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Dairy Animal: डेयरी पशुओं को घातक रोगों से बचाना है, तो बरसात से पहले जरूर करें ये काम

Dairy Animal: डेयरी पशुओं को घातक रोगों से बचाना है, तो बरसात से पहले जरूर करें ये काम

बरसात का मौसम आने से पहले डेयरी पशुओं को खतरनाक रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण कराना बेहद जरूरी है. इसमें कोई विलंब नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगर यह कदम नहीं उठाया गया तो पशुपालकों को भारी नुकसान हो सकता है. टीकाकरण यानी वैक्सीनेशन के माध्यम से पशुओं की सुरक्षा और सेहत की स्थिति दोनों बेहतर कर सकते हैं.

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पशुओं का टीकाकरण जरूरी पशुओं का टीकाकरण जरूरी

किसानों को फसलों से मिलने वाली उपज के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में दैनिक जरूरतों के लिए किसान पशुधन से मिलने वाली आमदनी पर ही निर्भर हैं. इसलिए डेयरी फार्मिंग पशुपालकों के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. पशु स्वस्थ रहें और पशुपालकों को इनसे उत्पादन मिलता रहे, इसके लिए जरूरी है कि समय पर इनका टीकाकरण हो ताकि मौसम की मार का दुधारू पशुओं पर असर न पड़े. गर्मी के मौसम में ज्यादा गर्मी पड़ने से पशु के दूध उत्पादन पर तो असर पड़ ही रहा है..साथ ही बीच-बीच में हो रही हल्की बारिश से पशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है.

इसलिए पशुपालकों को चाहिए कि वे बरसात से पहले अपने सभी छोटे-बड़े पशुओं का टीकाकरण करा लें. बरसात में अक्सर पशुओं को गलाघोंटू लंगड़ी, मुंहपका, खुरपका जैसी घातक बीमारी हो जाती है. इससे बचने के लिए पशुओं का टीकाकरण जरूरी है. जबकि पशुओं में लगने वाले रोगों की शुरुआत में ही पहचान कर ली जाए तो उन्हें बचाया जा सकता है.

टीकाकरण है जरूरी 

नरेंद्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या के पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय के सहायक प्रोफेसर और पशु विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका उपचार संभव है. लेकिन इलाज के दौरान दुधारु पशुओं के दूध उत्पादन में भारी गिरावट होती है, या फिर दूसरे काम में आने वाले पशु की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है. इन सभी समस्याओं से पशु मालिकों को आर्थिक नुकसान होता है. लेकिन इससे बचने के लिए अलग-अलग बीमारियों का वैक्सीनेशन करवाना जरूरी है, जिससे आपके पशु ऐसी बीमारियों के संपर्क में नहीं आएं.

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डॉ. दिवाकर ने कहा कि इस बात को लेकर आपमें कोई भ्रम भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी उम्र के डेयरी पशुओं का टीकाकरण ज़रूरी है. दरअसल, टीकाकरण से पशुओं में उस बीमारी से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे पशु जल्दी बीमार नहीं पड़ते. कोई भी बीमारी उनके लिए जानलेवा साबित नहीं होती. इसमें अलग-अलग बीमारियों के सीज़न के हिसाब से 6 महीने या साल भर पर टीका लगवाना ज़रूरी होता है.

गलाघोंटू रोग से बचाव  

पशु विशेषज्ञ डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि सबसे गंभीर रोग गलाघोंटू की बात करें तो यह ज्यादातर बारिश में होता है. इस बीमारी में पशुओं को संभालने तक का मौक़ा नहीं मिलता. गले के पास सूजन होती है और गला चोक कर जाता है. गलाघोंटू का टीका साल में एक बार लगता है. गलाघोंटू बीमारी का कोई उपचार नहीं है, बल्कि टीकाकरण ही रास्ता है. इसलिए गलाघोंटू का टीका लगवा लेना चाहिए. बरसात के मौसम में गाय और भैंसों में फैलता है. इस रोग में पशु को तेज़ बुखार आ जाता है, गले में सूजन और सांस लेते समय घर्र-घर्र की आवाज़ आती है.

इस रोग से पशु को बचाने के लिए एंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल टीके लगाए जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पहला टीका तीन माह की आयु में और उसके बाद हर साल टीका लगवाना चाहिए. पशुओं में गलागोंटू बीमारी बैक्टीरिया से फैलता है. गलाघोंटू रोग में पशुओं के शरीर का तापमान 106 -107 हो जाता है . गले वाले रीजन में दबाव पड़ता है जिससे गला घोंटने के कारण पशु मर जाते हैं. इसके बचाव के लिए साल में टीकाकरण करवाना चाहिए.

