
अपने देश में गौपालन पशु, किसानों की समृद्धि का आधार रहे हैं. आज भले दौर बहुत कुछ बदल गया है,.बदल रहा है, लेकिन कई इलाके आज भी आपको ऐसे मिल जाएंगे, जहां किसी घर-परिवार की समृद्धि का आकलन, उनके दरवाजों पर, या उनके गाय की पशु गिनती से होता है. जिसके पास जितने पशु वो उतने धनवान माने जाते हैं. लोग अपने पशुओं की पूजा करते हैं, सुबह नींद खुलते ही सबसे पहले उनके चारे-पानी का इंतज़ाम किया जाता है. इस मंत्र के साथ गुजरात में राजकोट ज़िले के गौपालक रमेश भाई रूपारेलिया देश के करोड़ों किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. कभी गरीबी से परेशान होकर मजदूरी करने वाले रूपारेलिया आज के दिन में इसी गौपालन से करोड़पति हैं और सौ से ज्यादा देशों में उनके उत्पाद बिकते हैं. रमेश भाई रूपारेलिया देखने में आम गौपालक जैसे लगते हैं. लेकिन उनकी कहानी बेमिसाल है. सादा जीवन उच्च विचार वाले दर्शन को जीवन में उतारने वाले रमेश भाई अपने सहयोगियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कमर तोड़ मेहनत में जुटे रहते हैं.
डिमांड और सप्लाई, किसी भी बिजनेस को हिट बनाने में अहम रोल निभाता है. चाहे वो कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो. रूपारेलिया ने डेयरी बिजनेस में डिमांड-सप्लाई के गणित को समझा और भुनाया. गुजरात में राजकोट ज़िले के गौपालकरमेश भाई रूपारेलिया ने कहा कि देश में देशी गाय के दूध और उसके प्राकृतिक उत्पाद के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं. इसी को देखकर उन्हें प्राकृतिक तरीके से डेयरी फार्म खोलने का विचार आया और आज इनके पास 250 से ज्यादा गिर गायें हैं जिन्हें खिलाने का चारा भी पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. इन गायों के दूध से यहां कई तरह के उत्पाद बनते हैं जिनकी विदेशों में भारी मांग है. छोटे स्तर से शुरू हुआ उनका कारोबार आज 123 देशों तक फैल चुका है. हर साल छह करोड़ तक का टर्नओवर होता है .लेकिन सफलता इतनी आसानी से नहीं मिली. लगन, मेहनत और लक्ष्य को पाने के लिए सुनोजित तरीके से उनका कारोबार इतनी उंचाई पर पहुंचा है. उनके ब्राड से उनकी एक अलग पहचान बन चुकी है.
ये भी पढ़ें: जामुन की खेती से बमबम हुए पंजाब के इन दो जिलों के किसान, जीरो लागत में बंपर हो रही कमाई
रमेश भाई महज सातवीं कक्षा पास हैं. एक समय बहुत गरीबी झेलनी पड़ी थी. पुश्तैनी ज़मीन तक बेचनी पड़ी थी. रमेश भाई ने खेतों में मजदूरी की तो कभी दूसरों की गाय चराने का धंधा भी किया. साल 2010 में रमेश भाई ने किराए पर जमीन ली और खेती करना शुरू कर दिया. रासायनिक खाद खरीदने की उनकी हैसियत नहीं थी, इसलिए गाय के गोबर पर आधारित खेती करना शुरू किया. रासायनिक दवाओं की जगह प्राकृतिक तरीके से कीट नियंत्रण किया. धीरे धीरे सफलता मिलने लगी और इस तरीके से की गई खेती से रमेश भाई को लाखों का फायदा हुआ. फिर रमेश भाई ने चार एकड़ खुद की जमीन खरीदी और जैविक खेती के साथ-साथ गौ पालन का व्यवसाय शुरू कर दिया.
