देश में पशुपालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है. कोई डेयरी प्रोडक्ट बेचने के लिए गाय-भैंस का पालन कर रहा है, तो कोई मांस का कारोबार करने के लिए बकरी को पाल रहा है. लेकिन अब आम किसानों के बीच भेड़ पालन भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि इसमें कम लागत में ज्यादा मुनाफा है. इसके मांस के साथ-साथ ऊन की भी मार्केट में बहुत अधिक डिमांड है.ऐसे में आज हम आपको भेड़ की तीन ऐसी देसी नस्लों के बारे में बताएंगे जो अधिक मांस और दूध के लिए जानी जाती हैं. वहीं, गांव में रहने वाले किसान भेड़ पालन का बिजनेस कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.
पशु विशेषज्ञों की मानें तो अविशान भेड़ के बच्चे का विकास अन्य नस्ल की भेड़ों के मुकाबले 30 फीसदी अधिक तेजी के साथ होता है. ऐसे में इसके मेमने जल्द ही जन्म के बाद बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके चलते किसानों को इसके पालन पर भी कम खर्च करने पड़ते हैं.वहीं, इस नस्ल के मेमनों की मृत्यु दर महज 5 फीसदी है. ऐसे में अगर आप चाहें तो 3 महीने के मेमनों को मांस के लिए बेच सकते हैं. एक मेमने से 2500 रुपये की कमाई होती है. अगर आपने 50 भेड़ के साथ अविशान का पालन शुरू किया है, तो एक साल में कम से कम 200 तक मेमने बेच सकते हैं. बता दें कि यह साधारण नस्ल की भेड़ों के मुकाबले अधिक दूध देती है. साथ ही इसकी प्रजनन क्षमता भी ज्यादा है. यह साल में दो बार गर्भधारण करती हैं.
खेरी नस्ल की भेड़ों की कुछ खास विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य नस्लों से अलग करती हैं. ये भेड़ें देखने में बहुत सुंदर होती हैं और इनका कद लंबा होता है, जिससे ये आसानी से पहचानी जाती हैं. इस नस्ल की भेड़ों की एक महत्वपूर्ण खासियत यह भी है कि ये लंबी दूरी तक चलने की क्षमता रखती हैं, इस कारण किसानों द्वारा इन्हें खासतौर पर पसंद किया जाता है. खेरी नस्ल की भेड़ें कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती हैं, जो इन्हें हर तरह के मौसम में सक्षम बनाती है.इन भेड़ों को चारे और पानी की कमी को सहन करने की क्षमता होती है. वहीं, इस नस्ल के भेड़ अधिक मांस और ऊन के लिए जानी जाती हैं.
पांचाली को दुम्मा, डूमा, बरैया और डूमी देसी आदि नामों से भी जाना जाता है. यह ज्यादातर गुजरात के सुरेंद्रनगर, राजकोट, भावनगर और कच्छ इलाकों में पाई जाती है. इस भेड़ को मुख्य रूप से यहां के रेवाड़ी और भरवाड़ समुदाय पालते हैं. यह भेड़ सफेद और आकार में विशाल होती है. वहीं, इनका ऊन मोटा होता है. इस नस्ल को मुख्य रूप से ऊन, मांस और दूध के लिए पाला जाता है. एक भेड़ प्रतिदिन आधा से डेढ़ किलो दूध देती है. वहीं, औसतन एक भेड़ से एक किलो ऊन निकलता है. जन्म के समय इसके मेमने का वजन 3.5 से 4 किलोग्राम तक होता है और 3-4 महीने में यह बढ़कर 18 से 20 किलोग्राम हो जाता है. भेड़ पालक ऐसे मेमनों को बेचकर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं.
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