ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग कृषि के दम पर अपने जीवन को सुधारने में लगे हुए हैं. वही कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो खेती छोड़ पशुपालन और मछलीपालन करके अपने जीवन में सुधार ला रहे हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल रहे हैं. इन नई किसानी में उतरे लोग तकनीक के सहारे मछलीपालन करके उत्पादन के साथ अपनी आय भी दोगुनी कर रहे हैं. ऐसे ही एक सफल किसान 55 वर्षीय रविंद्र सिंह हैं जो अपनी जमीन का 80 प्रतिशत हिस्सा मछलीपालन के रूप में उपयोग कर रहे हैं. सिंह ने पोस्ट ग्रेजुएशन और वकालत की पढ़ाई की है. लेकिन उन्हें लगा कि वकालत में कमाई नहीं है. इसके बाद वे गांव का रुख कर गए. आज करीब 6 एकड़ यानी 24 बीघे में बने 3 तालाब से हर साल अच्छी कमाई कर रहे हैं.
55 साल के रविंद्र सिंह तालाब में मछलीपालन के साथ बायो फ्लॉक विधि से भी मछली पालन कर रहे हैं. साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रहें हैं. रविंद्र सिंह 1997 से ही मछलीपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. सिंह बताते हैं कि मछलीपालन के व्यवसाय से किसान धान और गेहूं से अधिक कमाई कर सकता है. लेकिन उकी सही विधि मालूम होनी चाहिए.
रविंद्र सिंह 'किसान तक' से बात करते हुए बताते हैं कि उन्होंने पटना के बीएएन कॉलेज से वकालत की पढ़ाई पूरी की. जिला कोर्ट भभुआ में प्रैक्टिस करने लगे. कुछ दिनों बाद उन्हें ऐसा लगा कि वकालत से घर का खर्च चलाना संभव नहीं है. इसके बाद वे खेती की ओर रुख कर गए. खेती में जितनी कमाई होती थी, उससे कहीं ज्यादा खेती में लग जाया करता था. तब उनके एक रिश्तेदार ने मछलीपालन करने का सुझाव दिया. रविंद्र सिंह कहते हैं कि 1997 में मछलियों के लिए चारा सहित अन्य आधुनिक व्यवस्था नहीं होने से काफी दिक्कतें होती थीं.
ये भी पढ़ें: Mandi Bhav: हल्दी के भाव में रही मंदी तो उड़द में मिला-जुला रुख, जानें बाजार का हाल
2008 के बाद उन्होंने मछलीपालन को बिजनेस के तौर पर करना शुरू किया. नतीजा हुआ कि मछली उत्पादन के साथ कमाई बढ़ने लगी. रविंद्र सिंह साढ़े चार एकड़ में मछलीपालन और डेढ़ एकड़ में मछलियों का जीरा (मछलियों के बच्चे) रखते हैं. वे कहते हैं कि मछलीपालन में डबल मुनाफा है. आज उसी के दम पर अपनी बेटी की शादी की है. बेटा अच्छे कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है. कभी 30-40 हजार रुपये बहुत बड़ी बात थी. आज लाख-दो लाख रुपये भी बड़ी बात नहीं हैं. यह खेती से संभव नहीं था.
रविंद्र सिंह करीब 24 बीघे में मछलीपालन कर रहे हैं. मछलियों को पालने के लिए तालाब में एरिएटर लगा रखा है. यह ऐसी तकनीक है जिससे मछलियों को समय से ऑक्सीजन मिलता है. मछलियों को एक्टिव रखा जाता है. साथ ही, इस विधि से तालाब की सफाई आसानी से होती है. सिंह एक ही तालाब में कई तरह की मछलियां पालते हैं. इनमें रोहू, कतला, नयन (आईएमसी) और विदेशी मछली में पंगास (पंगेसियस), सिल्वर कार्प आदि हैं.
रविंद्र सिंह कहते हैं कि रोहू, कतला और नयन (आईएमसी) जैसी मछलियां एक एकड़ में पालने से 2 लाख रुपये तक खर्च आता है. इसम मुनाफा भी 2 लाख रुपये तक हो जाता है. इन मछलियों के एक किलो तक तैयार होने में डेढ़ साल से अधिक का समय लग जाता है. एक बार में उत्पादन 30 क्विंटल तक हो जाता है. इन मछलियों को व्यापारियों से 170 रुपये प्रति किलो बेचा जाता है. व्यापारी आगे चलकर 200 से 210 रुपये तक आसानी से बेच लेते है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में बर्फबारी तेज, केदारनाथ धाम में 1 इंच से अधिक गिरी बर्फ
रविंद्र सिंह कहते हैं कि पंगेसियस मछली का पालन एक एकड़ में करते हैं जिसका खर्च करीब 6 लाख रुपये आता है. मछलियां 6 महीने में तैयार हो जाती हैं. इसका उत्पादन करीब 100 क्विंटल तक हो जाता है. एक किलो पंगास मछली तैयार होने में 85 रुपये का खर्च आता है. वहीं इसे व्यापारियों को 95 से 120 तक बेचते हैं. व्यापारी 20 से 25 रुपये प्रति किलो मुनाफा रखकर बाजार में बेचते हैं. इससे एक एकड़ में 2 लाख रुपये तक कमाई होती है. दो साल में साढ़े चार एकड़ तालाब से करीब 8 से 9 लाख रुपये की कमाई आसानी से कर लेते हैं.
सिंह अपने 6 एकड़ तालाब के किनारे सब्जी और फल की भी खेती करते हैं. वे कहते हैं कि आम और अमरूद से भी ठीक ठाक कमाई हो जाती है. सब्जियों की खेती में बैगन, टमाटर सहित अन्य सब्जियों की खेती करते हैं. इन सभी से साल में 50 हजार रुपए तक कमाई हो जाती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today