जून में दस्तक देने वाले मॉनसून ने शुरुआत में किसानों के चेहरों पर उम्मीद जगाई थी. खेतों में हल चले, बुआई शुरू हुई. लेकिन यह उत्साह ज्यादा देर टिक नहीं पाया. मौसम विज्ञान केंद्र पटना के अनुसार जून में बिहार में औसत से करीब 36 परसेंट कम बारिश हुई है. यह स्थिति खरीफ फसलों की बुआई पर गंभीर असर डाल सकती है. जून में जहां सामान्य वर्षा 186 मिमी होती है, वहां इस बार महज 118 मिमी के आसपास ही बारिश दर्ज की गई. यानी किसान जिस भरोसे खेतों में उतरे थे, वह भरोसा फिलहाल पानी की कमी से जूझ रहा है.
जहां ज्यादातर जिलों में कम बारिश ने मायूसी बढ़ाई, वहीं औरंगाबाद, गया, रोहतास और कैमूर जिलों में सामान्य से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है.
* गया में सामान्य 151 मिमी के मुकाबले 228 मिमी बारिश हुई, जो करीब 51% ज्यादा है.
* औरंगाबाद में 141 मिमी के बजाय 189 मिमी वर्षा दर्ज हुई. यानी करीब 35% अधिक.
* रोहतास में 130 मिमी के मुकाबले 170 मिमी यानी 31% ज्यादा पानी गिरा.
* कैमूर में भी सामान्य से अधिक वर्षा हुई, हालांकि सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.
राजधानी पटना में मॉनसून के मौसम में भी उमस और गर्मी से लोग बेहाल हैं. बादलों का आना-जाना लगा हुआ है, लेकिन बारिश बहुत कम दर्ज हो रही है. तापमान में असंतुलन भी साफ नजर आ रहा है. मौसम वैज्ञानिक आशीष कुमार के अनुसार, शहर के भीतर तापमान अधिक है, जबकि बाहरी क्षेत्रों में इसमें गिरावट देखी जाती है. यह स्थानीय जलवायु असंतुलन का संकेत है, जिसे बड़े स्तर पर समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है.
मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक जुलाई के तीसरे सप्ताह तक प्रदेश में कम बारिश होने की संभावना है. कुछ जिलों में हल्की बारिश होगी, लेकिन चौथे सप्ताह में ही भारी बारिश की उम्मीद जताई जा रही है. इससे धान की बुआई पर व्यापक असर पड़ सकता है. क्योंकि इस फसल की शुरुआत ही पानी पर निर्भर होती है.
बिहार में खरीफ की खेती मुख्य रूप से धान पर केंद्रित होती है. यह पूरी तरह समय पर और पर्याप्त वर्षा पर निर्भर होती है. जून और जुलाई की कमी अगर अगस्त तक बरसात से पूरी नहीं हुई, तो राज्य के कृषि उत्पादन पर गहरा असर पड़ सकता है.
मौसम के मिजाज ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. अब निगाहें चौथे सप्ताह की संभावित बारिश पर टिकी हैं.