साल 2022-23 में करीब 14 हजार करोड़ अंडों का प्रोडक्शन हुआ था. कई देशों को अंडे एक्सपोर्ट भी किए जा रहे हैं. चिकन की बात करें तो देश के कुल मीट उत्पादन में चिकन की हिस्सेदारी 51.।4 फीसद है. हर साल पोल्ट्री सेक्टर आठ से दस फीसद की दर से आगे बढ़ रहा है. ये तब है जब पोल्ट्री सेक्टर को किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं मिलती है. 10 साल में पोल्ट्री सेक्टर ने प्रति व्यक्ति 60 अंडे सालाना से इस आंकड़े को 101 पर पहुंचा दिया है. एक्सपोर्ट में भी पोल्ट्री सेक्टर बहुत अच्छा कर सकता है.
अगर सरकार अकेले दौड़ रहे पोल्ट्री सेक्टर को मदद कर दे तो आज छोटे से छोटे पोल्ट्री फार्म को भी वक्त की जरूरत के हिसाब से हाइटेक बनाया जा सकता है. इससे जहां पोल्ट्री प्रोडक्ट की क्वालिटी सुधरेगी तो वहीं एक्सपोर्ट के मानक पूरे होने से कारोबार भी बढ़ेगा.
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पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट रनपाल डाहंडा ने किसान तक को बताया कि प्रदूषण नियंत्रण की बात हो या हाइटेक तरीके से फीड खिलाने की, आज पोल्ट्री फार्म की जरूरत के हिसाब से हर तरह की टेक्नोलॉजी बाजार में आ रही है. लेकिन ये इतनी महंगी है कि छोटे पोल्ट्री फार्मर के लिए इसे खरीदना बहुत मुश्किल है. इसलिए हमारी सरकार से डिमांड है कि जिस पोल्ट्री फार्म में पांच हजार से लेकर 20 हजार तक अंडे या चिकन वाली बर्ड हैं तो उन्हें टेक्नोलॉजी खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाए. इतना ही नहीं सब्सिडी से जो टेक्नोलॉजी खरीदी जा रही है उस पर जीएसटी से भी छूट मिले.
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रनपाल डाडंडा का कहना है कि पोल्ट्री प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट मार्केट में ले जाने की तैयारी चल रही है. लेकिन कोई भी प्रोडक्ट मार्केट में तभी बिक पाता है जब उसके रेट कम हों और क्वालिटी अच्छी हो. इसीलिए जरूरत है कि पोल्ट्री प्रोडक्ट की लागत कम की जाए. इसी को ध्यान में रखते हुए ये जरूरी हो जाता है कि पूरक आहार (फीड एडिटिव) को देश में सस्ता किया जाए. ये तभी मुमिकन होगा जब आयात होने वाले फीड एडिटिव पर शुल्क घटाया जाए. इतना ही नहीं आयात हुए फीड एडिटिव को जीएसटी से फ्री किया जाए.
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