात कर रहे हैं जिसकी क्वालिटी पूरी दुनिया में सबसे अच्छी मानी जाती है. विदेशी बाजारों में इस चाय की मांग सबसे अधिक है. लेकिन क्लाइमेट चेंज ने इसक उत्पादन को कम कर दिया है. 'इंडियास्पेंड' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1993 और 2002 की तुलना में आज चाय का उत्पादन बड़े पैमाने पर घट गया है. जलवायु परिवर्तन से सालाना बारिश, तापमान और सूरज की रोशनी का पैटर्न प्रभावित हुआ है जिसका दुष्प्रभाव चाय की खेती पर देखा जा रहा है.

जलवायु परिवर्तन की मार के अलावा देसी और विदेशी बाजारों में दार्जीलिंग चाय की खपत भी घटी है. जानकारों का कहना है कि हालात तब से और भी खराब हुए हैं जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ है. 2022 में इन दोनों देशों के बीच लड़ाई छिडऩे के बाद विदेशी बाजारों में दार्जीलिंग चाय की खपत घटी है. 

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घट रहा चाय का उत्पादन 

टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने एक आंकड़ा जारी किया है जिसके मुताबिक साल 2021 में दार्जीलिंग चाय का उत्पादन महज 70 लाख किलोग्राम रहा था. एक तरह चाय की पैदावार घटी है, तो दूसरी ओर रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विदेशों में चाय की खरीदारी में कमी आई है. रूस पर अभी कई देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है जिससे वहां के निर्यात में कमी देखी जा रही है. इस युद्ध की वजह से कई यूरोपीय देशों ने दार्जीलिंग चाय की खरीद या तो बंद कर दी है या पहले से कम कर दी है.

चाय के दाम पर मंदी का असर

यूरोप में अभी मंदी का दौर चल रहा है. एक्सपर्ट कहते हैं कि 2022 नवंबर तक 2.84 मिलियन किलो चाय का निर्यात हो सका जबकि 2021 में यह मात्रा 3.5 मिलियन किलो था. यूरोप के अलावा जापान भी दार्जीलिंग चाय का बहुत बड़ा खरीदार है. लेकिन डॉलर के मुकाबले जापानी करंसी येन की गिरती कीमतों के चलते जापानी खरीदारों को दार्जीलिंग से घाटा हो रहा है. इस वजह से जापान में इस चाय की खपत घटी है.

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लागत बढ़ने से किसान परेशान

चाय के साथ एक बड़ी समस्या इसकी लागत बढ़ने की भी है. क्लाइमेट चेंज ने जहां एक और इसके उत्पादन को प्रभावित किया है, तो दूसरी ओर पहले से इसकी खेती की लागत भी बढ़ गई है. एक साल का हिसाब देखें तो चाय की खेती का खर्च 30 फीसद तक बढ़ गया है. लेकिन पिछली चार नीलामियों में दार्जीलिंग चाय की कीमत उस हिसाब से नहीं बढ़ी है. इससे चाय किसानों को भारी घाटा झेलना पड़ रहा है.