मछली पालन को व्यवसाय के रूप में करना चाहते हैं मगर आपके पास जगह कम है, तो अब परेशान होने की जरुरत नही है,क्योकि मछली पालन की नई तकनीक बायोफ्लॉक आने के बाद अब आपको बड़े एरिया में तालाब खुदवाने की जरूरत नही है इस तकनीक के माध्यम से कम जगह में मछली का बंपर उत्पादन ले सकते है दर असल बायोफ्लॉक मछली पालन एक नई तकनीक है.इसमें टैंकोंं में मछली पाली जाती है.अपने देश में भी कुछ मछली पालक इसे अपनाकर बंपर लाभ कमा रहे हैं.ऐसे प्रगतिशील मछली पालक का जिला बेगुलसराय तहसील तेघरी गांव पिदौली के रहने वाले राजीव कुमार सालना लाखों की कमाई कर रहे हैं.
प्रगतिशील मछली किसान राजीव कुमार किसान तक से बातचीत में बताया कि वे बायोफ्लोक तकनीक से 25 टैंकों में मछली पालन कर रहे हैं. हर साल वे मछली के बीज उत्पादन से 22 से 23 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. इस पर उत्पादन लागत खर्च सालना 7 से 8 लाख रूपये आता है. इस तरह उनको हर साल 15 से 16 लाख रूपये की बचत हो जाती है. राजीव कुमार ने बताया कि इस तकनीक की खासियत यह है कि पानी बचाने के साथ-साथ मछलियों के आहार में भी बचत होती है. इस तरह आप समझ सकते हैं कि.अगर तीन बोरी आहार तालाब में खर्च किया जाए तो इस तकनीक में दो बोरी ही खर्च होगी.
राजीव कुमार ने कहा कि मछली पालन की अन्य तकनीकों की तुलना में बायोफ्लॉक तकनीक बहुत कम खर्चीली है. बायोफ्लॉक तकनीक से दस हजार लीटर के टैंक में मछली पालन करने पर पांच महीने में 250-300 किलो मछली का उत्पादन होगा. इस तरह के उत्पादन के लिए सामान्य तकनीक के साथ एक एकड़ जमीन और पूरे साल का समय लगेगा.बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है.टैंक में गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ कर रखा जा सकता है. बस इस तकनीक में इस बात का ख्याल रखा जाता है कि इसमे 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए. क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है.
राजीव कुमार ने किसान तक को बताया कि बायो फ्लॉक तकनीक में सीमेंट के 10 हजार लीटर क्षमता के एक टैंक को बनाने में लगभग 28 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है. इसमें उपकरण और मजदूरी भी शामिल है टैंक का आकार जितना बढ़ेगा लागत उतनी बढ़ती चली जाएगी. इसके अलावा मछलियों के आहार और प्रबंधन 5 से 6 महीने 10 से 15 हजार का खर्च आता है
राजीव कुमार ने बताया कि, बायोफ्लॉक तकनीक में एक एयरेटर की ज़रूरत होती है,जो पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने में सहायक होता है. टैंकों में पानी की सप्लाई के लिए एक इनलेट पाइप लगा होता है,गंदे पानी को निकालने के लिए एक आउटलेट पाइप टैंक के निचले हिस्से में लगा होता है .टैक में इनलेट, आउटलेट और एयरेटर सिस्टम को चलाने के लिए 4 टैंक के लिए 2 हार्स पॉवर बिजली की सप्लाई की ज़रूरत पड़ती है. यानि इस तकनीक में बिजली की खपत एकदम कम होती है.
राजीव कुमार ने कहा कि बायोफ्लॉक तकनीक में सिर्फ एक बार सीमेंट या प्लास्टिक टैंक बनाने में खर्च आता है. इसके बाद बेहतर प्रबंधन करने से छह महीने के बाद मछलियों का उत्पादन मिलना शुरू हो जाता है बायोफ्लॉक तकनीक में तिलापिया, केवो, मागूर कामनकार्प जैसी मछली की प्रजातियों का उत्पादन किया जा सकता है. अगर कोई किसान इस तकनीक का इस्तेमाल कर मछली पालन करता है तो महज 4 टैंक में 1.5 लाख रुपये खर्च कर हर साल दो से तीन लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं.
इस तकनीक से कम जगह में मछली का अधिक उत्पादन होता है.अपने घर के आसपास या खेतों में 250 वर्ग फीट से लेकर 1500 वर्ग फीट के सीमेंट टैंक में मछली पालन कर सकते है और लाभ कमा सकते हैं . इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए बहुत सी राज्य सरकारे सब्सिडी भी दे रही है,उत्तर प्रदेश के मत्स्य विभाग के अधिकारी मुकेश कुमार सारंग ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार सब्सिडी भी दे रही है.अगर कोई आठ टैंक वाला बायोफ्लैक प्रोजेक्ट लगाएगा तो उसमें करीब साढ़े सात लाख का खर्च आएगा प्रधानमंत्री संपदा योजना के तहत अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को 60 प्रतिशत एवं अन्य को 40 प्रतिशत अनुदान का प्रस्ताव है
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