पशुधन के लिए चारे की कमी वक्ते के साथ एक बड़ी परेशानी बनती जा रही है. महंगे चारे और उसकी कमी से डेयरी सेक्टर ही नहीं पोल्ट्री सेक्टर पर भी इसका असर पड़ रहा है. महंगे चारे के चलते ही दूध के दाम बढ़ रहे हैं. जिसका असर घरेलू और एक्सपोर्ट बाजार पर पड़ रहा है. इसी के चलते केन्द्र सरकार ने पशुपालन में फूड सिक्योरिटी को लेकर चर्चा शुरू कर दी है. इसी से जोड़कर चारा बैंक बनाने की भी बात हो रही है. लेकिन पशुधन की फूड सिक्योरिटी का रोडमैप कैसा हो इसे एक शक्ल देने के लिए देश-विदेश के एक्सपर्ट लुधियाना में जुट रहे हैं.
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनीमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना में वाइस चांसलर का सम्मेलन आयोजित कर रहा है. 17 से 19 मार्च, तीन दिन चलने वाले इस सम्मेलन में भारतीय कृषि, बागवानी, पशुपालन और मछली पालन से जुड़े छह खास विषयों पर फूड सिक्योरिटी, जलवायु परिवर्तन और किसान कल्यालण के लिए एक रोडमैप तैयार करने पर चर्चा की जाएगी. सम्मेलन भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ (आईएयूए) के बैनर तले किया जा रहा है.
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गडवासु के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह का कहना है कि यह सम्मेलन पेशेवरों और नीति नियोजकों को कृषि और पशुधन क्षेत्रों से जुड़े किसानों के बारे में चर्चा के लिए आयोजित किया जा रहा है. जहां एक्सपर्ट अपनी-अपनी राय रखेंगे. वहीं ये सम्मेलन खेती और पशुपालन से जुड़े पेशेवर, नीति निर्माताओं और किसानों से जुड़े एक्सपर्ट को उनकी परेशानियों का रास्ता खोजने के लिए एक प्लेटफार्म देगा. इस सम्मेलन में पद्म भूषण डॉ. आरएस परोदा, चावल क्रांति के जनक और विश्व खाद्य पुरस्कार विजेता पद्मश्री डॉ. जी.एस. खुश और आईएयूए के अध्यक्ष और बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. रामेश्वर सिंह भी रोडमैप पर अपनी राय रखेंगे.
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हाल ही में विज्ञान भवन में चारा विषय पर आयोजित कार्यक्रम में पशुपालन और डेयरी सचिव अलका उपाध्याय का कहना था कि पशुओं के लिए चारे पर जोर देते हुए कहा कि चारे की खेती के तहत क्षेत्र को बढ़ाकर चारे की उपलब्धता और उत्पादन को बढ़ाना आज वक्त की जरूरत है. चारागाह भूमि, चारे की खेती के लिए निम्नीकृत वन भूमि और रिसर्च के माध्यम से नई-नई किस्मों के चारा बीज का उत्पादन किया जाए. उन्होंने चारा उद्योग को एक उभरता हुआ व्यावसायिक अवसर भी बताया.
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