पशुपालक का मुनाफा होना ना होना पूरी तरह से पशु के गाभिन होने पर निर्भर करता है. देरी से गाभिन हो तो भी नुकसान है. इसलिए हर एक पशुपालक की यही कोशिश होती है कि उसकी गाय-भैंस जो भी है वो वक्त से बच्चा दे दे. क्योंकि बच्चा देने के बाद ही गाय-भैंस दूध देगी. एनीमल एक्सपर्ट का कहना है कि हालांकि बांझपन एक बड़ी परेशानी है, लेकिन अगर पशुपालक थोड़ा सा अलर्ट हो जाए तो गाय-भैंस के बांझपन को दूर किया जा सकता है. दूध उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकता है.
देशभर के करीब 30 फीसद दुधारू पशुओं में बाझंपन की परेशानी है. लेकिन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देते हुए बांझपन की बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है. गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना में लगातार इस पर काम चल रहा है कि कैसे बांझपन के इलाज को सस्ता बनाया जाए. इलाज का असर दूध पर न पड़े साथ ही इस दौरान पशु का चारा कैसा हो आदि.
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सेंटर ऑफ एडवांस फैकल्टी ट्रेनिंग (सीएएफटी) के निदेशक डॉ. मृगांक होनपरखे की मानें तो एडवांस्ड इनसाइट्स ऑन थेरियोजेनोलॉजी टू अमेलियोरेट रिप्रोडक्टिव हेल्थ ऑफ डोमेस्टिक एनिमल्स" जैसे विषय पर हम कार्यक्रम चलाते हैं. किसान को हम सबसे पहले यह बताते हैं कि अगर वो चाहते हैं कि उनके पशुओं में बांझपन की समस्यान न हो तो उन्हें सबसे पहला काम यह करना है कि वो बांझपन का इलाज कराने में देरी न करें. क्योंकि बांझपन जितना पुराना होगा तो उसके इलाज में उतनी ही परेशानी आएगी.
इसलिए सही समय पर पशुओं की जांच कराएं. अगर भैंस दो से ढाई साल में हीट पर नहीं आती है तो ज्यादा से ज्यादा दो से तीन महीने ही इंतजार करें, अगर फिर भी हीट में नहीं आती है तो फौरन अपने पशु की जांच कराएं. इसी तरह से गाय के साथ है. अगर गाय डेढ़ साल में हीट पर न आए तो उसे भी दो-तीन महीने इंजार के बाद डॉक्टर से सलाह लें.
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डॉ. मृगांक ने बताया कि एक बार बच्चा देने के बाद भी बांझपन की शिकायत आती है. इसलिए अगर गाय-भैंस एक बार बच्चा देती है तो दोबारा उसे गाभिन कराने में देरी न करें. आमतौर पर पहली ब्यात के बाद दो महीने का अंतर रखा जाता है. लेकिन इस अंतर को ज्यादा ना रखें. अंतर जितना ज्यादा रखा जाएगा बांझपन की परेशानी बढ़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा हो सकती है.
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