ज्यादा दूध देने वाली भैंसों की इन 5 नस्लों के बारे में नहीं जानते होंगे आप, खरीदने से पहले जानिए इनकी खासियत

ज्यादा दूध देने वाली भैंसों की इन 5 नस्लों के बारे में नहीं जानते होंगे आप, खरीदने से पहले जानिए इनकी खासियत

किसान भैंस पालन का बिजनेस कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी भैंसों का सही तरीके से चुनाव करना हो जाता है. ऐसे में हम आज आपको भैंस की पांच ऐसी नस्ल के बारे में बताएंगे जो अधिक दूध देने के लिए जानी जाती हैं.

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ज्यादा दूध देने वाली भैंसों की इन 5 नस्लों के बारे में नहीं जानते होंगे आप, खरीदने से पहले जानिए इनकी खासियतज्यादा दूध देने वाली भैंसों की नस्ल

दूध उत्पादन के क्षेत्र में भारत का विश्व में पहला स्थान है. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन किसानों के कमाई का एक अच्छा जरिया है. इससे किसानों की आय बेहतर होती है जिससे वो अपना जीवनयापन करते हैं. इनमें भी ज्यादातर किसान भैंस पालन करते नजर आते हैं. दरअसल, पशुओं के मामलों के जानकार बताते हैं कि अन्य दुधारू जानवरों के मुकाबले भैंसों में ज्यादा दूध देने की क्षमता होती है. वहीं, गांव में रहने वाले किसान भैंस पालन का बिजनेस कर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी भैंसों का सही तरीके से चुनाव करना हो जाता है. अगर आपने ऐसी नस्ल की भैंसों का चुनाव किया है. ऐसे में हम आज आपको भैंस की पांच ऐसी नस्ल के बारे में बताएंगे जो अधिक दूध देने के लिए जानी जाती हैं.

भैंस की पांच उम्दा नस्ल

मुर्रा भैंस: जब भी भैंस की नस्लों की बात आती है, सबसे पहले मुर्रा भैंस का ही नाम आता है. ये सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल है. वैसे तो मुर्रा नस्ल की भैंस हरियाणा और पंजाब में पायी जाती है, लेकिन अब  इस नस्ल को कई राज्यों के पशुपालक पालने लगे हैं. बात करें इसकी पहचान कि तो इसका रंग गहरा काला होता है और खुर और पूछ के निचले हिस्सों पर सफेद धब्बा होता है. साथ ही इसकी मुड़ी हुई छोटी सींग होती है. वहीं, इसकी औसत दूध उत्पादन क्षमता 1750 से 1850 लीटर प्रति व्यांत होती है. इसके दूध में वसा की मात्रा 9 प्रतिशत के करीब होती है.

भदावरी भैंस: यह नस्ल उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा और मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में पायी जाती है. इनके सिर का आकार छोटा और पैर भी छोटे-छोटे होते हैं. इस नस्ल के खुर का रंग काला और गर्दन के निचले हिस्सों पर दो सफेद निशान पाए जाते हैं.  इनकी औसत दूध उत्पादन क्षमता प्रति व्यांत 1250-1350 लीटर तक है.

नीली रावी भैंस: इस नस्ल की भैंस मूल रूप से रावी नदी के किनारे पाई जाती हैं, जोकि फिरोजपुर जिले के सतलज घाटी और पाकिस्तान के साहिवाल में पायी जाती हैं. इनका सिर छोटा और दोनों आंखों के बीच छोटा गड्ढा होता है. इनकी औसत दूध उत्पादन क्षमता 1500-1800 लीटर प्रति व्यांत है.

जाफराबादी भैंस: यह भैंस देश की सबसे भारी नस्लों में से एक है, यह मूल से रूप से गुजरात के गिर के जंगलों में पायी जाती है, लेकिन अब इसका पालन कच्छ और जामनगर जिले सहित देश के कई राज्यों में भी होता है. इसका सिर और गर्दन का आकार भारी होता है. इसका माथा काफी चौड़ा, सींग का आकार काफी बड़ा और पीछे की तरफ मुड़ा हुआ होता है. वहीं, बात करें दूध उत्पादन कि तो इसका औसत उत्पादन प्रति व्यांत 1000 से 1200 लीटर है.

बन्नी भैंस: गुजरात के कच्छ क्षेत्र में पायी जाने वाली बन्नी भैंस को कुंडी नाम से भी जाना जाता है. इस भैंस की कई खासियतें होती हैं. ये भैंस अधिक गर्मी और सर्दी दोनों को बर्दाश्त कर लेती है. कड़ाके के धूप में चारे की तलाश में दूर तक निकल जाती है. इनका रंग गहरा काला होता, कभी-कभार हल्का भूरा भी होता है. वहीं, इसकी सींग अंदर की तरफ घुमी रहती हैं. इनकी दूध उत्पादन क्षमता 1100-2800  लीटर प्रति व्यात है.

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