Climate Change: पशुओं पर भारी जलवायु पर‍िवर्तन, दूध और प्रजनन पर असर!

Climate Change: पशुओं पर भारी जलवायु पर‍िवर्तन, दूध और प्रजनन पर असर!

जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है. भारत में जलवायु परिवर्तन के चलते खेती ही नहीं बल्कि पशुपालन भी अब प्रभावित होने लगा है. तापमान में अचानक वृद्धि और कमी होने से पशुओं के दूध उत्पादन में कमी तथा प्रजनन क्रियाओं में समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं.

जलवायु परिवर्तन का दूध उत्पादन पर असर जलवायु परिवर्तन का दूध उत्पादन पर असर
धर्मेंद्र सिंह
  • lucknow ,
  • Apr 26, 2023,
  • Updated Apr 26, 2023, 3:36 PM IST

जलवायु परिवर्तन यानी Climate change कृषि के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है. भारत में जलवायु परिवर्तन का असर कृष‍ि क्षेत्र पर ही नहीं द‍िखाई दे रहा है. इसका असर पशु पर भी द‍िख रहा है. जलवायु पर‍िवर्तन की वजह से तापमान में अचानक वृद्धि और कमी होने से पशुओं के दूध उत्पादन में कमी तथा प्रजनन क्रियाओं में समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पशु और कुक्कुट प्रभावित हो रहे हैं. पशुओं में गर्मी के चलते तनाव जैसी समस्या भी पाई जाती है. ऐसी स्थिति में भीषण गर्मी के दौरान पशु शरीर के तापमान को सामान्य करने में असमर्थ होता है. तापमान में हो रही उच्च वृद्धि के कारण पशुओं की शारीरिक क्रियाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है जिससे दूध उत्पादन में भी गिरावट देखने को मिल रही है.

तेज गर्मी के कारण पशुओं में बढ़ रहा है तनाव

जलवायु परिवर्तन से पूरा विश्व प्रभावित है. भारत में अत्यधिक गर्मी के चलते पशुओं में तनाव की समस्या पैदा होने लगी है. पशुओं को अत्यधिक पसीना आना, तेजी से सांस लेना इसके साथ ही उनके त्वचा की सतह पर रक्त की तेज प्रभाव से नसों का फटना मुख्य लक्षण है. इसके साथ ही पानी की मांग में वृद्धि होना भी बड़ा लक्षण है. इसलिए पशुओं को तेज गर्मी से बचाने के लिए पेड़ों  का सहारा किसानों को लेना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन(Climate change) का दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव

उत्तर प्रदेश में पशुपालन विभाग उप निदेशक के पद पर तैनात डॉक्टर वेदव्रत गंगवार ने किसान तक को बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते पशुओं पर सबसे ज्यादा प्रभाव देखा जा रहा है. तापमान वृद्धि के कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर विपरीत असर पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के चलते पशुओं की दूध देने की क्षमता पर प्रभाव होता है. उत्तर भारत में तापमान वृद्धि के चलते गाय और भैंस दोनों के दुग्ध उत्पादन में 10 से 20 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. तापमान में हो रहे अचानक परिवर्तन के चलते दूध देने वाले पशुओं को वातावरण से सामजंस्य स्थापित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ज्यादा  गर्मी और शीतलहर के दौरान दूध उत्पादन पर असर तुरंत नहीं बल्कि कुछ समय के बाद दिखाई देता है.

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पशुओं के प्रजनन पर जलवायु परिवर्तन का असर

डॉ. वेदव्रत गंगवार ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में हो रही वृद्धि से पशुओं के प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. हाइब्रिड गोवंश तापमान,आद्रता सूचकांक में होने वाले परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 2040 तक 2 डिग्री सेल्सियस के तापमान वृद्धि होने की संभावना है, जिससे भैंसों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ेगा. भैंसों की मदकाल की अवधि घटने से लंबाई और तीव्रता गर्भाधान दर में कमी ,डिंब ग्रंथि के पूर्ण विकास एवं आकार में वृद्धि में कमी प्रारंभिक भ्रूण की होने वाली मृत्यु का खतरा बढ़ जाता हैं.

कुक्कुट पर भी बढ़ते तापमान का असर

कुक्कुट पालन में तापमान वृद्धि के चलते अंडा उत्पादन पर नकारात्मक असर देखा जा रहा है. वहीं मुर्गियों के प्रजनन क्षमता पर भी अत्यधिक तापमान की वजह से विपरीत असर पड़ रहा है. मुर्गियों के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त माना जाता है. ज्यादा तापमान की वजह से कई तरह की बीमारियां भी कुकुट पालन के लिए बड़ी समस्या बन जाती है.

जलवायु परिवर्तन से पशुओं के आहार पर विपरीत प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के चलते पशुओं में शुद्ध पदार्थ के ग्रहण करने की क्षमता में गिरावट देखी गई है. गर्मी और बरसात के मौसम में तापमान में वृद्धि के चलते दुधारू पशुओं के आहार ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है, जिसके फलस्वरूप दूध के उत्पादन में भी कमी आती है. कम आहार लेने की वजह से पशुओं को आवश्यक पोषण नहीं मिल पाता है, जिसके चलते उनकी उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

पशुओं में बीमारियों 

जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में हो रही वृद्धि की वजह से पशुओं में असमय बीमारी की संभावना बढ़ रही है. तापमान और आर्द्रता में वृद्धि के चलते व्यक्ति की संख्या में वृद्धि हो रही है. प्रोटोजोआ और वायरस जनित रोग पशुओं में अधिक फैलने का खतरा बढ़ जाता है. संकर नस्ल के पशुओं में प्रोटोजोआ रोगों की संभावना ज्यादा रहती है, जबकि देसी नस्ल में इन बीमारियों की संभावना कम देखी जा रही है. तापमान और आद्रता में वृद्धि के कारण थनैला, खुरपका मुंह पका जैसे रोगों की घटनाओं में वृद्धि होने की संभावना बढ़ी है.

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