अमूल का प्रतीकात्मक फोटो.Amul Milk Cooperative यूएन इंटरनेशनल ईयर ऑफ कोऑपरेटिव 2025 के खत्म होने से पहले ही देश और अमूल के लिए एक बड़ी खबर आई है. गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (अमूल) को वर्ल्ड लेवल पर पहली रैंक मिली है. अमूल ने इफको को पछाड़ते हुए नंबर वन की रैंक हासिल की है. आईसीए वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर 2025 ने इसकी घोषणा की है. तीन नवंबर को दोहा में एक कार्यक्रम के दौरान 300 कोऑपरेटिव की जीडीपी आधारित मॉनिटर के बाद ये घोषणा की गई है. गौरतलब रहे बीते कुछ साल से वर्ल्ड की इस संस्था की ओर से कोऑपरेटिव को दी जाने वाली रैंकिंग में भारत की दो कोऑपरेटिव अमूल और इफ्को बनी हुई हैं.
अमूल ने अपने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी शेयर करते हुए लिखा है कि ‘हमें यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि नवीनतम आईसीए वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर 2025 के अनुसार, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (अमूल) को प्रति व्यक्ति जीडीपी प्रदर्शन के आधार पर दुनिया में नंबर वन सहकारी संस्था का दर्जा दिया गया है. यह रिपोर्ट आज तीन नवंबर को कतर में आईसीए सीएम-50 सम्मेलन में जारी की गई.'
GCMMF से जुड़े जानकारों की मानें तो इस संस्था को बने हुए 50 साल पूरे हो गए हैं. साल 2024, फरवरी में ही इसकी गोल्डन जुबली मनाई गई थी. इसकी स्थापना का विचार भी बड़े ही खराब हालात के दौरान आया था. साल 1946 से 1974 के बीच डेयरी सहकारी आंदोलन चला था. उस दौरान ये आंदोलन गुजरात के छह जिलों में चल रहा था. ये जिले थे खेड़ा, मेहसाणा, साबरकांठा, बनासकांठा, वडोदरा और सूरत. इन जिलों की दुग्ध सहकारी समितियां जब अपने डेयरी प्रोडक्ट लेकर बाजार में आईं तो उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. व्यापारियों द्वारा उनका तरह-तरह से शोषण किया जाने लगा. इसी के चलते समितियों का आंदोलन शुरू हो गया.
इस दौरान छह जिला दुग्ध संघों के अध्यक्ष और डॉ. वर्गीज कुरियन ने मिलकर GCMMF की स्थापना की थी. इसका मकसद खुद का वितरण और विपणन नेटवर्क खड़ा करना था. मौजूदा वक्त में गुजरात के 18 जिला दुग्ध संघ GCMMF के नेटवर्क का हिस्सा बने हुए हैं. आज इनका कारोबार करीब 90 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का हो चुका है. खास बात ये है कि आज GCMMF 36 लाख किसानों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति है.
अमूल के एमडी जयेन मेहता का कहना है कि अमूल के प्रोडक्ट का 38 फीसद ग्राहक छोटे शहर और गांव-कस्बों का है. ये वो जगह हैं जहां आबादी 20 हजार या उससे भी कम है. जिससे पता चलता है कि हम सिर्फ शहरी ब्रांड नहीं हैं. वहीं अमूल के पूर्व एमडी और इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. आरएस सोढी का कहना है कि बाजार में आज नेशनल से ज्यादा सिटी और रीजनल ब्रांड पसंद किए जा रहे हैं. ऐसे ब्रांड जिसके प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग स्थानीय स्तर पर ही हुई है. बाजार की सालों-साल पुरानी एक रवायत आज भी कायम है और आने वाले वक्त में भी रहेगी, और वो है टेस्ट, न्यूट्रिशन और बजट में आने वाला प्रोडक्ट.
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