खुरपका-मुंहपका से कैसे बचाएं?

डॉ. राजपाल दिवाकर ने बताया कि खुरपका-मुंहपका रोग वायरस-जनित रोग है. यह डेयरी पशुओं में ज्यादा होता है. इस बीमारी में पशुओं के खुर पक जाते हैं, जीभ में छाले पड़ जाते हैं और मुंह पक जाता है. पशु कुछ खा नहीं पाता, बुखार और कमजोरी से धीरे-धीरे मरणासन्न हो जाता है. इसमें इलाज तो संभव है, पर पशुओं का दूध और उनके काम करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है. इसलिए वैक्सीनेशन से आप उनका बचाव कर सकते हैं.

यह रोग पशुओं का सबसे ज्यादा संक्रामक और घातक रोग है. रोग किसी भी उम्र की गाय और उसके बच्चों में हो सकता है. यह किसी भी मौसम में हो सकता है, इसलिए रोग होने से पहले ही उसके टीके लगवा लेना फायदेमंद रहता है. अगर दूधारू पशु में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो सबसे पहले इसको दूसरे पशुओं से अलग कर दें. इसके बाद पशु को जीवाणुनाशक घोल से ज़ख्म धोएं, नरम घास-चारा पशुओं को दें.

लंगड़ी बीमारी का टीकाकरण

पशु विशेषज्ञ के अनुसार पशुओं की बीमारी में 'लंगड़ी' की गंभीरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बैक्टीरिया से फैलने वाले इस रोग में पशु के किसी एक अंग में सूजन आती है. लेकिन वो तेज़ी से फैलती है और पशुओं की जान तक ले लेती है. ये रोग गाय और भैंसों दोनों में देखा जाता है, लेकिन गो पशुओं में इसका प्रकोप अधिक होता है. पशु के पिछली और अगली टांगों के ऊपरी भाग में सूजन आ जाती है. इससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है. सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़-कड़ की आवाज़ आती है. इसलिए पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए, क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं के कारण शरीर में ज़हर फैल जाने से पशु जल्दी ही मर जाता है. इस बीमारी के रोग निरोधक टीके बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें लगाकर पशुपालक अपने पशुओं को बचा सकते हैं. वर्षा ऋतु से पहले ये टीका लगाया जाता है. पहला टीका पशु को 6 माह की आयु पर लगवाना चाहिए, उसके बाद हर साल टीका लगाया जाता है.

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4 महीने में 1 बार डीवर्मिंग जरूरी

इनके अलावा कुछ बीमारियां कीड़ों से होती हैं. चाहे वो अंत: परजीवी हों, यानी पेट के कीड़े, सूत्रकृमि वगैरह. या बाह्य परजीवी जैसे जू, कीलनी, चीचड़ी. इन सबसे पशु बेहद परेशान रहते हैं. इसलिए वैसे कृमि जिनके अंडे पेट में पलते हैं और आंतों से पशुओं का खून चूस कर उन्हें कमज़ोर कर देते हैं, उनसे बचाव के लिए 4 महीने में एक बार कीड़े की दवा ज़रूर खिलाएं. इस प्रक्रिया को डीवर्मिंग कहा जाता है.

इन आसान उपायों से करें बचाव

पशु विशेषज्ञ ने बताया कि बीमारियों से बचाव के क्रम में वैक्सीनेशन के अलावा कुछ ऐसे भी उपाय हैं, जिन्हें आजमा कर आप कई बीमारियों से पशुओं का बचाव कर सकते हैं. जैसे थनैला बीमारी जो सिर्फ दुधारु पशुओं को ही होती है, इससे बचने के लिए साफ़ सफाई तो ज़रूरी है ही. इसके अलावा अगर दूध निकालने के बाद उन्हें 1 घंटा तक बैठने ना दिया जाए तो आप इस बीमारी से दुधारू पशुओं का बहुत हद तक बचाव कर लेंगे. इस तरह कई बीमारियों के अलग-अलग टीके समय पर लगवा कर, आप अपने पशुओं को कई गंभीर बीमारियों से बचा सकते हैं. वहीं ख़ुद को होने वाले आर्थिक नुक़सान से भी बचा सकते हैं.