चना फसल के लिए बेहद घातक है यह रोग, थोड़े समय में ही तबाह कर देता है खेत, ऐसे करें बचाव

चना फसल के लिए बेहद घातक है यह रोग, थोड़े समय में ही तबाह कर देता है खेत, ऐसे करें बचाव

इस समय तक बड़ी संख्‍या में किसान चना की बुवाई कर चुके किसानों के खेत में फसल में कई रोगों और कीटों के हमले का खतरा रहता है. आज हम आपको चना फसल के ऐसे खतरनाक रोग के बारे में बताने जा रहे हैं, जो फसल चौपट करने में ज्‍यादा समय नहीं लेता. इसकी रोकथाम और बचाव के लिए ये उपाय करना चाहिए.

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चना फसल के लिए बेहद घातक है यह रोग, थोड़े समय में ही तबाह कर देता है खेत, ऐसे करें बचावचने की खेती

रबी की प्रमुख दलहन फसल चना की बुवाई का समय चल रहा है. कृषि एक्‍सपर्ट्स के मुताबिक, चना फसल की बुवाई 15 दिसंबर तक कर लेनी चाहिए. बुवाई में देर होने पर पैदावार काफी हद तक घट सकती है. साथ ही देरी से बुवाई पर इसमें चना फली भेदक कीट का खतरा भी ज्‍यादा रहता है. इसलिए चने की फसल की बुवाई के लिए अक्टूबर का पहल हफ्ता चने की बुआई के लिए सबसे अच्‍छा होता है. असिंचित अवस्था में अक्टूबर के दूसरे हफ्ते तक चने की बुवाई कर देनी चाहिए.

हर साल बड़ी संख्‍या में ऐसे किसान होते हैं, जो किसी कारण से फसल समय पर नहीं बो पाते या बिना उपचार के बीज की बुवाई कर देते हैं. ऐसे में उनकी फसल पर कई प्रकार के रोगों और कीटों के प्रकोप का खतरा रहता है. आज हम आपको चना फसल के एक ऐसे ही खतरनाक रोग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी समय पर रोकथाम न की जाए तो यह पूरी फसल को चौपट कर सकता है. इसका नाम उकठा रोग है. 

पूरे खेत में फैल सकता है रोग

उकठा रोग प्रमुख रूप से चने की फसल को नुकसान पहुंचाता है. इस रोग का प्रकोप इतना भयावह है कि पूरा खेत इसकी चपेट में आ जाता है. इस रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूंद है. यह मिट्टी और बीजजनित रोग है. यह रोग पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकता है. उकठा रोग के लक्षण शुरुआत में खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाते हैं. इस रोग में पौधे की पत्तियां सूख जाती हैं, उसके बाद पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है. ग्रसित पौधे की जड़ के पास चीरा लगाने पर उसमें काली-काली संरचना दिखाई पड़ती है.

बीजोपचार के बाद करें बुवाई

उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुआई अक्टूबर के अन्त या नवंबर के पहले हफ्ते में कर देनी चाहिए. कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या कार्बोक्सिन या + 2 ग्राम थीरम या 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी + 1 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें. ऐसा करने से फसल पर इस रोग का बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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रोग लगने पर करें ये उपाय

फसल में उकठा रोग की शुरुआत होने पर कवकनाशी का इस्‍तेमाल करते समय स‍ही मिश्रण और सुरक्षा उपाय करने चाहिए. फसल में उकठा की रोकथाम के लिए रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लयू.पी.0.2 प्रतिशत घोल का पौधों की जड़ में छिड़कें.

इन किस्‍मों में नहीं लगता उकठा रोग

उन्नत देसी प्रजातियां जैसे-पूसा-372, जेजी 11, जेजी 12, जेजी 16, जेजी 63, जेजी 74, जेजी 130, जेजी 32, आरएसजी 888, आरएसजी 896, डीसीपी-92-3, हरियाणा चना-1, जीएनजी 663 व उन्नत काबुली प्रजातियां जैस-पूसा चमत्कार, जवाहर काबुली चना-1, विजय, फूले जी-95311, जेजीके 1, जेजीके 2, जेजीके 3 आदि उकठा रोगरोधी का चयन करें.

उकठा रोग कई दलहन फसलों में लगता है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिस खेत में उकठा रोग फैल चुका हो, उसमें कुछ सालों तक अरहर की खेती नहीं करनी चाहिए.

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