Intercropping: रेतीली जमीन पर सहफसली खेती कर रहे हैं सुपौल के किसान, प्रति एकड़ करते हैं इतनी कमाई

Intercropping: रेतीली जमीन पर सहफसली खेती कर रहे हैं सुपौल के किसान, प्रति एकड़ करते हैं इतनी कमाई

Intercropping: बिहार के सुपौल जिले के किसानों ने रेतीली बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया है. मूंगफली की इंटरक्रॉपिंग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ी और आमदनी भी दोगुनी हुई. मूंगफली वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर मिट्टी को समृद्ध बनाती है, जिससे अगली फसलों की उत्पादकता में भी इजाफा होता है.

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रेतीली जमीन पर सहफसली खेती कर रहे हैं सुपौल के किसान, प्रति एकड़ करते हैं इतनी कमाईसुपौल के रेतीले इलाके में मूंगफली की खेती

किसान अपनी मेहनत और सही तकनीक से रेतीली, बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना सकते हैं. ठीक ऐसा ही कुछ बिहार के सुपौल जिले के किसानों ने कर दिखाया है. पहले जहां रेत हुआ करती थी और खेती असंभव हो गई थी. अब वहीं, किसान अपनी लगन, मेहनत और प्रयोग से रेत की सीना चीर हरियाली के रूप में फसल उगा रहे है. यहां मूंगफली के साथ-साथ मकई, सब्जियां और अन्य फसलें भी उगाई जा रही हैं. किसानों ने इंटरक्रॉपिंग के रूप में मूंगफली को अपनाया है, जिससे फसलों के बीच संतुलन बना रहता है और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है.

2008 की बाढ़ से खेतों में भर गई थी रेत

ये बानगी सुपौल जिले के बसंतपुर प्रखंड के भगवानपुर पंचायत के समदा गांव की है, जहां 2008 में कोसी नदी की बाढ़ से नेपाल के कुसहा में कोसी बांध टूटा था और जिले जिले के हजारों किसानों की लाखों एकड़ उपजाऊ खेतों में रेत भर गई थी. इसके कारण इस जमीन पर खेती करना मुश्किल हो गया था. अब इलाके में किसानों ने मूंगफली की खेती से रेतीली जमीन को उपजाऊ बना दिया है. जिलें के रेतीली इलाके में सैकड़ों किसान हजारों एकड़ में मूंगफली की खेती कर रहे हैं. किसान इसके साथ सहफसली कर अन्‍य फसलें भी उगा रहे हैं.

मूंगफली से उपजाऊ हो रही जमीन

एक किसान ने बताया कि पहले यहां रेत का अथाह भंडार था, जहां कुछ भी उगाने में समस्‍या होती थी. ऐसे में वे अब यहां इंटरक्रॉपि‍ंग कर मूंगफली उगा रहे हैं. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ी है. मूंगफली के पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करते हैं. इससे मिट्टी समृद्ध होती है और फसल चक्र के लिए यह आदर्श फसल बन जाती है. मूंगफली की खेती से, जिसने न केवल भूमि को उपजाऊ बनाया, बल्कि किसानों की आमदनी को भी दोगुना कर दिया है.

नाइट्रोजन को स्थिर करती है मूंगफली की फसल

मूंगफली एक ऐसी फसल है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करती है. इसके पौधे जड़ों में राइजोबियम बैक्टीरिया के माध्यम से नाइट्रोजन को मिट्टी में मिलाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इससे न केवल मूंगफली, बल्कि बाद में ली जाने वाली फसलों की उत्पादकता भी बढ़ जाती है.

प्रति एकड़ 50-60 हजार कमाई

किसान मोहन मंडल ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मूंगफली से किसानों को 50 से 60 हजार रुपये प्रति एकड़ तक की आमदनी हो रही है, जबकि खर्च महज 15 हजार रुपये आता है. यहां मूंगफली की खेती शुरू करने के बाद अब इसी जमीन पर मकई से भी 48 से 50 क्विंटल प्रति एकड़ उपज दे रही है. इलाके के किसानों की आमदनी, जीवनस्तर बढ़ा है.

वहीं, किसान पवन कुमार यादव ने बताया कि हमारे पास न तो पहले उन्नत बीज थे और न ही खेती की सही जानकारी. खेतों में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरक का इस्‍तेमाल होने से पैदावार में कमी आ गई थी.  अब कृषि विभाग के सहयोग से हम बीज, तकनीक और प्रशिक्षण सब कुछ पा रहे हैं.  मूंगफली न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही है, बल्कि यह सेहत के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद है. इसमें प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

कृ‍षि अध‍िकारी ने कही ये बात 

वही, अनुमंडल कृषि अधिकारी वीरपुर कुंदन कुमार ने बताया कि जिले में हजारों एकड़ में सैकड़ों किसान मूंगफली की खेती शुरू की है. बसंतपुर प्रखंड में भी सौ से ऊपर किसान हजार एकड़ में मूंगफली फसल की खेती कर रहे हैं. मूंगफली न केवल आर्थिक स्थिति सुधारने का काम कर रही है, बल्कि इससे खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है.(रामचंद्र मेहता की रिपोर्ट)

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