रमेश भाई ने अपनी खेती में "वैदिक गौपालन और गौ-आधारित कृषि" के सिद्धांतों को अपनाया. उन्होंने गिर और अन्य स्वदेशी नस्ल की गायों का पालन शुरू किया, जो कम आहार में भी अधिक दूध देने में सक्षम होती हैं. गिर गाय की विशेषता है कि यह विभिन्न उष्णकटिबंधीय बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होती है और इसका दूध गुणवत्ता में उच्च होता है. रमेश भाई ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दिया और पूरी तरह से जैविक तरीकों को अपनाया. गायों के गोबर और गौमूत्र से खाद और कीटनाशक तैयार किए, जिससे भूमि की उर्वरता और फसल की गुणवत्ता दोनों में सुधार हुआ है.
आज इनके पास 250 से ज्यादा गिर गायें हैं जिन्हें खिलाने का चारा भी पूरी तरह से प्राकृतिक होता है. इनकी गौशाला को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. इनके यहां के दूध, छाछ, मक्खन और घी को लोग हाथों हाथ लेते हैं. इनकी गौशाला में बने घी की खूब मांग है. एक विशेष प्रकार का घी तो 51 हज़ार रुपये प्रति किलो तक बिकता है जिसकी विदेशों में भारी मांग है. छोटे स्तर से शुरू हुआ उनका कारोबार आज 123 देशों तक फैल चुका है. रमेश भाई ने अपने उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पेश किया उन्होंने जरूरी प्रमाणपत्र और लाइसेंस प्राप्त किए और अपने उत्पादों को सही ढंग से पैकेजिंग और लेबलिंग की. इसके अलावा, उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और यूट्यूब पर अपनी मार्केटिंग शुरू की, जिससे उनकी पहुंच और बिक्री में वृद्धि हुई. इसके आलावा वह अपने खेतो में गौ आधारित कृषि करते है. रमेश भाई का दावा है कि गौ आधारित कृषि और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से कमाई 20 गुना बढ़ गई.
ये भी पढ़ें: Success Story: मशरूम की खेती से पंजाब के किसान की चमकी किस्मत, 75 लाख की बिक्री कर रहे, वित्तीय हालात भी सुधरे
रमेश भाई के अनुसार, गिर गाय स्वदेशी पशुओं में अच्छे दूध उत्पादक है. इस नस्ल को "भोदाली", "देसन", "गुजराती", "काठियावाड़ी", "सोरथी" और "सुरती" के नाम से भी जाना जाता है. इस नस्ल का प्रजनन क्षेत्र गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र है. गिर का नाम गिर वन के नाम पर रखा गया है, जो नस्ल का भौगोलिक क्षेत्र है. इस नस्ल में कम भोजन के साथ अधिक दूध देने की क्षमता है और यह विभिन्न उष्णकटिबंधीय बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है. इन विशेष गुणों के कारण इस नस्ल के पशु ब्राजील, यूएसए, वेनेजुएला और मैक्सिको जैसे देशों द्वारा आयात किए गए हैं और वहां सफलतापूर्वक प्रजनन किया जा रहा है. गिर गाय का सालाना औसत दुग्ध उत्पादन 2110 किलोग्राम है. अच्छी गिर गाय 3300 किलोग्राम तक दूध देती है. औसत दूध वसा 4.6 प्रतिशत तक होती है.
रमेश भाई ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन उन्होंने आधुनिक शिक्षा और तकनीक का महत्व समझा. शुरू-शुरू में उन्हें कंप्यूटर सीखने में दिक्कत आई लेकिन आज वो कंप्यूटर चलाने में माहिर हो चुके हैं. आज इनकी खुद की वेबसाइट है, यूट्यूब चैनल है. अपने काम और उत्पाद का प्रचार-प्रसार करने के लिए वो सोशल मीडिया का जमकर सहारा लेते हैं. रमेश भाई की कहानी इस बात का प्रमाण है कि यदि आप दृढ़ संकल्प और सही मार्गदर्शन के साथ आगे बढ़ते हैं, तो आप वैश्विक स्तर पर भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं. देशी गाय और प्राकृतिक खेती के तरीकों को अपनाकर उन्होंने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर उत्पन्न किए हैं. रमेश भाई का सफलता मंत्र है कि "प्रैक्टिस ऐसे करें जैसे आपने कभी जीता नहीं, और परफॉर्म ऐसे करें जैसे आपने कभी हारा नहीं. नवाचार और पारंपरिक ज्ञान के संयोजन से हम न केवल अपने देश को बल्कि विश्व को भी एक बेहतर स्थान बना सकते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today