रखमाजी किसन शेलके, उम्र 37 साल, महाराष्ट्र के जालना जिले के घनसावंगी ब्लॉक के पनेवाडी गांव के किसान हैं. उनके पास कुल 2.50 एकड़ कृषि भूमि है. पहले वे कपास, सोयाबीन और अरहर जैसी फसलें उगाते थे और इन फसलों से उन्हें सालाना 60,000 रुपये की शुद्ध आय होती थी. यह आय उनके परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. वे आर्थिक संकट से जूझ रहे थे और वे गांव में अन्य किसानों के यहां खेत मजदूर के रूप में काम करते थे.
शेलके ने अपने ही गांव के सरजेराव जरास और जालना के जिला रेशम उत्पादन कार्यालय से रेशम उत्पादन के बारे में जानकारी ली. इसके बाद उन्होंने 2014-15 में 0.50 एकड़ भूमि पर रेशम उत्पादन का काम शुरू करने का फैसला किया. साल 2016-17 में उन्होंने MGNREGS के तहत अतिरिक्त 1.0 एकड़ भूमि पर शहतूत की खेती की. अपनी दिलचस्पी के अनुसार उन्होंने 1.0 एकड़ भूमि पर शहतूत की खेती को बढ़ाया और वर्तमान में शहतूत की खेती के तहत उनका कुल क्षेत्रफल 2.50 एकड़ है.
मनरेगा के तहत रेशम उत्पादन विकास को बढ़ाने के लिए जिला रेशम उत्पादन कार्यालय, जालना के जरिये महारेशम अभियान चलाया जाता है. यह अभियान किसानों की मदद के लिए समय-समय पर चलता रहता है. महारेशम अभियान के दौरान जिला रेशम उत्पादन कार्यालय, जालना के अधिकारी कुछ चुने गए गांवों में जाते हैं, समूह चर्चा या किसान मेला के माध्यम से किसानों से संपर्क करते हैं. मनरेगा के तहत गांव में इच्छुक लाभार्थियों की सूची तैयार की जाती है. इस तरह शेलके के मामले में भी रेशम उत्पादन के लिए तकनीकी मंजूरी दी गई. इसके बाद 2016 में शेलके ने अपने खेत में शहतूत उगाने का काम शुरू कर दिया.
जालना जिला रेशम उत्पादन कार्यालय ने उन्हें रेशम उत्पादन के साथ-साथ मनरेगा के तहत रेशम की खेती बढ़ाने के बारे में जानकारी दी. रेशम उत्पादन एक उच्च तकनीकी का काम है, इसलिए उन्हें जिला रेशम उत्पादन कार्यालय के जरिये रेशम उत्पादन के बारे में जरूरी ट्रेनिंग दी गई. किसान रखमाजी किसान शेलके आज भी समय-समय पर रेशन उत्पादन की ट्रेनिंग लेते हैं. इससे उन्हें रेशन कीट पालने और उससे रेशम बनाने में अच्छी-खासी मदद मिल रही है.
मनरेगा के तहत लाभार्थी किसान शेलके को शहतूत के बागानों की देखभाल, रेशम कीट पालन और पालन उपकरणों की खरीद के लिए 174826 रुपये की सहायता दी कई है. इससे उनकी कृषि आय में वृद्धि हुई है. तीन साल की परियोजना अवधि के दौरान शेलके ने 4225 किलोग्राम कोकून का उत्पादन किया और 11.70 लाख रुपये की शुद्ध आय मिली. उन्होंने सिंचाई के लिए 100'x85' आकार का एक तालाब भी खेत में बनाया. इससे पानी की कमी के समय सिंचाई की समस्या को हल करने में मदद मिली. अब वह सिंचाई के पानी के लिए पूरी तरह से टेंशनफ्री हैं.
रखमाजी किसन शेलके ने पाया कि रेशम उत्पादन कृषि और बागवानी की तुलना में अधिक लाभदायक है क्योंकि शहतूत साल 2018-19 के दौरान गंभीर सूखे की स्थिति में भी जीवित रह सकता है और किसी भी अन्य फसल की तुलना में अधिक आय देता है. उनकी कामयाबी से प्रेरणा लेकर उसी गांव के अन्य 20 किसानों ने अपने खेत में रेशम उत्पादन का काम शुरू किया. इससे गांव के ग्रामीण युवाओं की बेरोजगारी की समस्या को हल करने में मदद मिली.