राजस्थान के पाकिस्तान की सीमा से सटे जैसलमेर जिले में बीते दो दिन से पर्यावरण प्रेमी पदयात्रा निकाल रहे हैं. वजह है घटते ओरण (चारागाह) और निजी सोलर कंपनियों जमीन का अलॉटमेंट. इन पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि सोलर कंपनियों को जमीन दिए जाने से यहां की जैव-विविधता पर खतरा मंडराने लगा है. ये कंपनियां अवैध तरीके से पेड़ों को भी काट रही हैं. साथ ही हाइटेंशन पावर लाइन से विलुप्तप्राय गोडावण पक्षी भी संकट में हैं.
साथ ही ओरण की भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने की मांग को लेकर यह 225 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली जा रही है. पदयात्रा में करीब 60 लोग मौजूद हैं. साथ ही यह जिन गांवों से होकर गुजर रही है, उनसे भी लोग जुड़ते जा रहे हैं.
पदयात्रा के मुख्य आयोजक पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह से किसान तक ने बात की. सुमेर बताते हैं, “जैसलमेर के ओरणों को निजी कंपनियों को अलॉट करने, सोलर कंपनियों की मनमानी और अवैध रूप से खेजड़ी जैसे पेड़ों की कटाई के कारण हम यह जागरुकता यात्रा निकाल रहे हैं. 5 दिन की इस यात्रा का समापन जैसलमेर कलेक्ट्रेट पर होगा. इसके बाद हम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपेंगे. यात्रा करीब 225 किमी की होगी. ”
ओरण रेगिस्तानी क्षेत्र में पशुधन के लिए एक संरक्षित जगह होती है. इस संरक्षित क्षेत्र में से कोई भी ग्रामीण पेड़ों से पत्ता भी नहीं तोड़ता. साथ ही इसके साथ एक धार्मिक मान्यता भी जुड़ी होती है. सरहदी जिलों में इस तरह के कई ओरण हैं जिससे यहां के लोग आज भी उसी तरह से जुड़ें हैं जितना इनके बुजुर्ग जुड़े थे.
इन ओरणों में संरक्षण से ही रेगिस्तान की जैव-विविधता बची हुई है. जिस देगराय ओरण से यह पदयात्रा शुरू हुई हैं वह 60 किलोमीटर बड़ा है. इसमें सैंकड़ों तरह के प्रवासी पक्षी हर साल आते हैं.
पश्चिमी राजस्थान में ओरण यानी चारागाह लोगों के जीवन का हिस्सा हैं. चूंकि राजस्थान के गांव पशुपालन पर निर्भर होते हैं. इसीलिए ग्रामीणों के लिए उनके चारागाह एक पूंजी की तरह है. राजा-महाराजाओं के वक्त में इन्हें ओरण घोषित किया गया था, लेकिन आजादी के बाद हुए सेटलमेंट प्रक्रिया में इन ओरणों की कुछ भूमि राजस्व रिकॉर्ड में संरक्षित भूमि के नाम से दर्ज नहीं हो पाई.
इसीलिए अब सरकार इन्हें निजी कंपनियों को सोलर प्लांट लगाने और अन्य कामों के लिए अलॉट कर रही है.
स्थानीय ग्रामीण इसी तरह के अलॉटमेंट का विरोध कर रहे हैं. सुमेर सिंह कहते हैं, “हमारी मांग इन ओरणों को राजस्व रिकॉर्ड में संरक्षित भूमि के नाम से दर्ज कराने की है. ताकि इन पर कोई भी, कभी भी आकर कब्जा ना करे. ”
ओरण बचाने के लिए यह पहली यात्रा नहीं है. इससे पहले भी समय-समय पर 16 पदयात्राएं निकाली जा चुकी हैं. सुमेर बताते हैं कि इन 16 पदयात्राओं में हम 600 किमी तक चल चुके हैं. इस यात्रा में हम 225 किमी चलेंगे. यानी ओरण बचाओ अभियान में हम कुल 825 किमी की यात्रा कर चुके होंगे.
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