जलवायु परिवर्तन के असर से बिहार काफी प्रभावित है. अगर बीते कुछ सालों पर नजर दौड़ाएं तो जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि सहित पशुपालन के क्षेत्रों में कई रोगों का प्रकोप बढ़ा है. वहीं इस साल जिस तरह से मौसम की लुका छिपी देखने को मिल रही है. इससे लीची के उत्पादन पर असर देखने को मिल सकता है. वैसे बिहार की शाही लीची ने अपने स्वाद के लिए देश सहित विश्व में नई पहचान बनाई है. मगर इस बार विंटर सीजन के दौरान करीब पूरे दिसंबर न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी होने की वजह से लीची के उत्पादन में कमी को लेकर संशय बना हुआ है.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर के निदेशक विकास दास कहते हैं कि इस बार दिसंबर मध्य तक लीची के पेड़ों पर नये पत्ते आए हैं. जबकि इस दौरान ऐसा नहीं होना चाहिए. अगर दिसंबर के मध्य तक पत्ते आते हैं, तो इसका सीधा असर लीची उत्पादन पर देखने को मिलता है. वहीं पिछले सात से आठ साल के दौरान लीची में कई नये रोगों का प्रकोप भी बढ़ा है. हालांकि, उनका कहना है कि लीची के पेड़ पर मंजर आने के बाद ही उत्पादन को लेकर किसी तरह की भविष्यवाणी की जा सकती है.
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बता दें कि बीते एक सप्ताह से अधिक दिनों से राज्य में शीतलहर का प्रकोप देखने को मिल रहा है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह ठंड आम सहित लीची के लिए काफी फायदेमंद रहने वाला है. गेहूं के लिए वरदान साबित हो रहा. मगर दिसंबर में जरूरत से अधिक न्यूनतम तापमान में वृद्धि ने अपना असर लीची पर दिखा चुका है.
डॉ. विकास दास कहते हैं कि अगर किसी भी लीची के पेड़ पर अक्टूबर मध्य तक नया पत्ता आता है, तो वह लीची उत्पादन के लिए शुभ माना जाता है. अगर अक्टूबर के मध्य से दिसंबर मध्य तक नये पत्ते आते हैं, तो उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है. क्योंकि पूरी ठंड के दौरान पौधे पूरी तरह से शुष्क रहते हैं. उस समय अवधि में लीची के बगीचे में छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए. इस दौरान टहनियों में मंजर(फूल ) तैयार होते हैं. अगर इस दौरान पत्ते आते हैं, तो वह मंजर को मिलने वाली शक्ति पत्ते को मिल जाती है. जिसकी वजह से उत्पादन पर असर देखने को मिलता है. आगे वह बताते हैं कि अभी राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में लगे लीची के 20 से 25 प्रतिशत हिस्से पर दिसंबर में नये पत्ते आए हैं. ऐसे में अनुमान है कि करीब इतना प्रतिशत उत्पादन पर असर पड़ेगा.
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राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक कहते हैं कि अगर पिछले 30 सालों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो केवल मुजफ्फरपुर के न्यूनतम तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. वहीं बीते आठ सालों से गंधी कीट का प्रभाव लीची के पेड़ों पर अधिक दिखाई दे रहा है. इस कीट का प्रकोप अक्टूबर और लीची के पेड़ पर मंजर आने के दौरान अधिक देखने को मिलता है. इस कीट का अटैक जिस पेड़ पर होता है, उस पर एक भी फल नहीं आता है. वहीं लीची के पेड़ पर मंजर आने के बाद ही उत्पादन को लेकर विश्लेषण करना सही होगा.
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