Lakhimpur Kheri News: देश में पढ़ें-लिखे युवा खेती-किसानी में हाथ आजमा रहे हैं और कामयाबी भी पा रहे हैं. इसी क्रम में यूपी के लखीमपुर खीरी के पलिया इलाके के जगदेवपुर के रहने वाले युवा प्रगतिशील किसान अचल मिश्रा का नाम भी जुड़ जाता है. अचल बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं. वहीं गेंदे के फूल की खेती से भी अचल अच्छा मुनाफा कमा रहे है. अचल मिश्रा, यूपी में लखीमपुर जिले के एक ऐसे किसान हैं जिन्हें गन्ने की खेती में नए प्रयोग कर उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी भी सम्मानित कर चुके हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 181 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी जिले दुधवा के जंगलों के करीब अचल मिश्रा 70 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं. लखीमपुर जिले को भारत का चीनी का कटोरा कहा जाता है. अपने खेती में वो नए-नए प्रयोग भी करते हैं.
इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से बातचीत में युवा किसान अचल मिश्रा ने बताया कि 2006 से आधुनिक तकनीक से गन्ने की खेती शुरू की. आज हमारे भी खेतों में 18 से 20 फीट तक का गन्ना होता है. उत्पादन की बात करें तो 1100 से 1250 कुन्तल प्रति एकड़ होती है. उन्होंने बताया कि गन्ने की खेती के उत्पादन पर साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों से कुछ किसानों को दिल्ली आमंत्रित किया था, जिसमे गन्ने की खेती करने वाले वो अकेले किसान थे. पीएम मोदी ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया था.
लखनऊ यूनिवर्सिटी से संबंध केल्विन डिग्री कॉलेज से विधि स्नातक अचल अपनी यूनिवर्सटी से गोल्ड मेडेलिस्ट भी रह चुके हैं. अचल मिश्रा ने बताया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के बजाए खेती को ही रोजगार बनाया. शुरुआती दौर में सबसे पहले गन्ने की खेती की, जहां मुझे बहुत मुनाफा हुआ. अचल कहते हैं कि परंपरागत विधि से बुवाई करने से एक एकड़ में करीब 45 कुंतल गन्ना लगता है, जबकि हमारी तरह बोने में 24-28 कुंतल ही बीज लगता है जबकि उत्पादन कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. मौजूदा समय में इस किसान की सालाना आय 50 लाख रुपये से ऊपर है.
खेती में नए- नए प्रयोग करने वाले अचल ने अपने खेत को रूरल टूरिज्म से भी जोड़ दिया है. उन्होंने बताया कि मेरे खेत से दुधवा नेशनल पार्क की दूरी महज 6 किलोमीटर है. हमने दुधवा के साथ टाइअप करके अपने फार्म हाउस में ही रुकने की व्यवस्था की है. उन्होंने यूपी के पर्टयन विभाग से मिलकर अपने यहां यात्रियों के रुकने का इंतजाम किया है. इसके बदले उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है. यूपी टूरिज्म की तरह से इसकी बुकिंग भी होती है.
अचल ने आगे बताया कि गांव की अनुसूचित जनजाति (ST) की महिलाओं को जोड़ कर गेंदे की खेती शुरू की, जिससे गांव की महिलाओं को रोजगार के साथ अच्छी इनकम होने लगी. आज बाजार में 70 से 80 रुपये प्रति किलो के रेट से गेंदे की फूल की बिक्री हो जाती है. अचल कहते हैं, मेरी कोशिश है कि अपने स्वर्गीय पिता के नाम पर एक कृषि महाविद्यालय खोलू, जिसमें गन्ने की नई प्रजाति विकसित की जाएं और लोगों को खेती की नई चीजें सिखाई जाएं. अचल की खेती देखने के लिए दूर-दूर से किसान उनके खेत पर आते हैं. जिसमें यूपी के साथ ही कई दूसरे राज्यों के भी किसान होते हैं. उन्होंने बताया कि 3 हेक्टर में गेंदे की खेती से सालाना 4 लाख रुपये की आय हो जाती है.
अचल ने अपने खेतों के बीच खास फार्म बना रखा है जहां वो नर्सरी के साथ मधुमक्खी पालन, कड़कनाथ मुर्गा, एजोला उत्पादन, वर्मी कंपोस्ट आदि भी बनाते हैं, ताकि में इनपुट कॉस्ट (लागत) कम हो और उत्पादन बेहतर हो सके. अचल बताते हैं, 'आज के समय में ज्यादा उत्पादन के लिए कई किसान मनमाने ढ़ंग से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने लगे हैं, जिससे खेती का लगात बढ़ती जाती है. लेकिन अगर मुर्गी की खाद, वर्मी कंपोस्ट और एजोला आदि से सही तरीके की देसी खादें बनाई जाएं तो न सिर्फ बाजार से कम उर्वरक खरीदनी होंगी बल्कि उत्पादन भी बढ़ता है. अचल ने बताया कि मेरा मकसद कृषि के क्षेत्र में किसानों का एक बड़ा हब सेंटर बनाने का है, जिससे आने वाले वक्त में किसानों को नई-नई तकनीक जानने के लिए किसी दूसरे राज्य में ना जाने पड़े.