Early Vegetable Farming: लौकी, करेला और तोरई की खेती के लिए अपनाएं ये बेहतरीन टिप्स, मिलेगा बेहतर मुनाफा

Early Vegetable Farming: लौकी, करेला और तोरई की खेती के लिए अपनाएं ये बेहतरीन टिप्स, मिलेगा बेहतर मुनाफा

लता या बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, तोरई, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिंडा, करेला की खेती मैदानी भागों में जाड़े के मौसम के बाद मार्च से लेकर जून तक की जाती है. अगर सही से तकनीक का इस्तेमाल करके इन सब्जियों की अगेती खेती करते हैं, तो आप अगेती उपज लेकर काफी मुनाफा कमा सकते हैं.

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Early Vegetable Farming:  लौकी, करेला और तोरई की खेती के लिए अपनाएं ये बेहतरीन टिप्स, मिलेगा बेहतर मुनाफाअगेती लौकी, करेला, और तोरई की खेती करें

आज के समय में पुराने तरीके से खेती करने से ज्यादा मुनाफा नहीं हो रहा है. हालांकि, आधुनिक तकनीकों का सही से इस्तेमाल कर बाजार की मांग के अनुसार खेती करने से आप हमेशा फायदे में रह सकते हैं. सामान्यत: लता या बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, तोरई, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिंडा, करेला की खेती मैदानी भागों में जाड़े के मौसम के बाद मार्च से लेकर जून तक की जाती है क्योंकि बहुत से खेत मार्च में रबी फसलों से खाली होते हैं. तब इसकी खेती करते हैं. इन सब्जियों की अगेती खेती करते हैं, तो अगेती उपज लेकर काफी मुनाफा कमा सकते हैं. इसके लिए रबी फसलों से मार्च में खेत खाली होने के पहले ही कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध नर्सरी में तैयार कर लें और मार्च में इन सब्जियों के मुख्य खेत में पौध रोपाई करें और अगेती उपज तैयार कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.

नर्सरी थैली की तैयारी

अधिक मुनाफा और अधिक उपज के लिए, जनवरी-फरवरी के महीने में लौकी, तोरई, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिंडा, करेला जैसी गर्मी वाली सब्जियों के पौधों को तैयार करने के लिए इनके बीज को पॉलीथिन थैलियों में बोया जाता है. जिनका आकार 10 x 7 सेंटीमीटर या 15 x 10 सेंटीमीटर और मोटाई 200-300 गेज हो, उसका चुनाव करते हैं. इन थैलियों में 1:1:1 के अनुपात से मिट्टी, खाद और बालू रेत का मिश्रण बनाकर भर देते हैं और मिश्रण भरने के पहले थैली की तली में 2-3 छेद पानी के निकास के लिए बना लेते हैं. थैलियों में मिश्रण भरने के बाद एक हल्की सिंचाई कर देते हैं.

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बीज बुवाई के पहले अंकुरण जांच जरूरी

अपने क्षेत्र और बाजार मांग के अनुसार इन सब्जियों के उन्नतशील और हाइब्रिड किस्मों का चयन कर ले. इन सब्जियों की खेती के लिए प्रति एकड़ 1.5 किलो से लेकर 2 किलो बीज की जरूरत होती है. बीजों को बोने के पहले अंकुरण जांच कर लेना जरूरी है क्योकि इस समय अधिक ठंड के कारण जमाव बहुत देर से होता है. अंकुरण जांच करने के लिए पहले बीजों को पानी मे भिगोते हैं. उसके लिए खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, कुम्हड़ा के बीज को 3-4 घंटे, लौकी, तोरई, पेठा के बीज को 6-8 घंटे और करेला बीज को 48 घंटे तक पानी में भिगोते हैं. इसके बाद इन बीजों को एक सुती कपड़े या बोरे के टुकड़े में लपेट कर किसी गर्म स्थान जैसे भूसा या गर्म राख के पास रखते हैं और बुवाई के 3-4 दिन बाद बीजों में अंकुरण हो जाता है.

पॉली बैग और प्रो-ट्रे में नर्सरी पौध

पॉली बैग की प्रत्येक थैली में 2-3 अंकुरित  बीजों की बुवाई करते हैं. उसके बाद जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो प्रत्येक थैली में एक या दो पौधा रखना चाहिए और अन्य पौधों को निकाल देना चाहिए. पौधों को ठंडे तापमान से बचाने के लिए 1-1.5 मीटर की ऊंचाई पर बांस या लकड़ी गाड़ कर पॉलीथिन की चादर से ढक देना चाहिए ताकि वातावरण का तापमान सामान्य से 8-10 डिग्री सेल्सियस अधिक बना रहे. इससे पौधों का विकास सुचारू रूप से हो सकता है. इस प्रकार की नर्सरी 25 से लेकर 30 दिनो तैयार हो जाती है. इसके आलावा प्रो-ट्रे का उपयोग पौध तैयार करने के लिए किया जाता है. इसमें 1.5 वर्ग इंच या उससे बड़े कई खंड बने होते हैं. प्रत्येक खंड में कोकोपिट, वर्मीकुलाइट भरी जाती है और हर खंड में 1-2 बीज की बुवाई की जाती है. प्रो ट्रे को पॉली हाऊस में रखते हैं.

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तैयार पौध की करें रोपाई 

इन दोनों तकनीकों से इन सब्जियों के पौध 25 से लेकर 30 दिनों में तैयार हो जाते हैं. इन दोनों विधियों से तैयार पौध की रोपाई पर पाला अधिक पड़ने का खतरा हो तो इसके बाद पॉलीथिन की थैलियों से पौधा मिट्टी सहित निकाल कर तैयार थालों में शाम के समय रोपाई कर देते हैं. एक थाले में एक ही पौधा लगाना चाहिए. रोपाई के तुरंत बाद पौधों की हल्की सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए. इस तरह अगेती खेती करके समय से पहले उपज प्राप्त कर बाजार से अधिक भाव ले सकते हैं, क्योंकि मई-जून में इन सब्जियों की एक साथ अधिक उपज होने और बाजार में एक साथ पहुंचने के कारण कम दाम से संतोष करना पड़ता है.

 

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